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कश्मीरी विधायक की खरी-खरी, मिलीटेंसी-मौत को ग्लैमराइज करना बंद करो

मीडिया लहू को- मौत को ग्लैमराइज कर रहा है। जब तुम्हारे घर का कोई मरेगा तो क्या यह फोटोग्राफी याद रहेगी?” उन्होंने ऐसी ही बातें हुर्रियत कांफ्रेस के लिए भी कही।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Fri, 19 Jan 2018 11:09 PM (IST)Updated: Sat, 20 Jan 2018 01:24 PM (IST)
कश्मीरी विधायक की खरी-खरी, मिलीटेंसी-मौत को ग्लैमराइज करना बंद करो
कश्मीरी विधायक की खरी-खरी, मिलीटेंसी-मौत को ग्लैमराइज करना बंद करो

जेएनएन, नई दिल्लीः जम्मू-कश्मीर विधानसभा में बीते दिनों बारामूला के एक विधायक ने राज्यपाल के अभिभाषण पर बहस के दौरान अपने संबोधन से न केवल सदन में बैठे लोगों को सन्न कर दिया, खुद अपनी पार्टी पीडीपी के नेताओं को ऐसा आईना दिखाया कि उन्हें बगले झांकने के लिए मजबूर होना पड़ा। उनके भाषण को स्थानीय मीडिया ने ज्यादा महत्व नहीं दिया और वह शायद इसलिए कि उन्होंने उसे भी खरी-खोटी सुनाई, लेकिन सोशल मीडिया पर उनका यह भाषण कश्मीरियों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। पीडीपी के बारामूला से विधायक जावेद हुसैन बेग ने बिना किसी लाग-लपेट कहा, हमने एक सियासी मसले को मजहबी रंग दे दिया है। उन्होंने सभी को खरी-खरी सुनाई और इस क्रम में हुर्रिय़त कांफ्रेंस के साथ-साथ मीडिया को खासतौर पर निशाने पर रखा। खास बात यह है कि उस समय मीडिया गैलरी में कई पत्रकार भी मौजूद थे। उन्होंने कहा कि मीडिया वाले मिलिटेंट के मारे जाने पर उसके जनाजे में उमड़ी भीड़ की नुमाइश करते हैं। उन्होंने साफ कहा, “पता नहीं मेरी बात खबर बनेगी या नहीं, क्योंकि आपको तो न्यूज के लिए न्यूसेंस चाहिए। पाकिस्तान में सलमान तासीर को मारने वाले के जनाजे में तीस लाख लोग शामिल हुए थे, लेकिन एधी फाउंडेशन के एधी साहब के जनाजे में पांच हजार लोग शामिल हुए। क्या दोनों की तुलना कर सकते हैं? मीडिया वाले बढ़-चढ़कर बताते हैं, अखबार के पहले पेज पर दिखाते हैं कि यह मिलिटेंट मारा गया, इसके जनाजे में इतने लोग शामिल हुए। यह कारोबार है। मीडिया लहू को- मौत को ग्लैमराइज कर रहा है। जब तुम्हारे घर का कोई मरेगा तो क्या यह फोटोग्राफी याद रहेगी?” उन्होंने ऐसी ही बातें हुर्रियत कांफ्रेस के लिए भी कही।

