नेता ही नहीं बड़े दिल वाले इनसान थे अरुण जेटली, फीस के लिए दिए पैसे और पिलाई चायः रजत शर्मा
रजत शर्मा ने अरुण जेटली को याद करते हुए कहा कि मैंने अपना अभिभावक अपने घर का बड़ा खो दिया। अरुण जेटली मेरे लिए सिर्फ नेता नहीं थे दोस्त थे।
नई दिल्ली, जेएनएन। मैं कॉलेज में दाखिले की लाइन में था, काउंटर पर पहुंचा तो फीस में तीन रुपये कम थे। एकाउंटेंट ने डांटा, तभी पीछे से एक आवाज आई.. नए छात्र से बात करने का यह क्या तरीका है। यह कहने वाले युवक ने मुझे पांच रुपये दिए और चाय पिलाई। वह कोई और नहीं, अरुण जेटली थे, जो आगे चलकर एक प्रखर अधिवक्ता और देश के वित्त मंत्री बने।
दिवंगत अरुण जेटली को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ये यादें अपने टीवी चैनल पर एक कार्यक्रम में दिल्ली डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन (डीडीसीए) के अध्यक्ष, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) के अध्यक्ष और जाने-माने पत्रकार रजत शर्मा ने साझा कीं। शर्मा ने जेटली को याद करते हुए कहा कि मैंने अपना अभिभावक, अपने घर का बड़ा खो दिया। अरुण जेटली मेरे लिए सिर्फ नेता नहीं थे, दोस्त थे। दोस्त से ज्यादा मेरे मार्गदर्शक थे। मेरा नाता उनसे तब का है, जब वह नेता नहीं थे और मैं पत्रकार नहीं था।
रजत शर्मा ने कहा कि वह हमेशा जीत और सफलता की ओर देखते थे। हमेशा दूसरों के बारे में, लोगों की भलाई के बारे में सोचते थे। रजत शर्मा ने कहा कि जब पहली बार अरुण जेटली से मुलाकात हुई थी, उस समय मैं एक साधारण परिवार से था। दस भाई-बहनों का बड़ा परिवार था। पुरानी दिल्ली के एक छोटे से कमरे में रहता था। वर्ष 1973 में कॉलेज की फीस देने के लिए दो-दो, चार-चार रुपये, पांच-पांच रुपये के नोट इकट्ठा किए थे।
श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में दाखिले के लिए लाइन में लगा था। जब एकाउंटेंट के सामने दो-दो, पांच-पांच रुपये के नोट गिन रहा था तो उसने डांटते हुए कहा कि ये छोटे-छोटे नोट लेकर आए हो, वक्त बर्बाद कर रहे हो। जब पूरी फीस गिनकर दी तो उसमें तीन रुपये कम थे तो एकाउंटेंट ने और जोर से डांटा। मैं परेशान था कि वापस लाइन में पीछे जाना पड़ेगा। घर से तीन रुपये लाने पड़ेंगे। तभी पीछे से आवाज आई, नए छात्र से बात करने का यह कैसा तरीका है। वह आवाज थी अरुण जेटली की।
उन्होंने अपनी जेब से पांच का नोट निकाला और मुझे दे दिया और कहा कि फीस जमा करो। मैंने मना किया तो कहा कि अभी फीस जमा करो, बाद में बात करेंगे। यह कहते हुए उन्होंने कंधे पर हाथ रखा और कहा कि सारे पैसे तुमने दे दिए, अब तो चाय के पैसे भी नहीं होंगे। चलो, तुम्हें चाय पिलाता हूं। इस तरह कॉलेज की कैंटीन में पहली बार उनसे मेरी मुलाकात हुई। उन्होंने जो कुछ भी उस समय कहा, वह आज भी मुझे याद है। मेरी फीस जमा हो गई, दाखिला हो गया। जो हाथ मेरी मदद के लिए आगे बढ़ा था, उस दिन जो हाथ मेरे कंधे पर रखा गया था, वह आज छूट गया।