राजस्थान में BJP के लिए मुश्किल, कांग्रेस की तरफ लौट रहे 'दलित' !
पिछले चार सालों में राज्य सरकार के मंत्रियों की बेरुखी और एक के बाद एक हुई दलित उत्पीड़न की घटनाओं ने दलितों को भाजपा से दूर करने काम किया।
नरेंद्र शर्मा, जयपुर। राजस्थान में खुफिया एजेंसियों के इनपुट ने राज्य सरकार और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कान खड़े कर दिए हैं। इनपुट के मुताबिक राजस्थान का दलित समाज एक बार फिर कांग्रेस की तरफ लौटने लगा है। कभी कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माने जाने वाला दलित समाज भाजपा से जुड़ा तो 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 163 सीटें मिली और वसुंधरा राजे के नेतृत्व में सरकार बनी। लेकिन पिछले चार सालों में राज्य सरकार के मंत्रियों की बेरुखी और एक के बाद एक हुई दलित उत्पीड़न की घटनाओं ने दलितों को भाजपा से दूर करने काम किया। वसुंधरा राजे ने दलित उत्थान की कोशिश भी बहुत की, लेकिन इसमें नौकरशाहों और उनके नेताओं के दिलचस्पी नहीं लेने के कारण सफल नहीं हो सकी।
हाल ही में संपन्न हुए उपचुनावों में भाजपा की हार का कारण दलितों का फिर से कांग्रेस के साथ जुड़ना भी माना जा रहा है। उपचुनाव का परिणाम आने के बाद इंटेलिजेंस एजेंसियों ने सरकार को जो फीडबैक दिया है, उसमें दलितों की नाराजगी के पांच प्रमुख कारण सामने आए हैं। पहला कारण पांच दलितों की हत्या का गवाह बना 'डांगावास कांड'। दूसरा कारण 'डेल्टा मेघवाल आत्महत्या प्रकरण'। तीसरा कारण सत्तारुढ़ दल भाजपा की ही दलित विधायक चंद्रकांता मेघवाल के साथ पुलिस द्वारा की गई बदसलूकी। चौथा कारण दलित विधायकों को सत्ता में महत्वपूर्ण स्थान नहीं मिलना। पांचवा कारण दलित अधिकारियों को अच्छी पोस्टिंग नहीं मिलना।
बता दें कि प्रदेश के नागौर जिले में जाटों और दलितों के बीच जमीन को लेकर हुए संघर्ष में पांच दलितों की मौत हो गई थी। इस मामले में प्रदेश के सहकारिता मंत्री अजय सिंह पर जाटों को संरक्षण देने व दलितों की अनदेखी के आरोप लगे थे। इसी तरह बीकानेर के नोखा में दलित छात्रा डेल्टा मेघवाल के कथित दुराचार और फिर आत्महत्या का मामला भी दलितों को भाजपा से दूर करने में प्रमुख कारण रहा। डेल्टा मेघवाल के परिजनों से मिलने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो पहुंचे, लेकिन भाजपा नेताओं ने दूरी बनाए रखी। मामले की सीबीआइ जांच नहीं कराने से भी दलित समाज नाराज हो गया।
इंटेलिजेंस एजेंसियों का फीडबैक मिलने के बाद भाजपा सक्रिय अवश्य हुई है, लेकिन अब विधानसभा चुनाव में मात्र नौ माह शेष बचे है, ऐसे में इतने कम समय दलितों को अपने साथ फिर से जोड़ना असंभव भले ही ना हो, लेकिन मुश्किल जरूर है।