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Delhi Metro : डीएमआरसी निदेशक पद पर केंद्र और दिल्ली के भिड़ने के आसार

दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने इसे लेकर डीएमआरसी को पत्र लिखा है। इसमें कहा गया है कि मेट्रो में दिल्ली सरकार बराबर की हिस्सेदार है।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 12 Nov 2019 08:46 AM (IST)Updated: Tue, 12 Nov 2019 08:46 AM (IST)
Delhi Metro : डीएमआरसी निदेशक पद पर केंद्र और दिल्ली के भिड़ने के आसार
Delhi Metro : डीएमआरसी निदेशक पद पर केंद्र और दिल्ली के भिड़ने के आसार

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) बोर्ड में दिल्ली सरकार के प्रतिनिधियों को जगह नहीं मिलने का मुद्दा फिर गरमा गया है। दिल्ली सरकार ने इस मुद्दे को लेकर डीएमआरसी से नाराजगी जताई है। दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने इसे लेकर डीएमआरसी के प्रबंध निदेशक को एक कड़ा पत्र लिखा है। इसमें कहा है कि मेट्रो में दिल्ली सरकार बराबर की हिस्सेदार है, तो दिल्ली सरकार को आमंत्रित किए बिना बोर्ड की बैठक कैसे कर ली गई। उन्होंने कहा है कि भविष्य में इसे दोहराया न जाए।

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दरअसल, दिल्ली सरकार द्वारा भेजे गए चार नामों पर केंद्र सरकार ने पूर्व में विरोध किया था, इसके बाद नियुक्ति नहीं हो सकी थी। केंद्र का कहना कि बोर्ड में निदेशक पद के लिए नौकरशाह के नाम दिए जाएं। वहीं दिल्ली सरकार का कहना है कि पूर्व में भाजपा सरकार के समय में भी इस तरह के पदों पर राजनीतिक लोगों को बैठाया जाता रहा है। ऐसे में एक बार फिर इस मामले पर केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव की आशंका बढ़ गई है। इसी मामले को लेकर गहलोत ने पत्र डीएमआरसी के एमडी को पत्र लिखा है। इसमें यह भी कहा है कि वह दिल्ली सरकार की ओर से नामित निदेशक मंडल पर निर्णय लेने में तेजी दिखाएं। साथ ही दिल्ली सरकार के प्रतिनिधियों के बिना बोर्ड बैठक में महत्वपूर्ण निर्णय न लिया जाए।

दिल्ली सरकार ने 13 जुलाई को डीएमआरसी के स्वतंत्र निदेशक बोर्ड में चार लोगों को नामित किया था। इस पर चार महीने बाद भी कोई निर्णय नहीं लिया गया। अब 26 सितंबर को हुई बोर्ड की बैठक के मिनट्स से पता चला कि एजेंडे में दिल्ली सरकार द्वारा नामित निदेशकों के मसले पर फैसला लिए जाने का मुद्दा भी शामिल था, लेकिन इसे बिना किसी निर्णय के वापस कर कानूनी राय के लिए भेज दिया गया। जबकि बैठक में बोर्ड ने कई महत्वपूर्ण फैसलों पर निर्णय लिए। इसमें दिल्ली सरकार के किसी प्रतिनिधि के बिना ही महत्वपूर्ण फैसलों पर मुहर लगा दी गई। ऐसे में बोर्ड की इस बैठक में लिए गए नर्णय अवैध और अव्यावहारिक हैं।

डीएमआरसी में दिल्ली सरकार का 50 फीसद शेयर है, इसलिए दिल्ली सरकार निदेशकों की संख्या के मामले में बराबर की हिस्सेदारी रखती है। डीएमआरसी को दिल्ली सरकार के प्रतिनिधित्व के बिना निर्णय लेना बंद कर देना चाहिए। बोर्ड की बैठक में फैसला किए बिना दिल्ली सरकार की सिफारिश पर कानूनी राय लेना भी गैरकानूनी है। डीएमआरसी को सरकार के नामित किए गए लोगों को निदेशक पद पर नियुक्त करना चाहिए।

दिल्ली सरकार ने डीएमआरसी बोर्ड के निदेशक मंडल में अपनी ओर से चार प्रतिनिधियों को मनोनीत किया है। इसमें राघव चड्ढा, आतिशी, डायलॉग एवं डेवलपमेंट कमीशन (डीडीसी) के उपाध्यक्ष जस्मिन शाह और चार्टर्ड अकाउंटेंट नवीन गुप्ता शामिल हैं। डीएमआरसी बोर्ड में 17 सदस्य हैं, जिनमें केंद्र और दिल्ली सरकार के पांच-पांच सदस्य शामिल हैं। लेकिन डीएमआरसी बोर्ड ने दिल्ली सरकार द्वारा भेजे गए नामों पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है। यह पहली बार है कि गैर-नौकरशाहों को सरकार ने डीएमआरसी बोर्ड के लिए नामित किया है।

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