चुनावी मौसम में कल निकलेगी 'गधे की बरात', आप भी कर सकते हैं शिरकत
हास्य-व्यंग्य से भरपूर इस नाटक ‘गधे की बरात’ के मंचन के माध्यम से कलाकार राजदरबार से लेकर नई व्यवस्था पर एक साथ चोट करेंगे।
नई दिल्ली, जेएनएन। Lok Sabha Election 2019: लोकसभा चुनाव-2019 को लेकर जहां एक तरफ प्रचार का महासंग्राम शुरू हो चुका है, वहीं राजनीतिक हलचल के बीच संगीत-कला की मंडी कहे जाने वाले 'मंडी हाउस' में 27 अप्रैल (शनिवार) शाम 5 बजे मंडी हाउस स्थित एलटीजी ऑडिटोरियम में हास्य नाटक 'गधे की बरात' का मंचन किया जाएगा। अमर शाह के निर्देशन में हास्य-व्यंग्य से भरपूर इस नाटक ‘गधे की बरात’ के मंचन के माध्यम से कलाकार राजदरबार से लेकर नई व्यवस्था पर एक साथ चोट करेंगे। नाटक इस मायने में प्रासंगिक है, क्योंकि चुनावी मौसम में यह राजनीति पर व्यंग्य करता है। लेखक हरिभाई वडगांवकर द्वारा लिखित यह नाटक समाज में व्याप्त दोहरे मापदंड पर कटाक्ष करता है। नाटक के दौरान समाज के खोखलेपन, अमीर गरीब के बीच की बढ़ती खाई और राजनीति को बारीकी से दर्शाया गया है।
यह है कहानी
इस नाटक में गंगू कुम्हार को एक दिन देवताओं के गुरु बृहस्पति मिल जाते हैं और वह उनके साथ इंद्र दरबार में पहुंच जाता है, जहां पर अप्सरा रंभा नृत्य कर रही होती है। इस दौरान गंधर्व चित्रसेन रंभा का हाथ पकड़ लेता है, जिससे इंद्र क्रोधित हो जाते हैं और उसे श्राप देते हैं कि वह भूलोक पर एक गधे के रूप में जन्म लेगा और उसका यह श्राप उस समय दूर होगा, जब उसकी शादी अंधेर नगरी के राजा चौपट सिंह की बेटी से होगी।
श्राप से मुक्ति पाने की कड़ी में चित्रसेन गधे के रूप में गंगू कुम्हार के घर में रहने लगता है। इस दौरान राजा चौपट सिंह अपने दीवान से राजकुमारी के लिए वर की तलाश करने की बात कहता है। यहां राजकुमारी एक शर्त रखती है कि जो भी व्यक्ति राजमहल की ड्योढ़ी से मुफलिसों की बस्ती तक एक रात में पुल का निर्माण कर देगा, वह उसी से शादी करेगी। इस शर्त के बारे में पूरे नगर में मुनादी करवाई जाती है। एक रात चित्रसेन गंगु कुम्हार से कहता है कि वह एक रात में पुल बना देगा इस बारे में राजा से बात की जाए। गंगु राजा के समक्ष यह बात रखता है और शर्त के अनुसार चित्रसेन एक रात में लोगों के सहयोग से पुल का निर्माण कर देता है। गंगु चित्रसेन की बारात लेकर राजदरबार में पहुंचता है, जहां बुआजी तिलक के समय दूल्हे के रूप में गधे को देखकर राजा को इसकी जानकारी देती है, लेकिन शर्त और वचन के अनुसार राजकुमारी की शादी चित्रसेन के साथ हो जाती है।
इस प्रकार चित्रसेन का श्राप पूरा होता है और वह मुफलिसों की बस्ती से राजमहल तक पहुंच जाता है। इसके बाद चित्रसेन गंगू उसकी पत्नी गंगी को भी पहचानने से इनकार कर देता है और पुल भी तोड़ दिया जाता है। नाटक के माध्यम से यहां यह दिखाया गया है कि जो लोग जनसाधारण के वोटों की ताकत से राजमहल तक पहुंच जाते हैं, बाद में वे जनसाधारण को ही भूल जाते हैं।
नाटक के माध्यम से यह बताया गया है कि सियायत में गरीबों के सिर्फ हमदर्दी हो सकती है, लेकिन जमीन पर जब काम करने की बात आती है तो सियासतदां अपने कदम पीछे खींच लेते हैं।