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यूपी इंवेस्टर्स समिट के राजनीतिक मायने, 2019 के लिए बनेगा क्या बड़ा हथियार

यूपी इंवेस्टर्स समिट में पीएम ने कहा कि विकास के मुद्दे पर किसी भी दल को सियासत से करने से बचना चाहिए। यूपी की तकदीर बदलने के लिए यह आयोजन अहम है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Wed, 21 Feb 2018 05:49 PM (IST)Updated: Wed, 21 Feb 2018 06:55 PM (IST)
यूपी इंवेस्टर्स समिट के राजनीतिक मायने, 2019 के लिए बनेगा क्या बड़ा हथियार
यूपी इंवेस्टर्स समिट के राजनीतिक मायने, 2019 के लिए बनेगा क्या बड़ा हथियार

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । देश के सबसे बड़े सूबे के तौर पर उत्तर प्रदेश की पहचान होती है। एक कहावत भी है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर गुजरता है। लेकिन उत्तर प्रदेश को एक और नाम से जाना जाता है जिसे बीमारू कहते हैं। पीएम मोदी 2014 के चुनाव से पहले अपनी जनसभाओं में कहा करते थे कि एक ऐसा सूबा जो प्राकृतिक संसाधनों से लैस है,एक ऐसी धरती जहां के लोग कुछ कर गुजरने की माद्दा रखते हैं लेकिन नीतियों के अभाव में अदूरदर्शी निर्णयों की वजह से भारत मां का ये हिस्सा विकास की रेस में पिछड़ गया है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का असाधारण प्रदर्शन रहा और इस बात की उम्मीद जगने लगी कि शायद अब कुछ बदलाव की बयार महसूस होगी। यूपी सरकार अपने कार्यकाल के एक साल पूरा करने से पहले दो दिवसीय इंवेस्टर्स समिट के जरिए ये संदेश देने की कोशिश कर रही है यूपी में अब निवेश सुरक्षित है और उस दिशा में सरकार एक कदम बढ़ती हुई दिखाई दे रही है।

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इंवेस्टर्स समिट के पहले दिन 4 लाख 28 हजार करोड़ के एक हजार से ज्यादा करार पर दस्तखत हुए। इन करारों की सबसे बड़ी खासियत ये है कि देश का दूसरा डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर को बुंदेलखंड में स्थापित किया जाएगा जिससे ढ़ाई लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सकेगा। लेकिन एक सवाल ये भी है कि क्या ये यूपी की सूरत और सीरत को बदलने की कवायद है या 2019 के लक्ष्य को साधने की कोशिश है। इस गूढ़ सवाल का जवाब तलाशने से पहले ये जानना जरूरी है कि पीएम मोदी इन्वेस्टर्स समिट में क्या कुछ कहा।

...जब दिखता है परिवर्तन

इंवेस्टर्स समिट में पीएम मोदी ने कहा कि जब परिवर्तन होता है तो वो दिखाई देने लगता है। पिछले 11 महीनों में योगी सरकार ने उम्मीद जगाने का काम किया है। अब आशा कि किरण दिखाई दे रही है। भदोही की कालीन, बनारस की जरीस मलिहाबाद के आम, मुरादाबाद का पीतल उद्योग के जरिए उन्होंने यूपी की खासियत का बखान किया। इसके साथ ही पांच पी यानि पोटेंशियल, पॉलिसी, प्लानिंग और परफार्मेंस के जरिए प्रोग्रेस के बारे में बताया। उन्होंने मुक्त कंठ से योगी सरकार की तारीफ करते हुए बताया कि पहले ये सब कुछ हो सकता था। लेकिन भय और असुरक्षा के माहौल में ये परवान नहीं चढ़ सका। मौजूदा सरकार से पहले पूरे प्रदेश में भय और असुरक्षा का माहौल था।

 

गुजरात वाइब्रेंट समिट-यूपी वाइब्रेंट समिट में समानता

देश के अलग अलग राज्यों ने निवेशकों को लुभान के लिए इंवेस्टर्स समिट आयोजित किया करते हैं। गुजरात में नरेंद्र मोदी के सीएम बनने के बाद गुजरात वाइब्रेंट समिट को हर वर्ष आयोजित किया जाता है और उसके बेहतर परिणाम भी दिखाई देते हैं। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले मे महाराष्ट्र और दक्षिण के राज्य हमेशा से आगे रहे हैं। जानकारों का मानना है कि अगर आप उत्तर भारत और दक्षिण भारत के राज्यों को देखें तो दक्षिण में लालफीताशाही और सरकारों की तरफ से अड़चने कम रही हैं। यही नहीं तुलनात्मक तौर पर उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में दक्षिण के राज्यों में कानून व्यवस्था अच्छी रही है।

जानकार की राय

यूपी में इंवेस्टर्स समिट और 2019 के आम चुनाव के संबंधों पर वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने दैनिक जागरण से खास बातचीत की। उन्होंने कहा कि इसे आप राजनीति से ऊपर उठकर देख सकते हैं। विपक्षी दल इस समिट की उपयोगिता पर सवाल उठाएंगे। अगर आप यूपी में मानव संसाधन के साथ साछ दूसरे संसाधनों को देखें तो एक बात साफ है कि उवका समुचित दोहन नहीं हो सका। मौजूदा सरकार अब इस दिशा में आगे बढ़ रही है।

 जहां तक इस समिट के राजनैतिक मायनों को देखें तो उसके लिए आप को पीएम नरेंद्र मोदी के बयानों को गहराई से समझने की जरूरत है। पीएम ने कहा कि जब परिवर्तन होता है तो वो दिखाई भी देता है, इसका अर्थ ये है कि वो सपास बसपा और कांग्रेस पर निशाना साध रहे थे। उनके मुताबिक यूपी विकास के रास्ते पर और तेजी से दौड़ सकता था। लेकिन रेड कॉर्पेट की जगह रेड टेपिज्म ने प्रदेश को पीछे ढकेल दिया। इसके साथ ही जब वो पांच पी का नारा देते हैं तो उसमें पोटेंशियल, पॉलिसी, प्लानिंग और परफॉर्मेंस का खास महत्व है। इन शब्दों के जरिए वो केंद्र सरकार की योजनाओं की प्रगति और उनके परिणामों पर इशारा किया। पीएम अपने सभी संबोधनों में छोटे और मझोले उद्योगों, किसानों पर खासा ध्यान देते हैं। इस समिट में भी उन्होंने भदोही, बनारस, लखनऊ और मुरादाबाद का जिक्र कर उन तबकों तक पहुंचने की कोशिश की जिनके जरिए विपक्षी दल केंद्र और राज्य सरकार पर निशाना साधते हैं।


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