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धमनियां रक्त के लिए, लेकिन बह रहा नशा; जनसंख्या के हिसाब से नशे का इस्तेमाल करने में दूसरे पायदान पर हिमाचल

जिस उम्र में बुजुर्गों को लाठी के सहारे की आवश्यकता होती है उस आयु में शिमला की एक महिला ने रपट दर्ज करवाई है कि उसके पोते ने उसके बेटे की हत्या कर दी है। दोनों नशे के आदी थे। पोते की आयु 22 वर्ष है।

By Jagran NewsEdited By: Amit SinghPublished: Thu, 23 Mar 2023 12:30 AM (IST)Updated: Thu, 23 Mar 2023 12:30 AM (IST)
धमनियां रक्त के लिए, लेकिन बह रहा नशा; जनसंख्या के हिसाब से नशे का इस्तेमाल करने में दूसरे पायदान पर हिमाचल
नशे का इस्तेमाल करने में दूसरे पायदान पर हिमाचल

नवनीत शर्मा, शिमला: हम पंजाब की तरह कैसे हो सकते हैं? यह संभव नहीं है। पंजाब उड़ता होगा, हिमाचल नहीं उड़ता। हिमाचल की भूमि पर खड़े रह कर हर हिमाचली आकाश की ओर देख कर यही कहता है... किंतु भला हो केंद्र सरकार की ओर से जारी उन आंकड़ों का जिन्होंने सत्य के साबुन से इस शीशे को साफ कर दिया। जनसंख्या के हिसाब से नशे का प्रयोग करने में यदि पंजाब देश में पहले स्थान पर है तो हिमाचल प्रदेश दूसरे पायदान पर है।

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हिमाचल प्रदेश की जेलों में 2400 कैदियों के लिए स्थान है किंतु कैदी 3000 हजार हैं। इनमें से 40 प्रतिशत से अधिक कैदियों का संबंध ड्रग्स के अपराध से है। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रदेश के युवाओं का 60 प्रतिशत से अधिक भाग नशीली सामग्री की चपेट में है। इस दुखती रग पर हाथ रखने की आवश्यकता क्यों है, उसके लिए विस्तार में जाना आवश्यक है। पात्र बदल रहे हैं, औजार बदल रहे हैं, कालखंड बदल रहा है पर पटकथा वही है।

जिस उम्र में बुजुर्गों को लाठी के सहारे की आवश्यकता होती है, उस आयु में शिमला की एक महिला ने रपट दर्ज करवाई है कि उसके पोते ने उसके बेटे की हत्या कर दी है। दोनों नशे के आदी थे। पोते की आयु 22 वर्ष है। पहले मां या पत्नी के गहने बेचे जाते थे, अब जमीन, जायदाद से आगे बढ़ कर अभिभावकों की जान की आवश्यकता है नशे के आदियों को। नशे के लिए हत्या का यह पहला मामला नहीं है, सरोकार का विषय यह है कि अब बर्बरता बढ़ रही है। जिस हथियार से पिता की हत्या की, वह बोतल थी.... जिस हथियार से दादी को गंभीर रूप से घायल किया, उसे प्रेशर कुकर कहते हैं। यह सब कैसे आरंभ होता है इसकी भी एक पृष्ठभूमि है।

हाल में एक स्कूल का किस्सा सामने आया जहां टाफी से टाफी निकाल कर उसमें चूसने वाले तंबाकू को इस प्रकार भरा गया था कि वह भरी हुई टाफी लगे। विशेषज्ञ तो तंबाकू को नशे का प्रवेशद्वार कहते ही हैं। छात्र पकड़ा ही गया तो उसने स्वीकार किया कि 'सामान' आसानी से उपलब्ध हो जाता है। यह वही आवश्यक वस्तु है जो महामारी के दौरान भी उपलब्ध थी। वैसे नियम यह है कि शिक्षण संस्थान से सौ मीटर की परिधि में कोई तंबाकू उत्पादों को बेच नहीं सकता है। प्राय: अभिभावक ही स्वीकार नहीं करते कि उनका बच्चा किसी ऐसी आदत की चपेट में है। अध्यापक डांट दे तो शिकायत संबंधित विधायक तक पहुंच जाती है और समस्या को हल नहीं, राजनीतिक रंग मिलता है। स्कूल परिसर के पास भोजनावकाश के दौरान जो अनजाने चेहरे दिखते हैं, पुलिस को उन तक भी पहुंचना चाहिए।

