तृणमूल राज्य कमेटी में छत्रधर को शामिल करने पर माकपा ने उठाए सवाल, पूछा- क्या अब वह माओवादी नहीं?
वाममोर्चा विधायक दल के नेता सुजन चक्रवर्ती ने तृणमूल व ममता सरकार से सवाल किया कि छत्रधर महतो को माओवादी किसने बनाया और आज क्या वह माओवादी नहीं रहे?
राज्य ब्यूरो, कोलकाता : बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने अपने संगठन में बड़ा फेरबदल किया है। तृणमूल कांग्रेस ने गुरुवार को घोषित अपनी राज्य कमेटी में माओवादी होने के आरोप में बीते 10 वर्षों तक सलाखों के पीछे गुजारनेवाले बहुचर्चित लालगढ़ आंदोलन के नेता रहे छत्रधर महतो को शामिल किया है। तृणमूल के इस फैसले पर वाममोर्चा ने सवाल उठाए हैं।
वाममोर्चा विधायक दल के नेता सुजन चक्रवर्ती ने तृणमूल व ममता सरकार से सवाल किया कि छत्रधर महतो को माओवादी किसने बनाया और आज क्या वह माओवादी नहीं रहे? उन्होंने कहा कि दरअसल भय और लालच की राजनीति करनेवाली तृणमूल सरकार का असली चेहरा लोगों के सामने आ गया है। अब लोग इस सरकार से निजात पाना चाहते हैं। लोगों को समझना होगा कि जिन लोगों को पार्टी में लाकर ममता बनर्जी अपना चेहरा चमकाना चाहती हैं, उसमें वह सफल नहीं होंगी। लोगों को पता है कि तृणमूल कांग्रेस को एक ही शख्स संचालित करता है, वह हैं ममता बनर्जी। वहां पर एक ही पोस्ट है और बाकी सब लैंप पोस्ट हैं।
उन्होंने कहा कि तृणमूल में ममता बनर्जी के बाद दूसरा चेहरा अभिषेक बनर्जी का है। यहां पर बुआ-भतीजा का राज है। ऐसे में लोगों को दिखाने के लिए परिवर्तन का नाटक करने से काम नहीं चलेगा। सुजन ने कहा कि सवाल उठता है कि कटमनी और भ्रष्टाचार के आरोप में जिन नेताओं को दरकिनार किया गया, उन्हें क्या पार्टी से निकाला गया है। सभी लोग तो पार्टी में ही हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री को कोरोना काल में इमानदारी से लोगों की मदद के लिए आगे आना होगा। राज्य की स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने के साथ-साथ विरोधी दलों का सहयोग लेकर लोगों के हितों में काम करना होगा। इस तरह का परिवर्तन करके वह प्रदेश की जनता को मूर्ख नहीं बना सकतीं।
गौरतलब है कि वाममोर्चा शासन के दौरान जब बुद्धदेब भट्टाचार्य मुख्यमंत्री थे उस दौरान शालबनी में उनके काफिले पर माओवादी हमला हुआ था, उसमें छत्रधर महतो का हाथ बताया गया था। इस घटना के बाद 2009 में महतो को गिरफ्तार किया गया था एवं उनके खिलाफ यूएपीए जैसी संगीन धाराएं लगाई गई थी। करीब 10 साल जेल में सजा काटने के बाद इसी साल वे फरवरी में जेल से बाहर निकले हैं। इसके बाद तृणमूल ने उन्हें राज्य कमेटी में स्थान दिया है जिसको लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।