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आखिर बिहार से कहां गायब हैं तेजस्वी, अब तो आकर देखें क्या है महागठबंधन का हाल

नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव दो महीने से बिहार की राजनीति से गायब हैं। उनकी अनुपस्थिति का असर राजद में भी दिख रहा है तो वहीं महागठबंधन में भी अब अपनी डफली-अपना राग अलापा जा रहा है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Thu, 01 Aug 2019 10:02 AM (IST)Updated: Thu, 01 Aug 2019 07:15 PM (IST)
आखिर बिहार से कहां गायब हैं तेजस्वी, अब तो आकर देखें क्या है महागठबंधन का हाल
आखिर बिहार से कहां गायब हैं तेजस्वी, अब तो आकर देखें क्या है महागठबंधन का हाल

पटना [अरविंद शर्मा]। बिहार की सक्रिय राजनीति से नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के गायब हुए दो महीने से ज्यादा बीत गए। इस दौरान राज्य में महागठबंधन का अस्तित्व नहीं दिख रहा। न गठबंधन का कोई एक सर्वमान्य नेता, न संयुक्त बैठक...न कार्यक्रम, न कार्यकर्ता। सबकी अपनी-अपनी डफली और राग भी अलग-अलग है। दोस्ती की बात तो दूर, मौका मिलने पर एक-दूसरे पर तोहमत लगाने से भी परहेज नहीं कर रहे। 

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बिहार में विधानसभा चुनाव की आहट शुरू हो गई है। सभी दल अपने-अपने तरीके से तैयारियां भी करने लगे हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा इंतजार तेजस्वी यादव का हो रहा है, जो लोकसभा चुनाव के बाद से ही गायब हैं। विधानसभा के मानसून सत्र में भी सिर्फ प्रतीकात्मक तौर पर आए। दो दिन रहे और फिर अदृश्य हो गए।

नेता प्रतिपक्ष की लंबी गैर-मौजूदगी ने बिहार में महागठबंधन को नेपथ्य में डाल दिया है। घटक दल अलग-अलग रास्ते पर चल निकले हैं। मजबूरी भी है। सबसे बड़े घटक दल का सबसे बड़ा नेता ही निष्क्रिय है तो कैसा गठबंधन। बाढ़ के दौरान कांग्रेस ने तेजस्वी यादव को शिद्दत से याद किया।

प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा ने उन्हें बाढ़ पीड़ितों के बीच रहने-घूमने के लिए बुलाया। हाालाकि, न जवाब मिला, न बात हुई। हताशा-निराशा तो मिलनी ही थी। अभिव्यक्ति भी हुई। प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। बकौल कादरी, बिहार में गठबंधन कहां है? मुझे तो नजर नहीं आ रहा। चुनाव में हार के बाद न बात-न मुलाकात।

अपनापा...तालमेल...रणनीति...कहीं कुछ नहीं है। राजद के साथ कांग्रेस की कभी नजदीकियां थीं, जो अब दूरियों में बदल गईं। अगर ऐसा नहीं होता तो तीन तलाक बिल पर हमारा ऐसा हश्र नहीं हुआ होता। प्रतिक्रिया देते हुए कौकब कादरी थोड़ा और आगे बढ़ जाते हैं-समन्वय का अभाव तो लोकसभा चुनाव के पहले भी था। तभी तो हम इतनी बुरी तरह हारे। 

तेजस्वी पर पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी खफा हैं। हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा प्रमुख को तेजस्वी में अनुभव की कमी दिखती है। मांझी के मुताबिक, तेजस्वी को अगर लालू की जगह लेनी है तो उन्हें विरोधियों का सामना करना चाहिए। चाहे जितना भी व्यक्तिगत काम हो, उन्हें विधानसभा से गायब नहीं होना चाहिए था।

महागठबंधन के अन्य घटक दलों को ज्यादा मतलब नहीं है। रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा साथी दलों से अलग अपनी ताकत के विस्तार में जुटे हैं। वीआइपी पार्टी के मुकेश सहनी को राजनीति से ज्यादा अपने व्यवसाय से वास्ता है। चुनाव हारे तो फिर से मुंबई चले गए। यदा-कदा दिख जाते हैं। 

तेजस्वी से अपने भी खफा

सक्रिय राजनीति से तेजस्वी के दूर रहने की स्थिति में महागठबंधन ही नहीं, बल्कि राजद में भी अंदर ही अंदर कम नाराजगी नहीं है। राजद के स्थापना दिवस समारोह में राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने तो तेजस्वी को खुली नसीहत देकर आत्मसम्मान जगाने की कोशिश की थी।

उन्होंने कहा था कि वह लालू यादव को शेर बताते हैं और खुद को शेर का बेटा। ...तो मांद से निकलिए और विरोधी दलों से निपटिए। शिवानंद की नसीहत के बाद से पार्टी के अंदर भी कई वरिष्ठ नेता तेजस्वी के रवैये में सुधार के पक्षधर हैं। हालांकि, प्रत्यक्ष तौर पर कोई बोलने के लिए तैयार नहीं होता है, लेकिन परोक्ष रूप से नाराजगी चरम पर है। 

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