राम मंदिर पर मुसलमान सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानने को तैयार: फारूख अब्दुल्ला
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने कहा है कि राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानने के लिए मुसलमान तैयार हैं।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। राम मंदिर पर जारी सियासी गरमी के बीच जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने कहा है कि राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानने के लिए मुसलमान तैयार हैं। इसीलिए सर्वोच्च अदालत के फैसले का इंतजार किया जाना चाहिए और कानून-संविधान की मर्यादा को दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए।
फारूख ने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान क्या दुनिया की कोई ताकत भारत से अलग नहीं कर सकती मगर यह भी जरूरी है कि देश में मुसलमानों पर भरोसा करने की भावना भी बनानी होगी।
नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूख अब्दुल्ला ने यह बात कांग्रेस नेता मनीष तिवारी की पुस्तक 'फेब्लस आफ फ्रेक्चरर्ड टाइम्स' के विमोचन के मौके पर आयोजित परिचर्चा के दौरान कही। पूर्व प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह ने इस पुस्तक का विमोचन किया। भाजपा की ध्रुवीकरण की सियासत में मंदिर मुद्दे को आगे करने के सवाल पर फारूख अब्दुल्ला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला होगा उसे स्वीकार करने को मुसलमान तैयार हैं। ऐसे में संविधान और कानून से परे जाकर कुछ करना उचित नहीं होगा।
राम या अल्लाह को वोट नहीं चाहिए
फारूख ने यह बात तब कही जब परिचर्चा में मौजूद जदयू महासचिव पवन वर्मा ने कहा कि अयोध्या में राम का मंदिर बनाने का विरोध क्यों होना चाहिए। वर्मा ने कहा कि बेशक मंदिर बनना चाहिए मगर सुप्रीम कोर्ट के फैसले या आपसी सहमति के आधार पर ही यह होना चाहिए। जदयू नेता ने फारूख के राम या अल्लाह को वोट नहीं चाहिए कि टिप्पणी पर सवाल उठाते हुए यह बात कही।
फारूख ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर को दुनिया की कोई ताकत भारत से नहीं ले सकती जब तक की हम धर्म या जाति के नाम पर खुद विभाजित नहीं हो जाते। इसलिए वे कहना चाहेंगे कि मुसलमान उतने ही देशभक्त हैं जितना कोई दूसरा और देश को उन पर भरोसे का माहौल बनाना होगा।
करतारपुर साहब गलियारा बनाना अच्छा कदम
जम्मू-कश्मीर के हालात को लेकर फारूख ने कहा कि करतारपुर साहब गलियारा बनाने पर पाकिस्तान के साथ सहमति अच्छा कदम है। मगर कश्मीर मसले का समाधान इंसानियत के रास्ते निकालना होगा और इसके लिए कुछ लेने और कुछ देने की राह के लिए तैयार होना पड़े तो वह करना से गुरेज नहीं होना चाहिए। फारूख ने कहा कि व्यावहारिक रास्ता यही होगा कि पीओके उनके हिस्से रहे और हमारे पास जो भू-भाग है वह हमारा रहे। इस तरह से समाधान निकलता है तो हमें संसद के प्रस्ताव पर लचीला संशोधन के लिए भी विचार करना चाहिए।
शासन और राजनीति की शैली बदल गई
इस मौके पर मनीष तिवारी ने कहा कि बीते साढे चार साल में देश में शासन और राजनीति की शैली बदल गई है। संस्थाओं को सियासी एजेंडे के तहत संचालित किया जा रहा जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती के रुप में उभर रहे हैं। लोकतंत्र के मजबूत स्तंभ मीडिया से लेकर शायद ही कोई संस्था बची है जिस पर भाजपा-एनडीए का प्रहार नहीं हुआ है।
तिवारी ने कहा कि शासन और राजनीति की यह शैली लोकतंत्र को बहुसंख्यक नियंत्रित व्यवस्था में बदल सकती है। हालांकि फारूख ने मनीष की राय से असहमति जताते हुए कहा कि देश का धर्मनिरपेक्षता का बुनियादी चरित्र ऐसा नहीं होने देगा। मनीष तिवारी ने अपनी इस तीसरी पुस्तक में देश और दुनिया की पिछले एक साल की अहम घटनाओं का विशलेषण किया है।
भारत-पाक के बीच आतंक सबसे अहम मसला: मनमोहन
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मनीष तिवारी की पुस्तक का विमोचन करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर के मौजूदा हालत भारत-पाकिस्तान रिश्तों की जटिलता की वजह से हैं। 26/11 आतंकी हमले में मारे गए निर्दोष भारतीयों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच असली मसला आतंकवाद है। मनमोहन ने कहा कि बीते दस साल में दुनिया की सियासत में बेहद तेजी से बदलाव हुआ है और घटनाएं अकल्पनीय गति से हो रही हैं।
अमेरिका और यूरोप का उदाहरण देते हुए पूर्व पीएम ने कहा कि जो कुछ समय पहले खुद को उदारवाद का चैंपियन कहते थे वे आज संरक्षणवाद के सबसे मुखर समर्थक हो गए हैं। ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर आएगा यह कोई सोचा नहीं था। इसी तरह पूर्वी यूरोपीय देश हंगरी और पोलैंड यूरोप के बुनियादी सामाजिक वसूलों से इतर अलग राह पर चले गए हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया में हो रहे इन बदलावों के असर से भारत भी वंचित नहीं रह सकता। मनमोहन ने तिवारी की लेखनी और उठाए गए सवालों की तारीफ भी की।