Lok Sabha Election 2019: आखिरी चरण में है BJP का लिटमस टेस्ट, चार केंद्रीय मंत्रियों की है परीक्षा
लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण का वोट 19 मई को डाला जाएगा। इस चरण में एनडीए की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इस चरण में चार केंद्रीय मंत्रियों की असली परीक्षा होगी। जानिए इस खबर में...
पटना [रमण शुक्ला]। सातवां यानी आखिरी चरण भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इस दौर में जिन आठ संसदीय क्षेत्रों में 19 मई को मतदान होना है, उनमें से चार में केंद्रीय मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। पटना साहिब में रविशंकर प्रसाद, आरा में आरके सिंह, बक्सर में अश्विनी कुमार चौबे और पाटलिपुत्र में रामकृपाल यादव।
रविशंकर प्रसाद राज्यसभा के सदस्य हैं। पाटलिपुत्र में राजद ने लालू प्रसाद की पुत्री मीसा भारती को उम्मीदवार बनाया है, जो राज्यसभा की सदस्य हैं। मतदान से यह तय होगा कि ये दोनों लोकसभा के सदस्य बनेंगे या राज्यसभा में ही दिन पूरे करने होंगे।
सातवें चरण में एनडीए में सर्वाधिक पांच उम्मीदवार भाजपा के हैं। रालोसपा के दो और जदयू से एक उम्मीदवार। भाजपा के पांच उम्मीदवारों में से चार केंद्रीय मंत्री हैं। यह चरण इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अभी अच्छा-खासा कार्यकाल बचे होने के बावजूद राज्यसभा के दो सदस्य प्रत्यक्ष निर्वाचन के जरिए जनप्रतिनिधि बनने के लिए बेताब हैं।
पटना साहिब, पाटलिपुत्र, आरा, बक्सर और सासाराम पर फिलहाल भाजपा का कब्जा है। नालंदा पर जदयू का। जहानाबाद और काराकाट में पिछली बार एनडीए के बैनर तले रालोसपा को जीत मिली थी। जदयू पिछली बार अपने बूते चुनाव मैदान में था। इस बार वह एनडीए का हिस्सा है। इस बार रालोसपा एनडीए से छिटक कर महागठबंधन में शामिल हो गई है।
छह सीटों पर पुराने लड़ाके ही मैदान में हैं। एक तरफ जीत केरिकार्ड को बरकरार रखने के लिए मशक्कत करने वाले तो दूसरी तरफ पिछली हार का बदला लेने के लिए जूझने वाले। केवल पटना साहिब और नालंदा के उम्मीदवार पहली बार एक-दूसरे से टकरा रहे।
भाजपा ने रालोसपा के हिस्से वाली दोनों सीटें (काराकाट और जहानाबाद) जदयू के हवाले कर दी है। नालंदा उसका अपना गढ़ है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला होने के कारण यह बेहद प्रतिष्ठित सीट है।निर्वतमान सांसद कौशलेंद्र कुमार यहां से हैट्रिक लगाने के लिए रात-दिन एक किए हुए हैं। काराकाट में महाबली सिंह जदयू केउम्मीदवार हैं, जो 2009 में यहां के विजयी रहे थे। जहानाबाद में चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी पर पार्टी ने दांव लगा रखा है।
नालंदा
यहां कभी विश्व का पहला विश्वविद्यालय हुआ करता था। इसी कारण इसे ज्ञान की धरती कहते हैं। इसकी नई पहचान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला होना है। मोदी लहर के बावजूद पिछली बार जदयू के खाते में जो दो सीटें गई थीं, उनमें से एक नालंदा भी है। दूसरी सीट पूर्णिया की रही।
नालंदा में इस बार भी कौशलेंद्र कुमार जदयू के उम्मीदवार हैं, जो नीतीश के नाम-काम पर हैट्रिक लगाने की जुगत में हैं। महागठबंधन ने यह सीट हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को सौंप रखी है, अशोक कुमार उसके प्रत्याशी हैं। दोनों पहली बार एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। गया के रहने वाले अशोक की ससुराल नालंदा में है। पिछली बार लोजपा के सत्यानंद शर्मा मामूली मतों के अंतर से हार गए थे।
जहानाबाद
कभी कम्युनिस्टों की धरती रही जहानाबाद ने आगे चलकर समाजवादियों को भी फलने-फूलने का भरपूर मौका दिया। भाजपा और कांग्रेस पिछले कई चुनावों से यहां सहयोगी दल की भूमिका में ही हैं। मुख्य मुकाबले में हमेशा क्षेत्रीय दल ही रहे हैं। निवर्तमान सांसद डॉ. अरुण कुमार इस बार राष्ट्रीय समता पार्टी (सेक्युलर) से ताल ठोक रहे। यह उनकी बनाई पार्टी है, जिसके वे इकलौते उम्मीदवार हैं। पिछली हार का बदला लेने के लिए राजद के डॉ. सुरेंद्र यादव दोबारा मैदान में हैं। जदयू ने चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी पर दांव लगा रखा है।
