National Sports Day: हॉकी के जादूगर को याद करने के साथ सीएम योगी आदित्यनाथ ने नवोदित खिलाड़ियों को दीं शुभकामना
National Sports Day सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ ही डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य व डॉ. दिनेश शर्मा ने हॉकी के जादूगर की जयंती पर उनको नमन करने के साथ ही उनके योगदान पर प्रकाश डाला।
लखनऊ, जेएनएन। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को देश आज उनकी 115वीं जयंती पर याद कर रहा है। प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी मेजर ध्यानचंद की जयंती पर उनको नमन किया। इसके साथ ही उन्होंने नवोदित खिलाडिय़ों को मेजर ध्यानचंद के समर्पण, त्याग, कड़ी मेहनत तथा अनुशासन से सीख लेने की सलाह दी।
सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ ही डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य व डॉ. दिनेश शर्मा तथा उत्तर प्रदेश की सरकार के मंत्रियों ने भी हॉकी के जादूगर की जयंती पर उनको नमन करने के साथ ही देश के लिए उनके योगदान पर प्रकाश डाला। देश मेजर ध्यानचंद की जयंती को खेल दिवस के रूप में मनाता है। इस दिन यानी 29 अगस्त को केंद्र सरकार खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाडिय़ों के साथ प्रशिक्षकों तथा पुराने खिलाडिय़ों को सम्मानित करती है। इस वर्ष कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण राष्ट्रपति भवन में होने वाला समारोह वर्चअल होगा। खिलाडिय़ों को उनके उकृष्ट प्रदर्शन के लिए सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार के साथ ही अर्जुन पुरस्कार, प्रशिक्षकों को द्रोणाचार्य पुरस्कार और पुराने खिलाडिय़ों को खेल के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए मेजर ध्यानचंद पुरस्कार प्रदान किया जाता है। इस बार कोविड-19 महामारी के कारण वर्चुअल समारोह में राष्ट्रीय खेल पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने किया नमन
सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि मेजर ध्यानचंद का योगदान देश के लिए शान है। उनकी उपल्बियों पर हाकी वैश्विक खेल जगत में भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक, हॉकी स्पर्धा के विभिन्न विश्व विजयी अभियानों के शिल्पकार, विश्व हॉकी के सार्वकालिक महान खिलाड़ी, पद्म भूषण मेजर ध्यानचंद जी को उनकी जयंती पर कृतज्ञतापूर्ण नमन। आपकी खेल प्रतिभा, आपकी राष्ट्रभक्ति भारतीयों के लिए प्रेरणास्पद है।
उन्होंने कहा कि हॉकी के जादूगर पद्म भूषण मेजर ध्यानचंद जी की गौरवपूर्ण स्मृति को समॢपत 'राष्ट्रीय खेल दिवस' के अवसर पर खेल की विभिन्न विधाओं में वैश्विक मंचों पर भारत की गरिमा वृद्धि करने वाले सभी खिलाडिय़ों के प्रति सादर कृतज्ञता ज्ञापन। नवोदित खिलाडिय़ों को उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं।
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि ओलंपिक खेलों में भारत को तीन बार स्वर्ण पदक दिलवाने वाले एवं भारतीय हॉकी को पहचान दिलाने वाले हॉकी के जादूगर पद्मभूषित मेजर ध्यानचंद सिंह जी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन।
ओलंपिक खेलों में भारत को 3 बार स्वर्ण पदक दिलवाने वाले एवं भारतीय हॉकी को पहचान दिलाने वाले 'हॉकी के जादूगर' पद्मभूषित मेजर ध्यानचंद सिंह जी की जयंती पर उन्हें शत् शत् नमन।
"राष्ट्रीय खेल दिवस" की समस्त देश एवं प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।#NationalSportsDay pic.twitter.com/sIpvYMFipb
— Keshav Prasad Maurya (@kpmaurya1) August 29, 2020
इनके साथ ही डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा, कैबिनेट मंत्री ब्रजेश पाठक, आशुतोष टंडन, नंद गोपाल गुप्ता 'नंदी' के साथ अन्य मंत्रियों ने भी मेजर ध्यानचंद को नमन करने के साथ-साथ उनकी उपल्बियों पर प्रकाश डाला।
हॉकी के जादूगर के स्टिक वर्क के कायल तो हिटलर भी हो गए थे और 29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में जन्मे ध्यानचंद को अपने देश की ओर से खेलने का न्यौता देने के साथ जर्मन सेना का जनरल तक बनाने का आश्वासन दिया। इतने बड़े ऑफर को भी देशभक्त मेजर ध्यानचंद ने ठुकरा दिया था। पद्मभूषण मेजर ध्यानचंद का तीन दिसंबर, 1979 को दिल्ली में निधन हो गया। झांसी में उनका अंतिम संस्कार उसी मैदान पर किया गया, जहां वे हॉकी खेला करते थे। प्रयागराज में जन्मे मेजर ध्यानचंद ने झांसी को अपनी कर्मभूमि बनाया था।
हॉकी स्टीक और मेजर के बीच कुछ ऐसा रिश्ता था जिसने उनके खेल देखने वालों के दीवाना बना दिया। जिस किसी ने भी इस भारतीय धुरंधर का खेल एक बार देखा वो उनके खेल का कायल हो गया। जर्मनी के तानाशाह हिटलर हो या फिर ऑस्ट्रेलियन दिग्गज डॉन ब्रैडमैन। ध्यानचंद के बारे में मशहूर था कि जब वह गेंद लेकर मैदान पर दौड़ते थे तो ऐसा लगता था जैसे मानों गेंद उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। भारत के स्वॢणत हॉकी इतिहास के इस महानायक ने 1928, 1932 और 1936 ओलंपिक गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया। तीनों ही ओलंपिक में भारत ने गोल्ड मेडल अपने नाम किया था।
ध्यान सिंह बन गए ध्यान चंद
मेजर की रैंक हासिल करने वाले ध्यानचंद महज 16 साल की उम्र में भारतीय सेना में भर्ती हो गए थे। उनका नाम ध्यानचंद नहीं बल्कि ध्यान सिंह था। खेल के प्रति जुनून ने ध्यान सिंह को ध्यानचंद का नाम दिलाया। अपने खेल को सुधारने के लिए वह सिर्फ और सिर्फ प्रैक्टिस करने के मौके तलाशते थे। यहां तक की वह अक्सर चंद की रौशनी में प्रैक्टिस करते नजर आते थे। चांद की रौशनी में प्रैक्टिस करता देख उनके दोस्तों ने नाम के साथ 'चांद' जोड़ दिया जो 'चंद' हो गया।
हॉकी स्टिक तोड़कर की गई तसल्ली
एम्सटर्डम ओलंपिक 1928 में ध्यानचंद ने सर्वाधिक 14 गोल दागे थे और अपनी टीम को स्वर्ण पदक दिलाया था। मेजर गेंद मिलने के बाद जिस तरह से उस पर लंबे समय तक कब्जा बनाए रखते थे लोगों को शक होता था। ध्यानचंद की इस प्रतिभा पर नीदरलैंड्स को शक हुआ और ध्यानचंद की हॉकी स्टिक तोड़कर इस बात की तसल्ली की गई, कहीं वह चुंबक लगाकर तो नहीं खेलते हैं।