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आज मैं सच बोलूंगा, चाहे मुझे मार दिया जाए
बेग ने अपने संबोधन में यह भी कहा,” आज मैं सच बोलूंगा, चाहे मुझे मार दिया जाए। बीते साल, 2017 में 40 लोग आतंकियों की बंदूकों से मारे गए, लेकिन क्या हममें से किसी ने –किसी भी पार्टी के मेंबर ने यह सवाल किया कि ये क्यों मारे गए और यह किसका लहू था? क्या जो मारे गए उनका मानव अधिकार नहीं था? क्या वे कश्मीरी नहीं थे? क्या उनकी मांओं ने उन्हें जन्म नहीं दिया था? हम क्यों नहीं कह सकते कि पाकिस्तान वालों, मजहबी ठेकेदारों हमारे लड़कों को बंदूक देना बंद करो।“ सदन में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की मौजूदगी में बेग ने कहा, “पाकिस्तान जिस दिन हमारे लड़कों को बंदूक पकड़ाता है, उनकी मौत का परवाना लिख जाता है। हम एक बड़ी मुसीबत में फंस गए हैं। माएं बेबस हैं, बाप लाचार हैं। लड़के बिना किसी मशविरे के बंदूक लेने पाकिस्तान चले आते हैं और वहां से आते हैं तो..। क्या उमर साहब की सरकार होती तो बुरहान वानी का वाकया नहीं होता?” बेग ने कहा, “विपक्ष वाले कहते हैं कि पीडीपी-बीजेपी सरकार की वजह से ये मसले हैं। मैं पूछना चाहता हूं कि क्या कश्मीरी लोग यह तय कर सकते हैं कि जम्मू के लोग किसे वोट करें? क्या हम कह सकते हैं कि हम बीजेपी से नफरत करते हैं इसलिए वहां के लोग उसे वोट न दें?”


हुर्रियत कांफ्रेंस कौन होती है वार्ताकार पर सवाल उठाने वाली
बेग ने अपने भावुक संबोधन में हुर्रियत कांफ्रेंस को खास तौर पर जमकर कोसा और उस पर यह खुला आरोप मढ़ा कि वह कश्मीर के मसले को मजहबी रंग दे रही है। बेग के मुताबिक प्राइम मिनिस्टर नरसिंह राव साहब ने कहा था कि आइए बात करें पर हुर्रियत ने कहा, हम बात नहीं करेंगे। फिर वाजपेयी साहब ने पहल की। वह बस से लाहौर गए तो कारगिल हो गया। किसने किया, क्यों किया? इसके बाद मनमोहन सिंह ने राउंड टेबल बनाया और कहा कि बात करें, पर हुर्रियत कांफ्रेस ने कह दिया कि जिस मजलिस में पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस होगी वहां हम नहीं जाएंगे। इसके बाद मनमोहन सिहं ने तीन वार्ताकर भेजे। तीनों ने भरसक कोशिश की, लेकिन गिलानी अड़े रहे। आज फिर एक वार्ताकार है, लेकिन हुर्रियत कांफ्रेंस का कहना है कि उनका मैनडेट क्या है? मैं पूछना चाहता हूं कि हुर्रियत वालों का क्या मैनडेट है? उन्हें किसने अधिकार दिया कि यह सवाल पूछ सकें? बेग ने अपने भाषण में यह सवाल भी किया,” क्या आप यह समझते हैं कि कश्मीर मसला जमीन का मसला है? क्या यह सेशन कोर्ट से सुलझने वाला मसला है? मैं बड़ी रिस्क लेकर रहा हूं, लेकिन अगर मैं सच नहीं बोल सकता तो मुझे अपने लोगों की नुमाइंदगी का हक नहीं। चाहे मुझे मार दिया जाए, लेकिन यह सच कहना चाहता हूं कि कश्मीर के सियासी मसले को हमने जानबूझकर मजहबी रंग दे दिया है। क्या हमें हुर्रियत से यह नहीं कहना चाहिए कि वह अपना रवैया बदले ? “ बेग ने कहा कि अगर हुर्रियत वाकई कश्मीरियों की हमदर्द है तो उसे सबसे बात करने के लिए आगे आना होगा। पीडीपी विधायक बेग ने अपने संबोधन में कम से कम तीन बार यह कहा कि चाहे मुझे सच बोलने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़े, लेकिन वह सच बोलकर रहेंगे? उनका भाषण इतना प्रभावी था कि किसी को उन्हें बीच में टोकने की हिम्मत नहीं पड़ीं।


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