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जम्मू-कश्मीर: उमर अब्दुल्ला की PSA के तहत गिरफ्तारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका, बहन ने दी चुनौती

उमर अब्दुल्ला की PSA के तहत गिरफ्तारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका बहन सारा पायलट ने दी चुनौती

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 10 Feb 2020 11:12 AM (IST)Updated: Mon, 10 Feb 2020 11:59 AM (IST)
जम्मू-कश्मीर: उमर अब्दुल्ला की PSA के तहत गिरफ्तारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका, बहन ने दी चुनौती
जम्मू-कश्मीर: उमर अब्दुल्ला की PSA के तहत गिरफ्तारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका, बहन ने दी चुनौती

जम्मू, एएनआइ। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला समेत नेशनल कांफ्रेंस  और उनके प्रतिद्वंद्वी पीडीपी के दो कद्दावर नेताओं के खिलाफ प्रशासन ने जन सुरक्षा कानून (PSA) के तहत मामला दर्ज किया है। उमर अब्दुल्ला को पीएसए के तहत गिरफ्तार किए जाने को उनकी बहन सारा पायलट ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उमर अब्दुल्ला को 5 अगस्त, 2019 को सीआरपीसी की धारा 107 के तहत हिरासत में रखा गया था। इस कानून के तहत उमर अब्दुल्ला की 6 महीने की एहतियातन हिरासत अवधि 5 फरवरी, 2020 को खत्म होने वाली थी। इस बीच 5 जनवरी को ही सरकार ने उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के खिलाफ पीएसए लगा दिया।

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अधिकारियों ने यह जानकारी देते हुए बताया कि पुलिस की मौजूदगी में मजिस्ट्रेट ने उस बंगले में जाकर महबूबा को आदेश सौंपा था जहां उन्हें नजरबंद रखा गया है। उमर अब्दुल्ला के खिलाफ भी पीएसए के तहत मामला दर्ज किया गया था।

उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के खिलाफ क्या है PSA 

पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के खिलाफ जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत मामले दर्ज किए जाने के लिए नेकां नेता की पार्टी की आंतरिक बैठकों की कार्यवाहियों और सोशल मीडिया पर उनके प्रभाव तथा पीडीपी प्रमुख के अलगाववादी समर्थक रुख का अधिकारियों ने जिक्र किया है। उमर और महबूबा को पिछले साल पांच अगस्त से एहतियातन हिरासत में रखा गया है, जब केंद्र ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने और इस पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित क्षेत्रों-- लद्दाख एवं जम्मू कश्मीर- में बांटने की घोषणा की थी।

उनके एहतियातन हिरासत की मियाद खत्म होने से महज कुछ ही घंटे पहले उनके खिलाफ छह फरवरी की रात पीएसए के तहत मामला दर्ज किया गया। नियमों के अनुसार एहतियातन हिरासत को छह महीने से आगे तभी बढ़ाया जा सकता है जब 180 दिन की अवधि पूरा होने से दो सप्ताह पहले गठित कोई सलाहकार बोर्ड इस बारे में सिफारिश करे।

हालांकि, इस संबंध में ऐसे किसी बोर्ड का गठन नहीं हुआ और कश्मीर प्रशासन के पास दो ही विकल्प थे या तो उन्हें रिहा किया जाए या पीएसए लगाया जाए। उमर के खिलाफ तीन पृष्ठ के डॉजियर में जुलाई में नेशनल कांफ्रेंस की आंतरिक बैठक में कही गई उनकी कुछ बातों का जिक्र है जिसमें उन्होंने कथित रूप से कहा था कि सहयोग जुटाने जरूरत है ताकि केंद्र सरकार राज्य के विशेष दर्जे को हटाने की अपनी योजना को पूरा नहीं कर पाए।

उमर सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय थे और यह मंच युवाओं को संगठित करने की क्षमता रखता है। उमर केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं।

महबूबा ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने की स्थिति में जम्मू कश्मीर के भारत में विलय को चुनौती दी थी और उनकी इन्हीं टिप्पणियों के लिए उन पर पीएसए लगाया गया। उनके खिलाफ पीएसए के डॉजियर में सुरक्षा बलों द्वारा आतंकवादियों को मार गिराए जाने पर की गई टिप्पणी का भी जिक्र किया गया है। महबूबा की पार्टी पीडीपी जून 2018 तक जम्मू कश्मीर में भाजपा की सहयोगी थी। गैरकानूनी गतिविधि अधिनियम (यूएपीए) के तहत जम्मू कश्मीर के जमात-ए-इस्लामिया संगठन को केंद्र द्वारा प्रतिबंधित संगठन घोषित किए जाने बाद इस संगठन को उनके समर्थन करने का भी डॉजियर में जिक्र किया गया है।

पी चिंदबरम ने भी नाराजगी जताई 

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती व अन्य के खिलाफ जन सुरक्षा कानून (PSA) के तहत गुरुवार को दर्ज मामले को लेकर पूर्व वित्तमंत्री पी चिंदबरम ने भी नाराजगी जताई थी। उन्होंने ट्वीट कर मोदी सरकार पर निशाना साधा था और इसे लोकतंत्र का सबसे घटिया कदम करार दिया था।

चिदंबरम ने ट्वीट करते हुए कहा था कि उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और अन्य के खिलाफ पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) की क्रूर कार्रवाई से हैरान हूं। आरोपों के बिना किसी पर कार्रवाई लोकतंत्र का सबसे घटिया कदम है। जब अन्यायपूर्ण कानून पारित किए जाते हैं या अन्यायपूर्ण कानून लागू किए जाते हैं, तो लोगों के पास शांति से विरोध करने के अलावा क्या विकल्प होता है?'

चिंदबरम ने एक अन्य ट्वीट में पीएम मोदी पर भी निशाना साधा था। उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि विरोध प्रदर्शन से अराजकता होगी और संसद-विधानसभाओं द्वारा पारित कानूनों का पालन करना होगा। वह इतिहास और महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला के प्रेरक उदाहरणों को भूल गए हैं। 


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