हिमाचल पुलिस ने एक अभियान छेड़ा है नशे के विरुद्ध जो स्वागतयोग्य कदम है। 25 फरवरी से 26 जून तक चलने वाले इस अभियान में खूब लोग पकड़े जा रहे हैं। नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रापिक सब्स्टेंस एक्ट (एनडीपीएस) के तहत मामले बन रहे हैं। शिक्षा मंत्री ने 25 फरवरी को ही कहा था कि 10 दिन में पुलिस और शिक्षा विभाग के अधिकारी नशे को रोकने की रूपरेखा बना कर दें। उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात कही कि नशे के जाल से नई पौध को बचाने का काम किसी एक विभाग का नहीं है। यानी उन्होंने अंतरविभागीय कार्यदल की बात कही। सबसे अपनी अपनी भूमिका निभाने का आग्रह किया। यह इसलिए सत्य है क्योंकि नशे की समस्या सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा तो है ही, सबसे पहले अर्थशास्त्र के सूत्र से भी जुड़ा है।

प्राय: नशा प्रतिरोधी अभियान से आशय नशे की सामग्री की आपूर्ति पर प्रहार से लिया जाता है। यह भाग कानून का पालन करवाने से जुड़ा है जबकि इतना ही महत्वपूर्ण नशे की मांग को कम करना भी है। नशे की समस्या को संबोधित करने के लिए बचाव, उपचार और पुनर्वास ही मुख्य पक्ष हैं। हिमाचल में अब तक कांगड़ा, हमीरपुर और ऊना में पुनर्वास केंद्र हैं। हिमाचल की करीब 75 लाख जनसंख्या के लिए यह पर्याप्त हैं या नहीं, यह रहस्य नहीं है। अच्छी बात यह है कि अब डिस्ट्रिक्ट ड्रग डी-एडिक्शन सेंटर कांगड़ा, चंबा और सोलन में क्रियाशील होने वाले हैं। जांच समिति की बैठक हो चुकी है। ऊना में जिलाधीश राघव शर्मा ने विशेष रुचि लेकर 15 बिस्तरों वाले पुनर्वास केंद्र को 30 बिस्तरों वाला कर दिया है।

इस क्षेत्र में वर्षों से कार्य कर रही संस्था गुंजन के अध्यक्ष संदीप परमार कहते हैं कि इस समस्या में बचाव भी चाहिए और उपचार भी। पुनर्वास इसलिए चाहिए ताकि पीड़ितों को मुख्यधारा में लाया जा सके। उदाहरण के लिए छन्नी बेली क्षेत्र है, जहां हर बार दबिश दी जाती है, सामान बरामद किया जाता है यानी आपूर्ति का स्रोत बंद किया जाता है किंतु जो पीड़ित है, वह मरना नहीं चाहता इसलिए नशे की खोज में स्थान बदल लेता है। इसका अर्थ यह हुआ कि नए स्थान पर जाकर उसे भी संक्रमित कर रहा है। आशा की किरण हिमाचल प्रदेश का हाल का बजट है।

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के 183 बिंदुओं वाले बजट भाषण का 65वां बिंदु कहता है, ' मैं हिमाचल प्रदेश में नशीली दवाओं और मादक द्रव्यों के सेवन के दुष्प्रभावों को नियंत्रित करने व बच्चों और युवाओं में इनके दुष्प्रभाव के बारे में जागरूकता लाने के लिए नशा एवं मादक पदार्थ मुक्त हिमाचल अभियान की घोषणा करता हूं।' बजट में इस विचार का होना आशा बंधाता है अन्यथा अब तक बजट किसे क्या मिला की कसौटी पर ही परखे जाते रहे हैं। विचार अच्छा है और अब इसके क्रियान्वयन पर निर्भर करेगा कि वीर भूमि और देव भूमि और हरित प्रदेश के रूप में ख्याति अर्जित करने वाला हिमाचल प्रदेश अपनी युवा धमनियों को कैसे नशे से बचाए रखता है।


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