अमेठी में तपस्या से घर-घर पहुंची 'तुलसी', लगातार संघर्ष से कांग्रेस के अभेद्य दुर्ग को ढहाया
स्मृति ईरानी जब 2014 में जब अमेठी पहुंची और कांग्रेस के कद्दावर नेता राहुल गांधी के खिलाफ लोकसभा चुनाव में ताल ठोंकी तो लोगों ने उनको गंभीरता से नहीं लिया।
अमेठी [अभिषेक मालवीय]। कांग्रेस के गढ़ में इसे मोदी मैजिक कहें या फिर पिछले पांच वर्ष की कड़ी तपस्या। भाजपा की स्मृति ईरानी ने वह कर दिखाया जिसका किसी को अंदाजा नहीं था। इसके पीछे सिर्फ एक वजह ही सामने आई है, अमेठी की जनता से लगातार संवाद।
स्मृति ईरानी जब 2014 में जब अमेठी पहुंची और कांग्रेस के कद्दावर नेता राहुल गांधी के खिलाफ लोकसभा चुनाव में ताल ठोंकी तो लोगों ने उनको गंभीरता से नहीं लिया। चुनाव में उनकी लगातार सक्रियता से राहुल गांधी वहां से बंपर वोट से जीत दर्ज करने में नाकाम रहे। चुनाव हारने के बाद और कोई नेता होता तो फिर उस लोकसभा क्षेत्र में पलट कर नहीं देखता। स्मृति ईरानी ने इसको झुठला दिया। वह तो अमेठी से ऐसा जुड़ी की लगातार लोगों से संवाद किया। उन्होंने अमेठी से रिश्ते को बनाए रखा। लगातार जनता के बीच पहुंचकर कड़ी तपस्या की। इसी तपस्या का परिणाम रहा कि कांग्रेस के अभेद्य दुर्ग को वह भेदने में सफल रही और सबसे बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को हराकर देश में सबसे बड़ी जीत दर्ज की।
लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम ने अमेठी में एक नये अध्याय का आरंभ कर दिया है। भाजपा की नेता व टीवी सीरियल में तुलसी का किरदार निभाने वाली स्मृति ईरानी आज अमेठी के घर-घर पहुंच गई है। वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में 20 दिन की मेहनत से उन्होंने कांग्रेस किले को ध्वस्त करने की नींव रख दी थी। पिछले चुनाव में उन्हें 300748 मत मिले थे और राहुल गांधी की जीत के अंतर को कम करते हुए एक लाख तक पहुंच दिया। 2019 में उन्होंने विरासत की सियासत को ही खत्म करते हुए 55120 मतों से विजय हासिल की। स्मृति ने कांग्रेस के राहुल गांधी के पिछले तीन लोकसभा चुनाव के 4,64,195 मतों के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया। 2019 में स्मृति ईरानी ने 4,68,514 मत प्राप्त किया। स्मृति के इस जीत का श्रेय उनके परिश्रम को ही जाता है।
स्मृति ने 2014 में मिली हार के बाद भी अमेठी से रिश्ता नहीं तोड़ा। केंद्र में मंत्री पद मिला तो वह लगातार दौरे करती रही और हर दौरे में अमेठी को उपहार दिया। जगदीशपुर विधानसभा में पिपरी बांध हो या फिर खाद रैक प्वाइंट। केंद्रीय विद्यालय से लेकर डा. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय की सैटेलाइट शाखा। अमेठी में केंद्र व प्रदेश की सरकार की योजना का लाभ देने भी अमेठी में पहुंची।
अधिसूचना लागू होने के बाद वह 2019 में 4अप्रैल को अमेठी में पहुंची इसके बाद मतदान तक अमेठी में बनी रही। इस बार चुनाव के तीस दिन तो पूरी तपस्या की। उसी का परिणाम रहा कि विजय हासिल की। उनकी सक्रियता को देखते हुए कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी के साथ उनकी बहन प्रियंका वाड्रा भी अमेठी में जुट गईं। माहौल कुछ विपरीत लगा तो राहुल गांधी ने केरल के वायनाड से नामांकन कर दिया।
कांग्रेस नहीं तोड़ पाई 21 वर्ष का मिथक
अमेठी में लोकसभा चुनाव 1967 में शुरू हुआ था। शुरुआती दो लोकसभा चुनाव में सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा, लेकिन 1977 में संजय गांधी की हार हुई और सीट हाथ से छूट गई। कांग्रेस ने फिर वापसी की, लेकिन 21 वर्ष के अंतराल पर वर्ष 1998 में भाजपा से संजय सिंह ने कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा को हरा दिया। 21 वर्ष बाद एक बार फिर भाजपा की स्मृति ईरानी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को हरा कर इतिहास दोहरा दिया। कांग्रेस इस मिथक को तोड़ने में पूरी तरह नाकाम रही।
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