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Delhi Assembly Election 2020: मुस्लिम मतदाताओं ने भी छोड़ा दिल्ली में कांग्रेस का 'हाथ'

Delhi Assembly Election 2020 लगातार दूसरे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस शन्यू पर सिमट गई है। इस बीच लगातार पार्टी नेता ही एक-दूसरे पर हमले बोल रहे हैं।

By JP YadavEdited By: Published: Thu, 13 Feb 2020 09:00 AM (IST)Updated: Thu, 13 Feb 2020 09:00 AM (IST)
Delhi Assembly Election 2020: मुस्लिम मतदाताओं ने भी छोड़ा दिल्ली में कांग्रेस का 'हाथ'
Delhi Assembly Election 2020: मुस्लिम मतदाताओं ने भी छोड़ा दिल्ली में कांग्रेस का 'हाथ'

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। Delhi Assembly Election 2020 : दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस फिर बुरी तरह हारी है। लगातार दूसरे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस शन्यू पर सिमट गई है।  इस बीच लगातार पार्टी नेता ही एक-दूसरे पर हमले बोल रहे हैं। 

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मुस्लिम मतदाता भी छिटक गए

कांग्रेस ने बड़े जोर-शोर से सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर मुस्लिमों का समर्थन किया। बावजूद इसके मुस्लिमों ने कांग्रेस को नकार दिया। दिल्ली विधानसभा के लिए मुस्लिम मतदाताओं ने पिछली बार की तरह आप को ही समर्थन दिया है। मालूम हो कि दिल्ली में करीब 22 फीसद मुस्लिम मतदाता हैं, जो कांग्रेस के साथ नहीं आए। ओखला, सदर बाजार, मटियामहल, बल्लीमारान व चांदनी चौक जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में आप को लेकर लोगों का रुझान साफ नजर आया। इसके अलावा ओखला, सीमापुरी, सीलमपुर व बाबरपुर में भी कांग्रेस बुरी तरह हार गई।

 शीला दीक्षित के नाम व काम के ही भरोसे थी कांग्रेस

कांग्रेस की जबर्दस्त हार के पीछे एक प्रमुख वजह यह भी रही कि पार्टी सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नाम और काम के सहारे चुनाव लड़ रही थी। इससे इतर कांग्रेस के पास ठोस मुद्दों का पूरी तरह अभाव था। यहां तक कि पार्टी शीला की मौत के बाद इससे आगे कुछ नहीं सोच पाई।

पार्टी के चुनावी एजेंडे में 15 साल दिल्ली में मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के कार्यकाल में किए गए विकास कार्यों के अलावा सीएए और एनआरसी का ही मुददा था। लेकिन, यह दोनों ही जनता के लिए बेमानी साबित हुए। पार्टी के पास न तो नया विजन था और न ही मजबूत जनाधार वाले प्रत्याशी। हैरत की बात यह है कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने भी दिल्ली के चुनाव और प्रचार में कोई रुचि नहीं ली। अस्वस्थ होने के कारण सोनिया गांधी जहां पूर्व निर्धारित एकमात्र जनसभा भी नहीं कर सकीं।

वहीं राहुल गांधी ने सिर्फ चार जबकि प्रियंका वाड्रा ने दो ही जनसभाएं कर औपचारिकता पूरी कर ली। स्थानीय से लेकर केंद्रीय स्तर तक का प्रचार अभियान बेअसर साबित हुआ। मतदान से पहले कांग्रेस को पूरा भरोसा था कि मुस्लिम मतदाता उनके पक्ष में मतदान करेगा, लेकिन अंतिम समय में मुस्लिम आप में खिसक गए। कांग्रेस खासी चिंतित है कि सीएए-एनआरसी के खिलाफ उनके साथ खड़े होने के बावजूद मुस्लिमों ने उन्हें वोट नहीं किया। बल्लीमारान में जरूर मुसलमानों ने कांग्रेस को कुछ वोट डाले, इसके अलावा किसी अन्य सीट पर ऐसा देखने को नहीं मिला। 


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