राज्यपाल सलाहकार ने कहा-बच्चों को स्कूल न भेजना इस्लाम के खिलाफ, आतंकी चाहते बच्चे अनपढ़ रहें
राज्यपाल सत्यपाल मलिक के सलाहकार फारूक खान ने कहा कि बच्चों को स्कूल भेजने से मनाही करना और उनके अभिभावकों को धमकियां देना इस्लाम के खिलाफ है।
जम्मू, राज्य ब्यूरो। राज्यपाल सत्यपाल मलिक के सलाहकार फारूक खान ने कहा कि बच्चों को स्कूल भेजने से मनाही करना और उनके अभिभावकों को धमकियां देना इस्लाम के खिलाफ है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में कई स्थानों पर पोस्टर लगाए गए हैं, जहां लोगों को अपने बच्चे स्कूलों में नहीं भेजने को कहा गया है। सलाहकार ने कहा कि आतंकवादी चाहते हैं कि लोगों के बच्चे अनपढ़ रहें ताकि वह उनके दिमाग पर नियंत्रण रख सकें। उन्होंने अभिभावकों से अपने बच्चों को स्कूलों में भेजने का अनुरोध किया।
परीक्षा तिथि में बदलाव नहीं
उन्होंने कहा कि परीक्षा तिथि में बदलाव की सरकार की कोई भी योजना नहीं है। परीक्षा अक्टूबर अंत और नवंबर में होगी और स्टेट बोर्ड ऑफ स्कूल एजूकेशन इसके लिए शेड्यूल जारी करेगा। उन्होंने कहा कि परीक्षा स्थगित नहीं होगी। कई जगहों पर पोस्टर लगाने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि आतंकवादी किस तरह के धर्म को अपना रहे हैं। यह इस्लाम नहीं हो सकता। पवित्र किताब इकरा शब्द से शुरू होती है। इसका मतलब ही पढ़ना है।
बच्चे स्कूलों में सुरक्षित हैं
उन्होंने कहा कि वह हैरान हैं कि यह लोग किस तरह का इस्लाम पढ़ा रहे हैं। गौरतलब है कि फारूक खान के पास स्कूल शिक्षा विभाग भी है। खान ने कहा कि स्कूल खोल दिए गए हैं और अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को स्कूलों में भेजें। वह आश्वासन देते हैं कि उनके बच्चे स्कूलों में सुरक्षित हैं। प्राइवेट स्कूल नियमित रूप से समाचार पत्रों में विज्ञापन दे रहे हैं कि बच्चे स्कूलों में आएं और बोर्ड परीक्षा के लिए अपना पंजीकरण करवाएं।
कश्मीर में छूट रहा 'सफलता' का सिलेबस
जानकारी हो कि दूूूूूसरी और राज्यपाल प्रशासन बेशक जम्मू कश्मीर के हालात सामान्य बनने में सफल हो रहा है, लेकिन कश्मीर का भविष्य यानी युवा अपने सफल भविष्य के लिए स्टडी कर रहे सिलेबस को पूरा नहीं कर पा रहा। कारण पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 और 35ए हटाने के बाद घाटी में सामान्य होते के बीच अलगाववादी और आतंकियों के डर से कई शिक्षण संस्थान विशेषकर प्राइवेट कोचिंग सेंटर बंद हैं। ऐसे में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे युवा अब बेहतर विकल्प की तलाश में बाहरी राज्यों का रुख करने लगे हैं।
गौरतलब है कि पांच अगस्त के बाद उत्पन्न हुई स्थित के बाद कड़े प्रयासों से प्रशासन कुछ शिक्षण संस्थानों को खोलने में कामयाब तो हुआ, लेकिन कई सरकारी व गैर सरकारी शिक्षण संस्थान अभी भी बंद हैं। अलगाववादियों और आतंकियों के डर से श्रीनगर सहित वादी के अन्य जिलों में स्थित निजी कोचिंग सेंटरों पर ताले लटके हैं। इन सेंटरों में 10वीं,12वीं की कक्षाओं के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाई जाती थी। अलबत्ता वर्तमान स्थित से परेशान इन कोचिंग सेंटरों में पढ़ाई करने वाले अधिकांश युवा घाटी से बाहर अन्य राज्यों में कोचिंग लेने जाने की तैयारी में हैं।
दिल्ली में जाकर करुंगा तैयारी
आदिल सलफी नामक युवा कहता है, मैं सीईटी (कॉमन एंट्रेंस टेस्ट) की तैयारी कर रहा हूं। पहली अगस्त को मैंने श्रीनगर के एक कोचिंग सेंटर में एडिमशन ली थी। एक ही कलास लगाई और उसके बाद से कोचिंग सेंटर लगातार बंद है। पढ़ाई का नुकसान हो रहा है, जिसकी भरपाई के लिए मैंने दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर में दाखिले की बात की है। 17 सितंबर को दिल्ली जा रहा हूं। बकौल सलफी वह अकेले नहीं बल्कि उसके तीन दोस्त भी पढ़ाई के लिए दिल्ली जा रहे हैं।
बैंगलुरू जाकर स्टडी करेगी शबाना
सदफ शबाना नामक युवती कहती है कि मैं गेट एग्जाम की तैयारी कर रही हूं। वादी में कोचिंग सेंटर बंद रहने से स्टडी प्रभावित हो रही है। सेल्फ स्टेडी कर लेती, लेकिन इंटरनेट बंद होने के कारण मेटीरियल भी डाउनलोड नहीं कर सकती। सफद ने कहा कि मेरी बहन बैंगलूरु में पिता के साथ रहती है। उसने वहां एक कोचिंग सेंटर में बात की है और सोमवार सुबह की फ्लाइट से बैंगलूरु जा रही हूं, वहां स्टडी करुंगी।
अधूरा सिलेबस शिमला में करुंगा पूरा
अदनान मलिक नामक युवक ने कहा कि बीते साल बीमारी की वजह से मैं केएएस की तैयारी नहीं कर पाया था। मेरा एक साल ऐसे ही बर्बाद हो गया था। इस साल मैंने केएएस की कोचिंग के लिए श्रीनगर में एक कोचिंग सेंटर में दाखिला ले लिया। 50 फीसद सिलेबस पूरा होने की वाला था कि अनुच्छेद 370 और 35ए के हटने से वादी के हालात बदल गए। सेलिबस वहीं का वहीं रह गया। मैं नही चाहता कि यह साल भी ड्राप हो। लिहाजा पढ़ाई करने शिमला जा रहा हूं। बकौल मलिक उसका भाई की शिमला में कश्मीर आटर्स की दुकान है। भाई ने वहां एक कोचिंग सेंटर में बात कर ली है और शिमला रवाना हो रहा है।