'आप' को नहीं मिल रही जनता की सहानुभूति, उप चुनाव से बचना चाहती है पार्टी
'आप' नेता इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि सत्ता में आने के बाद से लगातार मंत्रियों और विधायकों पर लग रहे आरोपों से पार्टी की छवि बुरी तरह प्रभावित हुई है।
नई दिल्ली [जेएनएन]। आम आदमी पार्टी (आप) के लिए पांच साल में यह पहला मौका है जब पार्टी को लेकर किसी तरह का विवाद होने पर उसे जनता की तरफ से सहानुभूति नहीं मिल रही है। इसे लेकर पार्टी नेतृत्व और उन 20 लोगों की मुश्किलें बढ़ रही हैं जो कुछ दिन पहले तक विधायक रहे हैं। सूत्रों की मानें तो यही कारण है कि 'आप' उप चुनाव से बचना चाह रही है।
बात रखने का समय नहीं दिया
'आप' संसदीय सचिव मामले में दिए गए फैसले पर शुरू से ही सवाल उठाती रही है। 19 जनवरी को चुनाव आयोग ने जब इस मामले की फाइल राष्ट्रपति के पास भेजी थी उसी दिन से 'आप' ने आरोप लगाना शुरू कर दिया था कि हमें अपनी बात रखने का समय नहीं दिया गया। राष्ट्रपति के फैसले के बाद से 'आप' ने हो हल्ला और तेज कर दिया था। इस फैसले के विरोध में पार्टी अदालत भी गई है। हालांकि अभी तक राहत तो नहीं मिली है, लेकिन अदालत ने यह जरूर कहा है कि अभी उपचुनाव की घोषणा न करें।
विधानसभा चुनाव पर भी असर पड़ेगा
पार्टी सूत्रों के अनुसार संसदीय सचिव मामले में दिए गए फैसले पर सवाल उठाना उप चुनाव को टालने के लिए किया जा रहा है, क्योंकि दिल्ली में इस समय माहौल 'आप' के समर्थन में नहीं है। चिंता इस बात की भी है कि अगर उपचुनाव में हार हुई तो दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी इसका असर पड़ेगा।
पार्टी की छवि तरह प्रभावित हुई है
पार्टी के नेता इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि सत्ता में आने के बाद से लगातार मंत्रियों और विधायकों पर लग रहे आरोपों से पार्टी की छवि बुरी तरह प्रभावित हुई है। बिजली पानी पर सब्सिडी देकर जनता को अधिक समय तक नहीं भरमाया जा सकता है। दूसरी ओर केंद्र से सीधी लड़ाई के चलते दिल्ली में विकास कार्य ठप हैं। कार्यकर्ताओं की रिपोर्ट में भी सामने आया है कि अयोग्य किए गए विधायकों को जनता की सहानुभूति नहीं मिल रही है।
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