JNU Protest को छात्र संघ के पूर्व अध्यक्षों ने बताया सही, कहा- शिक्षा का निजीकरण कर रही सरकार
JNU Protest पूर्व अध्यक्षों ने छात्रों द्वारा जेएनयू से संसद की ओर निकाले गए मार्च में कथित तौर पर पुलिस द्वारा बल प्रयोग करने की निंदा करते हुए केंद्र सरकार से जांच की मांग है।
नई दिल्ली [राहुल मानव]। JNU Protest: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में छात्रावास की फीस बढ़ोतरी और इसके नए नियमों को लागू करने के खिलाफ संस्थान के छात्र बीते एक महीने से आंदोलन कर रहे हैं। सोमवार को जेएनयू छात्र संघ के कई पूर्व अध्यक्ष इन छात्रों के समर्थन में आए। वामपंथी राजनीतिक दल सीपीआइएम के नेता एवं वर्ष 1973 में छात्र संघ अध्यक्ष रहे प्रकाश करात, सीपीआइएम के नेता एवं वर्ष 1977-78 में छात्र संघ अध्यक्ष रहे सीताराम येचुरी समेत डॉ डी.रघुनंदन, प्रो सुरजीत मजूमदार व एन साईं बालाजी ने सोमवार को प्रेसवार्ता की।
पुलिस द्वारा बल प्रयोग की हुई निंदा
पूर्व अध्यक्षों ने बीते हफ्ते छात्रों द्वारा जेएनयू से संसद की ओर निकाले गए मार्च में कथित तौर पर पुलिस द्वारा बल प्रयोग करने की निंदा करते हुए कहा कि हमारी केंद्र सरकार से मांग है इस मामले में हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति के अधीन समयबद्ध जांच बैठाई जाए। साथ ही शिक्षण संस्थानों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के ढांचे को सुनिश्चित करते हुए चुने हुए छात्र एवं शिक्षक प्रतिनिधियों को नीति लेने के निर्णय में शामिल किया जाए।
जीडीपी का छह फीसद शिक्षा पर हो खर्च
देश के जीडीपी का छह फीसद शिक्षा पर खर्च किया जाए। सभी पूर्व अध्यक्षों ने कहा कि जेएनयू छात्र संघ की तरफ से 27 नवंबर को देश भर में विश्वविद्यालय की फीस बढ़ोतरी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन का आव्हान किया गया है। इसका पूर्व अध्यक्ष भी समर्थन करते हैं और सभी पूर्व छात्रों एवं अन्य छात्रों से इसमें शामिल होने की अपील करते हैं।
प्रकाश करात ने कहा- यह जेएनयू की परंपरा नहीं
प्रकाश करात ने कहा कि यह जेएनयू की परंपरा रही है कि छात्र विभिन्न मुद्दों पर हमेशा आगे आए हैं। संस्थान के छात्रों ने ही जेएनयू छात्र संघ चुनाव के आयोजित किया था और इसके संविधान के दिशा-निर्देशों का गठन किया था।
1972-73 में मेस की बिल को लेकर हुआ था पहला प्रदर्शन
उस समय वर्ष 1972-73 में मैस (खानपान) के बिलों को 100 रुपये प्रति महीने प्रशासन ने कर दिया था। तब छात्र संघ ने पहला प्रदर्शन किया था। साथ ही उस दौरान दाखिले की नीति को बदलने के लिए भी छात्र संघ ने प्रशासन से बात की थी। जिसे वंचित समाज एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए बदला गया था। साथ ही पूर्व अध्यक्षों ने केंद्र सरकार पर भी आरोप लगाया कि उनकी तरफ से सार्वजनिक विश्वविद्यालयों का निजीकरण किया जा रहा है। देश के शिक्षण संस्थानों में कुलपतियों की नियुक्तियों का राजनीतिकरण किया जा रहा है। साथ ही पुलिस बलों द्वारा छात्रों के साथ उनके प्रदर्शन के दौरान खराब व्यवहार किया जा रहा है।