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मिशन 2019: बिहार में महिला प्रत्याशियों के लिए आसान नहीं टिकट की राह

भारत-पाक संबंधों में आई तल्खी के बीच बिहार में लोकसभा चुनाव की सरगर्मी भी जोर पर है। तमाम दल उम्‍मीदवारों की लिस्‍ट तैयार करने में जुट गए हैं। महिला प्रत्‍याशियों पर भी खास नजर है

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Thu, 28 Feb 2019 06:16 PM (IST)Updated: Thu, 28 Feb 2019 11:45 PM (IST)
मिशन 2019: बिहार में महिला प्रत्याशियों के लिए आसान नहीं टिकट की राह
मिशन 2019: बिहार में महिला प्रत्याशियों के लिए आसान नहीं टिकट की राह

पटना [सुनील राज]। भारत-पाक संबंधों में आई तल्खी के बीच लोकसभा चुनाव की सरगर्मी भी जोर पर है। बिहार के तमाम राजनीतिक दल चुनाव मैदान में उतारे जाने वाले संभावित रणबांकुरों की फेहरिस्त तैयार करने में जुट गए हैं। दलों के अंदर जारी मंथन में चर्चा इस बात को लेकर भी है कि कितनी महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा जाए। लेकिन पिछले आंकड़े बताते हैं कि बिहार में महिलाओं के लिए टिकट की राह आसान नहीं है। 

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भाजपा, जदयू, राजद, कांग्रेस से लेकर दूसरे छोटे दल भी इसी उधेड़बुन से दो-चार हो रहे हैं। इस दौरान विगत 15 वर्ष के चुनावी इतिहास के पन्ने भी पलटे जा रहे हैं। कोशिश यह जानने की है कि पूर्व के चुनाव में महिला प्रत्याशियों की जीत का रिकॉर्ड क्या रहा है। हकीकत यह है कि लोकसभा के पिछले दो-तीन चुनाव को अगर देखें तो तस्वीर साफ हो जाती है कि पुरूष प्रत्याशियों के मुकाबले महिलाओं को चुनाव में किस्मत आजमाने के बहुत कम मौके दिए गए। जबकि, महिलाओं की जीत के आंकड़े 7.5 से 12.5 परसेंट तक रहे हैं।  

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा दो सहयोगी दलों के साथ चुनाव मैदान में थी। लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी। भाजपा ने 2014 में 30 सीटों पर चुनाव लड़ा। लोजपा सात और रालोसपा ने तीन सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। भाजपा ने उस दौरान दो महिला प्रत्याशियों पर विश्वास जताया। ये थीं शिवहर से रमा देवी और बांका से पुतुल देवी। 



पुतुल देवी चुनाव हार गईं, जबकि रमा देवी ने अपनी सीट निकाल ली। लोजपा ने सात सीटों में से एक सीट पर महिला प्रत्याशी उतारा। लोजपा ने मुंगेर से सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी को अपना प्रत्याशी बनाया। वीणा देवी लोजपा के लिए तुरुप का पत्ता साबित हुईं। रालोसपा को इस चुनाव में तीन सीटें मिलीं, मगर पार्टी ने किसी महिला प्रत्याशी को मैदान में नहीं भेजा। 

इधर जनता दल यू ने दो सीटों पर महिला प्रत्याशी खड़े किए। उजियारपुर से अश्वमेध देवी और आरा से मीना सिंह। मोदी लहर में जदयू की दोनों प्रत्याशी मैदान मारने में विफल रहीं। कांग्रेस ने तीन महिला प्रत्याशी उतारे थे। सुपौल से रंजीत रंजन, सासाराम से मीरा कुमार और गोपालगंज से ज्योति। इन तीन में से सिर्फ रंजीत रंजन मोदी लहर में भी चुनाव जीतने में सफल रही। राजद ने पिछले चुनाव पांच महिला प्रत्याशी खड़े किए। छपरा से राबड़ी देवी, पाटलिपुत्र से मीसा भारती, काराकाट से कांति सिंह, सिवान से हिना शहाब और खगडिय़ा से कृष्णा यादव। पर ये सभी चुनाव हार गईं। 

इससे पहले 2009 में बिहार से पांच महिला प्रत्याशी संसद तक पहुंचीं। शिवहर से भाजपा प्रत्याशी रमा देवी, उजियारपुर से जदयू प्रत्याशी अश्वमेघ देवी, आरा से मीना सिंह। कांग्रेस की सीट पर सासाराम से मीरा कुमार। दिग्विजय सिंह के निधन की वजह से रिक्त हुई सीट पर जदयू ने उपचुनाव में उनकी पत्नी पुतुल सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया और पुतुल सिंह चुनाव जीतने में सफल रही। 

इन दो चुनावों के नतीजे बताते हैं कि बिहार से संसद तक पहुंचने वाली महिलाओं की संख्या तीन से पांच के बीच में रही है। 2004 में भी तीन महिलाएं संसद तक पहुंची थीं। सहरसा से कांग्रेस की सीट पर रंजीत रंजन, राजद के टिकट पर आरा से कांति सिंह और सासाराम से कांग्रेस के टिकट पर मीरा कुमार। उस दौरान विक्रमगंज के जदयू सांसद अजीत सिंह का निधन होने के बाद उप चुनाव हुए तो इस सीट से मैदान में उतरी उनकी पत्नी मीना सिंह चुनाव जीतने में सफल रही। मीना सिंह को मिला दिया जाए तो यह संख्या चार हो जाती है। 

बहरहाल एक बार फिर चुनाव का मैदान सजने को है। तमाम दल प्रत्याशियों को लेकर गुणा-भाग में लगे हुए हैं। देखना यह होगा कि इस बार चुनाव के मैदान में कितनी महिला प्रत्याशी होगी और अपने दल की कसौटी पर वह कितना खरा उतरती हैं। 


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