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एक-दूसरे को 'चश्‍मा' नहीं पहनने देंगे चौटाला बंधू, दोनों भाइयों में आज मचेगा घमासान

चौटाला परिवार में टूट पर श‍निवार को मोहर लग जाएगी। अजय और अभय चौटाला बैठकें कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगे। इसके साथ ही पार्टी के चुनाव निशान पर भ्‍सर घमासान मचेगा।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Fri, 16 Nov 2018 11:48 PM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 09:10 AM (IST)
एक-दूसरे को 'चश्‍मा' नहीं पहनने देंगे चौटाला बंधू, दोनों भाइयों में आज मचेगा घमासान
एक-दूसरे को 'चश्‍मा' नहीं पहनने देंगे चौटाला बंधू, दोनों भाइयों में आज मचेगा घमासान

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। इनेलो में मचे विवाद के बीच अब पार्टी के चुनाव निशान पर घमासान हाेने के आसार हैं। इसके साथ ही हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के दोनों बेटे अजय सिंह चौटाला और अभय सिंह चौटाला में उत्तराधिकार की जंग व शक्ति प्रदर्शन के एि मंच सज गए हैं। दोनों शनिवार को अलग-अलग मं.चों पर एक-दूसरे के खिलाफ हुंकार भरेंगे। अजय सिंह चौटला आैर उनके पुत्र दुष्‍यंत व दिग्विजय चौटला जींद में बैठक कर अपनी रहा चुनेंगे। दूसरी ओर, छोटा भाई अभय चौटाला इनेलो पर अपनी पकड़ दिखाने के लिए चंडीगढ़ में बैठक कर रणनीति तैयार करेंगे।

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चौटाला के दोनों बेटों में उत्ताधिकार की जंग, होगा खुला ऐलान

इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला को अपना आशीर्वाद दे चुके हैं, वहीं बड़े बेटे अजय चौटाला इसके खिलाफ खुले मैदान में आ गए हैं।  अपने बेटों दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला के लिए राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे अजय ने इनेलो से निष्कासन के बाद जनता की अदालत में जाने का एेलान किया है, दूसरी ओर अभय संगठन को नए सिरे से खड़ा कर पार्टी पर अपनी मजबूत करने की तैयारियों में जुट गए हैं।

अजय चौटाला की तरफ से जींद में बुलाई गई बैठक, अभय चौटाला चंडीगढ़ में बनाएंगे रणनीति

अजय चाैटाला शनिवार को अपने दोनों बेटों दुष्यंत और दिग्विजय के साथ जहां हरियाणा की राजनीतिक राजधानी कहे जाने वाले जींद में शक्ति प्रदर्शन कर चुनौती देंगे। दूसरी तरफ सत्ता के केंद्र बिंदु चंडीगढ़ में रहकर अभय अपने बड़े भाई की चुनौती का जवाब देंगे।

अभय की नई रणनीति में बसपा सुप्रीमो मायावती के प्रतिनिधि के नाते हरियाणा इकाई के बसपा नेता भी साथ खड़े नजर आएंगे। अजय और अभय सिंह ने 17 नवंबर को प्रदेश कार्यकारिणी की बैठकें बुला रखी हैं। अजय सिंह ने इनेलो के प्रधान महासचिव के नाते जींद में यह बैठक बुलाई है, लेकिन उन्हें इस बैठक से पहले ही पार्टी से निकाल दिया गया है। अभय चौटाला गुट इस बैठक को असंवैधानिक खारिज कर चुका है। अभय ने प्रदेश अध्यक्ष अशोक अरोड़ा के जरिये इसी दिन चंडीगढ़ में बैठक बुलाई है।

विधायकों के रुख पर टिकी सभी की निगाहें

दोनों भाइयों द्वारा बुलाई गई यह बैठकें काफी महत्वपूर्ण हो गई है और इनमें इनेलो का दोफाड़ हाेना तय माना जा रहा है। इन सब के बीच सबकी निगाह अब विधायकों के अगले रुख पर टिकी हुई है। पार्टी में चल रही उत्तराधिकारी की जंग में विधायक समझ नहीं पा रहे कि वे किसका साथ दें। कुछ विधायक तो खुलकर अजय सिंह और दुष्यंत चौटाला के साथ चल रहे हैं, जबकि काफी विधायक अभय के साथ हैं। पिछले दो दिनों से इनेलो के कई विधायक भूमिगत हैं, ताकि उनसे कोई सीधे तौर पर संपर्क न कर सके। उनके हिमाचल में होने की खबरें आ रही हैं।

अचानक पहुंचकर बैठक में भागीदारी करेंगे विधायक

शनिवार को चूंकि दोनों भाइयों की बैठकें हैं, इसलिए विधायक अचानक आकर इन बैठकों में शामिल होंगे। देखने वाली बात यह होगी कि अभय की बैठक में कितने विधायक शामिल होते हैं और अजय खेमे में कितने विधायक खड़े नजर आते हैं। जींद के विधायक डा. हरिचंद मिड्ढा के निधन के बाद इनेलो विधायकों की संख्या 18 रह गई है।

अजय चौटाला की पत्नी नैना चौटाला के अलावा बाकी बचे 17 विधायकों में से चार खुले तौर पर अजय चौटाला खेमे के साथ हैं और एक नगेंद्र भड़ाना भाजपा का साथ दे रहे हैं। ऐसे में अब बाकी बचे 12 विधायकों पर पूरा दारोमदार है। यदि सभी 12 विधायक अभय चौटाला गुट के साथ बैठक में दिखाई देते हैं तो इसे उनक पार्टी पर पकड़ मजबूत मानी जाएगी। इसके विपरीत यदि कुछ नए विधायक टूटकर अजय गुट के साथ जाते हैं तो यह उनकी उपलब्धि होगी।

अजय चौटाला गुट करेगा चुनाव चिन्ह पर अपना दावा

शनिवार को जींद और चंडीगढ़ में एक साथ बुलाई गई प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक के आधार पर ही तय होगा कि चुनाव चिन्ह चश्मे को अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला पहनेंगे या फिर अभय चौटाला। अजय चौटाला ने नई दिल्ली में साफ कहा कि इनेलो यदि कार्यकर्ताओं की नहीं रही तो कार्यकर्ताओं द्वारा बनाए गए चश्मे को भी कोई और नहीं पहन पाएगा। अजय के इस कथन से साफ था कि वह जींद से ही पार्टी चुनाव चिन्ह पर अधिकार जताने के लिए चुनाव आयोग जाएंगे। सूत्रों की मानें तो इनेलो के चुनाव चिन्ह की लड़ाई कम से कम लोकसभा चुनाव तक चुनाव आयोग के समक्ष लंबित रहेगी।


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