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Jaipur Literature Festival: राजनीतिक लाभ के लिए वीर सावरकर को जानबूझकर बनाया जा रहा निशाना

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के पहले दिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर सावरकर पर एक सत्र हुआ।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 23 Jan 2020 09:42 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 01:41 AM (IST)
Jaipur Literature Festival: राजनीतिक लाभ के लिए वीर सावरकर को जानबूझकर बनाया जा रहा निशाना
Jaipur Literature Festival: राजनीतिक लाभ के लिए वीर सावरकर को जानबूझकर बनाया जा रहा निशाना

जयपुर, जागरण संवाददाता। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के पहले दिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर सावरकर पर एक सत्र हुआ। इसमें जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के प्रोफेसर मकरंद आर. परांजपे ने खुलकर कहा कि वीर सावरकर को राजनीतिक लाभ के लिए बार-बार निशाना बनाया जाता है, जबकि भारत की स्वतंत्रता, संस्कृति और मूल्यों की रक्षा के लिए किया गया उनका योगदान किसी अन्य से कम नहीं। यह बात विचारोत्तेजक सत्र 'विवेकानंद, सावरकर एंड पटेल : एकोज फ्रॉम द पास्ट' में परांजपे ने विक्रम संपत और हिंदोल सेनगुप्ता से बातचीत में कही।

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विवेकानंद, पटेल और वीर सावरकर पर चर्चा

स्वामी विवेकानंद, सरदार वल्लभ भाई पटेल और वीर सावरकर पर चर्चा करते हुए वक्ताओं ने इन्हें भारत की मूल आत्मा को बचाए रखने वाले नेतृत्वकर्ता बताया। कहा गया कि यदि अपने-अपने समय में ये न होते तो भारत का मूल विचार बहुत हद तक प्रभावित हो जाता। परांजपे ने कहा- 'सावरकर ने ही नहीं बल्कि स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल ने भी दया याचिका दायर की थी, किंतु सावरकर की दया याचिका को इसलिए बार-बार चर्चा में लाया जाता है ताकि इसका राजनीतिक लाभ उठाया जा सके। यह सब एक तरह की नादानी, चालाकी और षड्यंत्र है।'

जैसा पेश किया जा रहा, वैसे थे नहीं

वक्ताओं ने स्पष्ट कहा कि सावरकर को आज जैसा पेश किया जा रहा है, वे वैसे कभी थे ही नहीं। उन्होंने तो भारत में व्याप्त कुरीतियों पर कड़े प्रहार किए थे। उन्होंने स्वतंत्रता के लिए आंदोलन किया, अंग्रेजों का विरोध किया। विरोध का उनका तरीका अपना था। जरूरी नहीं कि देश की सेवा का सबका तरीका एक-सा हो। यदि उनका तरीका गांधीजी और जवाहरलाल नेहरू से अलग था, इसका आशय यह तो नहीं कि उनके योगदान को भुला दिया जाए। हद तो यह है कि उनके योगदान को भुलाना तो दूर, षड्यंत्रपूर्वक बदलकर पेश किया जा रहा है।

तीन भाई, तीनों की अलग विचारधारा

सावरकर की सहिष्णुता पर भी चर्चा हुई। बताया गया कि वे तीन भाई थे और तीनों एक ही घर में रहते थे। तीनों की विचारधारा अलग-अलग थी, किंतु फिर भी उन्होंने कभी विवाद नहीं किया। एक-दूसरे के विचार में हस्तक्षेप नहीं किया। यह थी उनकी समझ और सहिष्णुता कि वे सभी विचारों को सम्मान देते थे। ये बात और है कि उनका काम करने का तरीका अपना था।


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