Maharashtra Political Crisis: दल-बदल विरोधी कानून की 5 खामियां जिसका फायदा उठाते हैं दल, क्या हैं सुधार के सुझाव
Maharashtra Political Crisis महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट के बीच दल-बदल कानून की बार-बार चर्चा हो रही है। इसका मकसद सरकार को स्थाईत्व प्रदान करने के लिए दल-बदल को रोकना है। हालांकि ये कानून अब तक कई बार फेल साबित हुआ है।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। महाराष्ट्र का राजनीतिक संकट (Maharashtra Political Crisis) देश में कोई नया नहीं है। इससे पहले भी तमाम राज्यों में इस तरह का राजनीतिक संकट देखने को मिलता रहा है। चुनाव बाद विधायकों-सांसदों द्वारा दल-बदल गैरकानूनी है, बावजूद राजनीतिक पार्टियां और राजनेता इसकी कमियों का फायदा उठाते रहे हैं। नतीजतन सरकार को स्थिरता प्रदान के लिए बना ये कानून पूरी तरह से फेल साबित हो रहा है। आइये जानते हैं क्या हैं दल-बदल विरोधी कानून की खामियां और क्या हैं सुधार के सुझाव? किन स्थितियों में किसी विधायक या सांसद की सदस्यता खत्म हो सकती है?
सदस्यता खत्म करने का अधिकारी किसके पास
किसी विधायक या सांसद की सदस्यता समाप्त करने का निर्णय विधानसभा स्पीकर अथवा संसद अध्यक्ष द्वारा ही लिया जा सकता है। इसके अलावा अपने एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विधायक अथवा सांसद अपने निस्कासन को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दे सकते हैं।
दल-बदल विरोधी कानून की खामियां
1. दल-बदल मामले में कार्रवाई की कोई निश्चित समय-सीमा तय नहीं है। कई ऐसे मामले हैं जब विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो गया, लेकिन स्पीकर ने दल-बदल शिकायत पर निर्णय ही नहीं लिया। इस दौरान संबंधित सदस्य दूसरे दल में मंत्री भी रहा।
2. दल-बदल कानून के तहत केवल व्यक्तिगत तौर पर ही एक पार्टी छोड़कर, दूसरे में जाने वाले नेता के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।
3. नेताओं के समूह द्वारा एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाने पर किसी तरह की कार्रवाई का प्रावधान है।
4. दल-बदल के लिए प्रेरित करने वाले अथवा दूसरी पार्टी के सदस्यों को अपनाने वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई का कोई प्रावधान नहीं है।
5. राजनीतिक दल पर कोई कार्रवाई न होने के कारण कई बार पार्टियां दूसरे दल के नेताओं के समूह को मिलाने के लिए अपने पक्ष में भी इस कानून का उपयोग करती हैं।
किन स्थिति में जा सकती है विधानसभा व लोकसभा सदस्यता
1. किसी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने वाला नेता खुद पार्टी से इस्तीफा दे या सदन में पार्टी की इच्छा के खिलाफ वोट करे।
2. सदन के अंदर अथवा बाहर दिया गया भाषण अथवा व्यक्तव्य या आपत्तिजनक आचरण की वजह से भी सदस्यता खत्म हो सकती है।
3. निर्दलीय सांसद/विधायक चुने जाने के बाद, अगर किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है तो भी उसकी सदस्यता जा सकती है।
4. सदन में नामित सदस्य, अपने नाम की घोषणा होने के बाद छह माह के भीतर किसी राजनीतिक दल में शामिल हो सकते हैं, उसके बाद नहीं।
दल-बदल कानून में सुधार के सुझाव
1. पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने सुझाव दिया था कि केवल नो-कॉफिडेंस मोशन के दौरान सरकार बचाने के लिए इस कानून का इस्तेमाल होना चाहिए।
2. कुछ जानकारों का मानना है कि दल-बदल कानून अब तक पूरी तरह से फेल रहा है। लिहाजा इसे खत्म कर देना चाहिए।
3. चुनाव आयोग ने सुझाव दिया था कि चुने गए सदस्यों की सदस्यता खत्म करने का फैसला लेने का अधिकार उसके पास रहना चाहिए।
4. कुछ अन्य लोगों का सुझाव है कि दल-बदल संबंधी मामलों में सुनवाई और सदस्यता खत्म करने का अधिकार राष्ट्रपति व राज्यपाल के पास होना चाहिए।
5. पूर्व में सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि संसद को उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में दल-बदल संबंधी मामलों के लिए एक ट्रिब्यूनल का गठन करना चाहिए।
6. सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में एक मामले में सलाह दी थी कि विधानसभा स्पीकर अथवा संसद अध्यक्ष द्वारा अधिकतम तीन माह के भीतर दल-बदल संबंधित मामलों में फैसला ले लेना चाहिये।