West Bengal Assembly elections 2021 : बिहार में ओवैसी की सेंध से पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की बढ़ी चिंता
पिछले लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीतकर भाजपा ने यह मंसूबा भी साफ कर दिया है कि इस बार सत्ता हासिल करने की लड़ाई होगी। केंद्रीय कांग्रेस का जो भी रुख हो लेकिन प्रदेश कांग्रेस और वामदलों की भी लड़ाई ममता से ही है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। बिहार विधानसभा चुनाव में दिखे अल्पसंख्यकों के तेवर क्या पश्चिम बंगाल और असम में भी दिखेंगे.? यह सवाल फिलहाल इससे भी ज्यादा अहम हो गया है कि तेज गति से बढ़ रही भाजपा इन राज्यों में कितना जनाधार बढ़ाएगी। दरअसल, इन दोनों राज्यों की चुनावी राजनीति में अल्पंसख्यकों का प्रभाव बिहार से ज्यादा है। बिहार में बड़े फेरबदल करने वाले एआइएमआइएम ने अगर पश्चिम बंगाल में झंडा गाड़ा तो ममता सरकार की राह दुरूह हो सकती है। पश्चिम बंगाल में वैसे तो तृणमूल कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से है।
अल्पसंख्यक युवाओं में अपने प्रतिनिधि को लेकर बढ़ रही है मांग: ओवैसी
पिछले लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीतकर भाजपा ने यह मंसूबा भी साफ कर दिया है कि इस बार सत्ता हासिल करने की लड़ाई होगी। केंद्रीय कांग्रेस का जो भी रुख हो लेकिन प्रदेश कांग्रेस और वामदलों की भी लड़ाई ममता से ही है। ऐसे में अगर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम ने मजबूती से खम ठोका तो ममता की विकेट और भी कमजोर हो सकती है। बिहार में पांच सीट जीतने के बाद उत्साहित ओवैसी ने दैनिक जागरण से कहा- 'अल्पसंख्यकों को हर दल ने ठगा है। ऐसे में अल्पसंख्यक युवाओं में यह भावना गहरी होती जा रही है कि उनका प्रतिनिधि उनके बीच से होना चाहिए। उनकी अपनी पार्टी होनी चाहिए जो उनके हित की बात करे और मजबूती से लड़े।'
एआइएमआइएम ममता के 'अगर- मगर' पर चोट करेगा
ओवैसी ने कहा- कांग्रेस समेत दूसरे दल तो नागरिकता कानून और एनआरसी का विरोध भी कदम थाम थाम कर कर रहे थे कि कहीं नुकसान न हो जाए। हमने खुलकर विरोध किया और लोगों को यह याद है। ममता की नीतियां यूं तो अल्पंसख्यक केंद्रित रही हैं लेकिन पिछले दिनों में भाजपा के दबाव में वह साफ्ट हिंदुत्व का प्रदर्शन भी करती रही हैं। जाहिर है कि एआइएमआइएम ममता के इसी 'अगर- मगर' पर चोट करेगा। ओवैसी ने कहा कि अगले सप्ताह वह बंगाल यूनिट के साथ चर्चा करेंगे, संगठन की थाह लेंगे और उसके बाद रणनीति तय करेंगे। बिहार की जीत इसलिए अहम है क्योंकि न सिर्फ उनके सभी पांच उम्मीदवार बड़े अंतर से जीते बल्कि सीमांचल पश्चिम बंगाल का द्वार है।
असम में भी मुश्किल बढ़ा सकता है एआइएमआइएम
जाहिर है कि अपने चेहरे, अपने लोग, अपने मुद्दे के नारे के साथ एआइएमआइएम ममता के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है। बिहार में निराशाजनक प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस की जड़ें भी कमजोर हो सकती है क्योंकि ममता से हटकर वोट देने वाले अल्पंसख्यकों के सामने एक दूसरा विकल्प भी होगा। असम में यूं तो बदरुद्दीन अजमल के एयूडीएफ के रूप में अल्पसंख्यकों की एक अलग पहचान तैयार है, लेकिन वहां भी एआइएमआइएम की मौजूदगी कांग्रेस को परेशान कर सकता है।
वहीं भाजपा ने अपनी तैयारी को अंतिम रूप देने शुरू कर दिया है। पिछले लोकसभा चुनाव से पूर्व ही केंद्रीय मंत्रियों को प्रदेश की कुछ कुछ सीटें दी गई थीं। अब संगठन में अलग अलग लोगों को विधानसभा सीटों की टुकड़े टुकड़े में जिम्मेदारी दी गई है। प्रधानमंत्री कार्यकर्ताओं को संबोधित कर चुके हैं और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा था केंद्रीय मंत्री राज्य का दौरा कर चुके हैं। जाहिर है कि कई मुद्दों पर ममता के लिए असमंजस खड़ा होगा और यही परेशानी की सबब बनेगा।