दिल्ली मेट्रो में महिलाओं के मुफ्त सफर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली सरकार की इस योजना से दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन को घाटा हो सकता है।
नई दिल्ली, जेएनएन। free travel scheme for women in Delhi and buses: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार की महत्वाकांक्षी योजना दिल्ली मेट्रो में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा पर सवाल उठाए। कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल सरकार से पूछा कि वह मुफ्त सौगात क्यों बांट रही है, इससे तो दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) को घाटा हो सकता है। सरकार को जनता के पैसे से इस तरह मुफ्त सौगात बांटने से बचना चाहिए। साथ ही चेताया कि कोर्ट शक्तिहीन नहीं है और इस पर रोक लगा सकता है।
जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने मेट्रो के चौथे चरण के निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण की आधी-आधी कीमत केंद्र और दिल्ली सरकार द्वारा वहन किए जाने के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां की। पीठ ने दिल्ली सरकार के वकील से कहा कि आप मुफ्त सौगात क्यों दे रहे हैं। अगर आप लोगों को मुफ्त यात्रा करने की इजाजत देंगे तो इससे दिल्ली मेट्रो घाटे में जा सकती है। ये जनता का पैसा है सरकार को इसे खर्च करने में सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसे फैसलों से बचना चाहिए।
दिल्ली सरकार की ओर से जब मेट्रो पर कर्ज के भुगतान में चूक होने की स्थिति की बात की गई तो जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि अगर आप लोगों को मुफ्त यात्रा करने की इजाजत देते हैं तो यह समस्या होगी। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि दिल्ली सरकार पर यह सुनिश्चित करने जिम्मेदारी है कि दिल्ली मेट्रो को घाटा न हो और उसकी आर्थिक स्थिति ठीक रहे। अगर मेट्रो को घाटा होता है तो दिल्ली सरकार को वहन करना होगा।
पीठ ने कहा कि एक तरफ आप मुफ्त सौगात बांट रहे हैं और दूसरी तरफ मेट्रो में घाटे की बात करते हुए केंद्र से पैसा दिलाने की मांग कर रहे हैं। आपके पास जो पैसा है वह जनता का है और अगर आप उसका दुरुपयोग करेंगे तो अदालत शक्तिहीन नहीं है वह रोक लगा देगी। हालांकि दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि अभी योजना लागू नहीं हुई है। सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि पिछले पांच साल से मेट्रो को संचालन में कोई घाटा नहीं हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को राहत देते हुए निर्देश दिया कि मेट्रो के चौथे चरण के लिए जमीन अधिग्रहण की कीमत केंद्र और दिल्ली सरकार बराबर-बराबर वहन करेंगी। दोनों को मिल कर कुल 2447.19 करोड़ रुपये का खर्च उठाना है। कोर्ट ने दोनों से इस बावत तौर तरीके तय कर तीन सप्ताह में जमीन की कीमत जारी करने को कहा है। लेकिन केंद्र सरकार ने आधी कीमत वहन करने के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि इस तरह तो सभी राज्य आ जाएंगे और उससे आधी कीमत मांगेंगे। इस पर पीठ ने साफ किया कि यह आदेश सिर्फ दिल्ली के लिए है।
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