काराकाट
कभी कांग्रेस का गढ़ रहे काराकाट पर बाद में समाजवादियों का कब्जा हो गया। पिछले कई चुनावों से यहां क्षेत्रीय दलों का ही दबदबा देखने को मिल रहा है। देश की दोनों बड़ी पार्टियों (कांग्रेस और भाजपा) की भूमिका यहां सहयोगी दल की बनकर रह गई है।
पिछली बार राजग के घटक दल के तौर पर रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा यहां से विजयी रहे थे। वे इस बार भी रालोसपा के उम्मीदवार है, लेकिन महागठबंधन के बैनर तले। पिछली बार मात खा चुके जदयू के महाबली सिंह इस बार बदला लेने के लिए हाथ-पैर मान रहे।
सासाराम
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सासाराम में एक बार फिर कांग्रेस की मीरा कुमार और भाजपा के छेदी पासवान आमने-सामने हैं। लोकसभा अध्यक्ष रह चुकी मीरा कुमार पिछली बार छेदी से तकरीबन 63 हजार मतों से परास्त हो गई थीं। राष्ट्रपति के चुनाव में रामनाथ कोविंद उन्हें शिकस्त दे चुके हैं। इस बार मीरा कुमार को राजद, रालोसपा हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और विकासशील इनसान पार्टी का समर्थन भी हासिल है।
निकटवर्ती वाराणसी संसदीय क्षेत्र की हवा का सासाराम पर खूब असर होता है। वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के उम्मीदवार हैं। छेदी उस खुली हवा में सांस लेने की उम्मीद पाले हुए हैं।
बक्सर
केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे और राजद के दिग्गज जगदानंद सिंह आमने-सामने हैं। चौबे जहां जीत दोहरो के लिए दांव आजमा रहे, वहीं 75 बंसत देख चुके जगदानंद पिछली हार का बदला लेने के लिए ताल ठोक रहे हैं। अश्विनी को लालमुनि चौबे की विरासत, भाजपा के आधार वोट के साथ वाराणसी के माहौल से संजीवनी मिल रही है।
जगदानंद उन वोटों में से कुछ पाने की आस लगाए हुए हैं, जो पिछली बार ददन पहलवान झटक लिए थे। तीसरे कोण ने 2014 के फैसले में निर्णायक भूमिका निभाई थी। इस बार सीधा मुकाबला है, लेकिन ददन राजग के लिए प्रचार कर रहे।
आरा
पिछले चुनाव में मोदी लहर की बदौलत आरा में पहली बार कमल खिला था। केंद्रीय गृह सचिव रह चुके आरके सिंह विजयी रहे थे। केंद्र में मंत्री के रूप में पारितोषिक मिला। पार्टी ने एक बार फिर उन पर भरोसा किया है। पिछली बार तीसरे पायदान पर रहे राजू यादव इस बार भी भाकपा (माले) के उम्मीदवार हैं और सीधे मुकाबले में। पाटलिपुत्र में मीसा भारती के समर्थन की शर्त पर राजद ने आरा में माले का समर्थन किया है। इस पहल से यहां की लड़ाई दिलचस्प हो गई है।
पाटलिपुत्र
राज्यसभा की सदस्य होने के बावजूद लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती पाटलिपुत्र से चुनाव लड़ रही हैं। पिछली हार का बदला लेने का इरादा रखती हैं। तब राजद छोड़कर भाजपा में आए रामकृपाल यादव ने उन्हें शिकस्त दी थी। केंद्र में मंत्री बनाकर भाजपा ने रामकृपाल को पुरस्कृत भी कर दिया। इस बार भी रामकृपाल ही उम्मीदवार हैं।
पिछले चुनाव में 51 हजार से ज्यादा मत हासिल करने वाली भाकपा (माले) ने इस बार यहां उम्मीदवार नहीं देकर मीसा भारती का समर्थन किया है। दूसरी तरफ जदयू के साथ आने से भाजपा उसके खाते में गए मतों को अपना मान रही।
पटना साहिब
निवर्तमान सांसद व अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार बन गए हैं। उनकी अब तक की संसदीय यात्रा भाजपा के बूते रही है। भाजपा ने केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद पर दांव लगा रखा है, जिनका राज्यसभा में तकरीबन चार साल का कार्यकाल शेष है। जदयू के साथ होने से रविशंकर कैडर वोटों के साथ जातीय समीकरण से उम्मीद पाले हुए हैं।
बिहारी बाबू कहे जाने वाले शत्रुघ्न सिन्हा पिछले दो चुनावों में मिली विजय को निजी उपलब्धि मान रहे और साथ में महागठबंधन के आधार वोट को बोनस।
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