बिन आखत की होली तो कहीं होरी बाबा के जयकारे
होली पर जितने रंग उतनी परंपराएं भी। कहीं बिना आखत के पर्व मनाया जाता है तो कहीं होलिका मइया के बजाय होरी बाबा के जयकारे लगते हैं। शाहजहांपुर के लाट साहब का जुलूस और बरेली में अनोखी रामलीला तो देश भर में पहचान रखती है।
जागरण टीम, बरेली: होली पर जितने रंग, उतनी परंपराएं भी। कहीं बिना आखत के पर्व मनाया जाता है तो कहीं होलिका मइया के बजाय होरी बाबा के जयकारे लगते हैं। शाहजहांपुर के लाट साहब का जुलूस और बरेली में अनोखी रामलीला तो देश भर में पहचान रखती है। आइए, बरेली मंडल की अनबेली होली परंपराओं के बारे में जानते हैं। पीलीभीत: बंगाली समुदाय करता है राम-कृष्ण की पूजा पीलीभीत में आजादी के बाद बंगाली परिवारों को नेपाल बार्डर पर जंगल किनारे बसा दिया गया था। इस वक्त उनकी आबादी करीब 70 हजार है। बंगाली समुदाय के मंजीत सरकार बताते हैं कि हमारे यहां आखत डालने की परंपरा नहीं है। होलिका दहन भी नहीं होता है। राधा-कृष्ण के भजन गाते हुए टोलियां गांव में घूमती हैं। रंग-गुलाल लगाकर एक दूसरे को शुभकामनाएं दी जाती हैं। रविवार से इसकी शुरूआत हो गई। शाहजहांपुर: भैंसा गाड़ी पर बैठकर निकलेंगे लाट साहब वर्ष 1947 से निरंतर लाट साहब का जुलूस निकाला जा रहा है। इसमें अंग्रेजों का प्रतीक बनाकर एक युवक को भैंसागाड़ी पर बैठाया जाता है। जुलूस में शामिल लोग अंग्रेजों के प्रति आक्रोश व्यक्त करते हुए उसे चप्पल-जूतों से पीटते हैं। धीरे-धीरे शहर में ऐसे जुलूसों की संख्या बढ़कर 10 हो गई। मुख्य जुलूस में लाट साहब बनाने के लिए मुरादाबाद से एक युवक को 25 हजार रुपये में लाया गया है। शाहजहांपुर: होरी बाबा को याद करते हैं लोग गांव घुसगवां में होलिका मइया नहीं, होरी बाबा के जयकारे लगते हैं। पूर्व प्रधान भुवनेश्वर ¨सह उर्फ मुन्ना ¨सह बताते हुए है कि वर्ष 1466 में घुसगवां गांव में राजा भोला ¨सह के किले पर अजमेर के राजा रामपाल ने आक्रमण कर दिया। वह होली का दिन था। एक तरफ आखत डाले जा रहे थे, दूसरी ओर गांव के होरी लाल समेत कई अन्य सैनिक बलिदानी हो गए। उनके शव जलती होलिका में डाल दिए गए थे। होरी ने रक्षा करते हुए प्राण त्यागे, इसलिए गांव के लोग तभी से होली वाले दिन उनकी पूजा करने लगे। शाहजहांपुर: बेगम के साथ निकलते लाटसाहब, मुस्लिम करते स्वागत शहर में लाट साहब की जूता मार होती होती है, जबकि रोजा के बरमौला अर्जुनपुर में लाट साहब बेगम के साथ जुलूस लेकर निकलते हैं। हुक्का, बैंडबाजा और होली के फाग के साथ उनकी सवारी निकलती है। जिसका स्वागत मुस्लिम भी करते हैं। गांव के लोग बताते हैं कि आजादी से पहले नवाब जुलूस का स्वागत करते थे। बाद में ग्रामीणों ने उसी तरह जुलूस निकालकर सौहार्द की मिसाल पेश करना शुरू कर दी।