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दिल्ली का बिग बॉस कौन? नहीं थमा टकराव, अधिकारों को लेकर बंटे सुप्रीम कोर्ट के जज

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक नवंबर, 2018 को दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ केजरीवाल सरकार की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

By Prateek KumarEdited By: Published: Wed, 13 Feb 2019 07:41 PM (IST)Updated: Fri, 15 Feb 2019 12:51 AM (IST)
दिल्ली का बिग बॉस कौन? नहीं थमा टकराव, अधिकारों को लेकर बंटे सुप्रीम कोर्ट के जज
दिल्ली का बिग बॉस कौन? नहीं थमा टकराव, अधिकारों को लेकर बंटे सुप्रीम कोर्ट के जज

नई दिल्ली [माला दीक्षित]। दिल्ली का बिग बॉस कौन? इस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। दो जजों की बेंच दिल्ली सरकार को अधिकारों को लेकर फैसला सुना रही है। यह अलग बात है कि दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की अलग-अलग राय सामने आई है।

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अपने फैसले में जस्टिस सीकरी ने कहा है कि आइएएस अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर का अधिकार उपराज्यपाल को दिया जाए जबकि दानिक्स (दिल्ली अंडमान एंड निकोबार, आइसलैंड सिविल सर्विस) के अधिकार दिल्ली सरकार के पास रहें। अगर कोई मतभेद होता है तो राष्ट्रपति के पास मामला भेजा जाए। वहीं, दूसरे जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि पूरे सर्विस के मामलों में केंद्र सरकार को अधिकार है। 

वहीं, जस्टिस सीकरी ने अपने फैसले में यह भी कहा कि चुनी हुई दिल्ली की सरकार कमीशन ऑफ इन्क्वायरी गठित नहीं कर सकती है। एक तरह से दिल्ली सरकार को राहत मिली है कि जमीनों का सर्किल सीएम ऑफिस के कंट्रोल में होगा। वहीं दिल्ली सरकार को इस फैसले से झटका लगा है कि एंटी करप्शन ब्रांच  (ACB) का अधिकार केंद्र सरकार (गृह मंत्रालय) को दिया गया है, क्योंकि पुलिस बल केंद्र के नियंत्रण क्षेत्र में है। 

फैसले के अहम बिंदु

  • गंभीर मुद्दों पर उपराज्यपाल से मतभेद नहीं हों
  • बिजली सुधार दिल्ली सरकार के जिम्मे
  • सरकारी वकील की नियुक्ति दिल्ली सरकार करेगी
  • दिल्ली सरकार जमीन का सर्किल रेट तय कर सकेगी

वहीं, सुप्रीम कोर्ट का फैसला पक्ष में नहीं आने पर आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार को झटका लगा है। AAP के मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि दिल्ली की जनता के लिए दुख की बात है। हमें उम्मीद थी कि कोर्ट का फैसला आएगा। अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार मिलेगा। सरकार जनता के कार्य बेहतर तरीके से करा सकेगी।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक नवंबर, 2018 को दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ केजरीवाल सरकार की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

वैसे तो केंद्र और दिल्ली सरकार के संवैधानिक अधिकारों की व्याख्यां पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ गत 4 जुलाई को फैसला सुना चुकी है। उस फैसले में कोर्ट ने चुनी हुई सरकार को प्राथमिकता दी थी। कोर्ट ने कहा था कि उपराज्यपाल मंत्रिमंडल की सलाह से काम करेंगे। मतांतर होने पर वे मामले को फैसले के लिए राष्ट्रपति को भेज सकते हैं। लेकिन स्वतंत्र रूप से कोई निर्णय नहीं ले सकते। वह दिल्ली के प्रशासनिक मुखिया जरूर हैं लेकिन उनके अधिकार सीमित हैं। संविधान पीठ के फैसले के बाद दिल्ली की आप सरकार को कई मामलों में निर्णय लेने की छूट मिल गई थी।

लेकिन ट्रांसफर पोस्टिंग आदि से जुड़े सर्विस के मामलों पर अभी फैसला होना है। केंद्र सरकार ने 21 मई, 2015 को अधिसूचना जारी कर पब्लिक आर्डर, पुलिस और भूमि के अलावा सर्विस मामलों का क्षेत्राधिकार भी उपराज्यपाल को सौंप दिया था, जिसके खिलाफ दिल्ली सरकार की अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। एसीबी में दिल्ली सरकार के अधिकारों में कटौती वाली केंद्र की 23 जुलाई, 2015 की अधिसूचना को चुनौती देने वाली अपील भी लंबित है।

हाईकोर्ट ने दोनों ही मामलों में दिल्ली सरकार की याचिकाएं खारिज कर दीं थीं। इसके अलावा दिल्ली सरकार की सात और अपील अभी लंबित हैं जिनमें तीन मामले कमिशन ऑफ इन्क्वायरी के हैं और एक सीएनजी से जुड़ा है। दिल्ली सरकार की अपील पर जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने विस्तृत सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस महीने की सात तारीख को दिल्ली सरकार ने अदालत से जल्द फैसला सुनाने का अनुरोध किया था।

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