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बजट में अन्नदाता का ख्याल रख भाजपा ने साधी उप्र की 65 से अधिक लोकसभा सीटें

गरीब को सिर पर एक अदद छत की चिंता हमेशा सताती है। 2022 तक हर गरीब को छत देने का सपना भी सीधे भाजपा के अपने मिशन से जुड़ रहा है। आमजन के लिये यह सिर्फ भाजपा का वादा भर नहीं है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Fri, 02 Feb 2018 09:22 AM (IST)Updated: Fri, 02 Feb 2018 03:23 PM (IST)
बजट में अन्नदाता का ख्याल रख भाजपा ने साधी उप्र की 65 से अधिक लोकसभा सीटें
बजट में अन्नदाता का ख्याल रख भाजपा ने साधी उप्र की 65 से अधिक लोकसभा सीटें

लखनऊ [आनन्द राय]। मोदी सरकार का किसानों की कुटिया और हल के जुए से नए भारत के सृजन का संकल्प 2019 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। केंद्र सरकार ने अपने बजट में किसानों को तरजीह दी है और इससे उत्तर प्रदेश सर्वाधिक प्रभावित होगा। यहां की सर्वाधिक आबादी न केवल खेती पर निर्भर है बल्कि 80 में 65 से अधिक लोकसभा सीटें भी किसान बहुल इलाकों की हैं।

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मतलब बिल्कुल साफ है कि बजट में भाजपा सरकार ने किसानों के जरिये लोकसभा चुनाव जीतने के लिये गोटियां बिछाई हैं। अन्नदाता की बदौलत फिर परचम फहराने का खास उपक्रम दिखने लगा है। वैसे भी किसानों को प्रभावित करने का फार्मूला नया नहीं है। किसानों के मन तक पहुंचकर ही भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में जीत का एक बड़ा कीर्तिमान स्थापित किया। भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में किसानों के एक लाख तक के फसली ऋण माफ करने का वादा किया और इसकी बदौलत रिकार्ड 325 सीटें जीत ली।

अब जबकि सभी क्षेत्रों में चुनावी मुहिम शुरू हो गई है तो केंद्र सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिये शंखनाद कर दिया है। फसल का समर्थन मूल्य उत्पादन की लागत का डेढ़ गुना करने और आलू, प्याज और टमाटर के लिये 500 करोड़ रुपये का प्रावधान कर आपरेशन ग्रीन शुरू करने के एलान भर से किसानों का दिल बल्लियों उछल रहा है। इसका दूरगामी असर क्या होगा, यह तो बाद की बात है लेकिन, किसानों के चेहरे पर हरियाली जरूर आ गई है।

आलू किसानों की नाराजगी पर मरहम

उत्पादन लागत पर समर्थन मूल्य की मांग अरसे से चली आ रही है और किसान आंदोलनों में भी हमेशा से यही मुख्य मुद्दा होता रहा है। प्याज और टमाटर की पैदावार उत्तर प्रदेश में बहुत अच्छी नहीं होती लेकिन, यह भी सही है कि आलू किसान अच्छी पैदावार के बावजूद खून के आंसू रोते रहे हैं। उत्तर प्रदेश में आलू किसानों की आमदनी को लेकर संकट भी खड़ा हुआ है और ऐसे समय में बजट में उनके लिये किया गया प्रावधान राहत देने वाला है। यह न केवल उनकी नाराजगी पर मरहम है बल्कि आपरेशन ग्रीन उनके लिये संभावनाओं की एक पूंजी भी है।

समूह बागवानी, जैविक कृषि को बढ़ावा, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का विकास, कृषि उत्पादों के निर्यात की पहल और किसानों को सिंचाई समेत संसाधन मुहैया कराने के लिये सरकार ने खजाने का मुंह खोला है। जाहिर है कि खाद्यान्न उगाने वाली उत्तर प्रदेश की 38927 हजार हेक्टेयर भूमि इससे हरी-भरी होगी और उसकी चमक किसान के चेहरे पर दिखेगी। भाजपा सरकार 2019 के चुनाव में इनके ही बूते अपनी चमक तेज करने और सिंहासन बचाये रखने के लिये भी बजट में चौकन्नी दिखी है।

उत्तर प्रदेश से ही दिल्ली सरकार का रास्ता

जिन घरों में बिजली कनेक्शन देने से लेकर स्वास्थ्य और अन्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिये सरकार ने बजट में उपक्रम किया है, वह तबका भी इन्हीं किसान और मजदूर परिवारों से जुड़ा है। गरीब को सिर पर एक अदद छत की चिंता हमेशा सताती है। 2022 तक हर गरीब को छत देने का सपना भी सीधे भाजपा के अपने मिशन से जुड़ रहा है। आमजन के लिये यह सिर्फ भाजपा का वादा भर नहीं है। वजह यह है कि 2022 तक उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है और प्रदेश सरकार ने भी गरीबों को आवास समेत कई योजनाए शुरू की हैं।

इसीलिए केंद्र और प्रदेश की सरकार के समन्वय से इन सपनों को पूरा होने की उम्मीद को बल मिला है। केंद्र की दिल्ली सरकार का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह हमेशा कहते भी हैं कि उप्र ने ही देश में भाजपा की सरकार दी है। बजट प्रस्तुत करते हुए सरकार ने 2019 में फिर से दिल्ली सरकार के लिये उत्तर प्रदेश को रास्ते के तौर पर चुना है।  


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