Election 2019 results: कई मायनों में राष्ट्र की नीतियों के लिए बेहद अहम होंगे जम्मू-कश्मीर के नतीजेे
Election 2019 results जम्मू-कश्मीर भी लोकसभा चुनाव के नतीजों का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। जम्मू-कश्मीर कई मायनों में राष्ट्र की नीतियों के लिए बेहद अहम है।
जम्मू, नवीन नवाज। पूरे देश की तरह जम्मू-कश्मीर भी लोकसभा चुनाव के नतीजों का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। वैसे तो केवल छह सीटें होने के कारण इस राज्य का संख्या के लिहाज से महत्व सीमित है, लेकिन जम्मू-कश्मीर कई मायनों में राष्ट्र की नीतियों के लिए बेहद अहम है। इस राज्य की अपनी सियासत है और ऐसी सियासत है जो कहीं न कहीं राष्ट्रीय दलों की राजनीति पर अपना असर डालती है।
यह चुनाव पीडीपी की नेता के रूप में महबूबा मुफ्ती के भविष्य का निर्धारण तो करेगा ही, इस सवाल का भी जवाब देगा कि क्या उमर अब्दुल्ला नेशनल कांफ्रेंस को आगे ले जा सकते हैं? भाजपा जम्मू-कश्मीर में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रही है, इसलिए वह इन नतीजों की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही है।
इस बार किसी भी सीट पर चुनाव प्रचार के दौरान विकास, बेरोजगारी, गरीबी जैसे मुद्दे मुखर नजर नहीं आए। इसके बजाय आतंकवाद और अलगाववाद से निपटने की चुनौती, अनुच्छेद-370 को बचाने-मिटाने के दावे, क्षेत्रीय भेदभाव जैसे मसलों ने न सिर्फ मतदान पर पूरा असर दिखाया, बल्कि मतदान के बाद भी यही रियासत की सियासत में बहस का विषय बने हुए हैं।
जम्मू संभाग की दोनों सीटों जम्मू-पुंछ और उधमपुर-कठुआ में चुनाव पूरी तरह से राष्ट्रवाद के मुद्दे पर यानी आतंकवाद व अलगाववाद पर सख्त प्रहार की नीति के मुद्दे पर केंद्रित रहा। लोगों की दिलचस्पी यह देखने-जानने की थी कि बीते पांच साल के दौरान आतंकवाद और पाकिस्तानी गोलाबारी के प्रति केंद्र सरकार की नीतियां अथवा अलगाववादियों पर अंकुश लगाने के प्रयास कितने कारगर रहे। बालाकोट पर हमले की गूंज पूरे चुनाव अभियान के दौरान सुनाई देती रही। इन दोनों सीटों पर लड़ाई सीधे तौर पर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही थी।
नेशनल कांफ्रेस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने कांग्रेस को समर्थन दिया और एक तरह से हिंदू बनाम मुस्लिम की लड़ाई भी बनाने का प्रयास किया, लेकिन संभवत: इसका असर नहीं हुआ। हो सकता है कि भाजपा को इसका
लाभ मिले। दूसरी ओर कश्मीर घाटी में कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोके्रटिक पार्टी और भाजपा के अलावा पीपुल्स कांफ्रेंस और अवामी इत्तेहाद पार्टी के प्रत्याशी तीनों सीटों पर अन्य निर्दलीय उम्मीदवारों संग
चुनाव में उतरे। इस क्षेत्र में अनुच्छेद-370 को भाजपा द्वारा समाप्त करने के दिखाए गए डर के अलावा जन सुरक्षा अधिनियम और सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम, राज्य के विशेष दर्जे और जमात ए इस्लामी व
जेकेएलएफ पर पाबंदी जैसे मुद्दों के नाम पर वोट मांगे गए। वादी में नेशनल कांफ्रेंस के डॉ. फारूक अब्दुल्ला, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की महबूबा मुफ्ती और प्रदेश कांग्रेस प्रमुख जीए मीर का चुनावी भाग्य दांव पर लगा है।
इन लोगों ने मतदाताओं को जहां भी संबोधित किया, मुस्लिमों की कथित प्रताड़ना और कश्मीर में भाजपा और आरएसएस को रोकने के लिए वोट मांगे।
भाजपा और पीडीपी के गठजोड़ पर भी बात हुई। तीनों ही सीटों पर इन्हीं मुद्दों का असर रहा। आटोनामी और सेल्फ रूल का कोई अधिक जिक्रकश्मीर में नहीं हुआ और जहां भी मतदान हुआ वहां लोगों ने अनुच्छेद-370 और राज्य के विशेष दर्जे के नाम पर वोट डाले। हालांकि, पीडीपी ने भी इन मुद्दों की बात की थी, लेकिन यह हो सकता है कि भाजपा के साथ गठजोड़ का खमियाजा उसे भुगतना पड़े और फायदा नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस को ही ज्यादा हो। पीपुल्स कांफ्रेंस सिर्फ उत्तरी कश्मीर की एकमात्र बारामुला सीट पर ही मतदाताओं को प्रभावित करती नजर आ रही है।
अनुच्छेद-370 जैसे मुद्दे पर नई सरकार के रुख पर सभी की निगाहें लगी रहेंगी। लेह को अलग डिवीजन बनाने को भाजपा ने किसी तरह अपने पक्ष में भुनाते हुए मतदाताओं को यकीन दिलाया कि यह तो केंद्र शासित राज्य
की दिशा में कदम है। लद्दाख में भाजपा, कांग्रेस और निर्दलीयों के बीच लड़ाई रही। निर्दलीय सच्जाद करगली, कांग्रेस के बागी असगर करबलाई और कांग्रेस के उम्मीदवार रिग्जिन स्पलबार के अलावा भाजपा के शिरिंग नामगयाल के बीच चुनावी दंगल में कारगिल और लेह के बीच की दूरियों के साथ ही बौद्ध बनाम मुस्लिम का भी मुद्दा कहीं न कहीं प्रभावी रहा। सच्जाद करगली और असरग करबलाई की उम्मीदवारी और कारगिल में हुआ मतदान इसका ही संकेत करता है।
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