बदलती दिख रही है बिहार की सियासत, फिर नया किनारा तलाश रही 'मांझी की नाव'
राजद से किनारा करने के बाद हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतनराम मांझी नई पार्टी की तलाश कर रहे हैं। बिहार की राजनीति में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट देखने को मिल रही है।
By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 19 Aug 2019 09:24 AM (IST)Updated: Mon, 19 Aug 2019 10:29 PM (IST)
पटना [अरविंद शर्मा]। महागठबंधन से अलग राह पकडऩे का एलान करके पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने अपनी सियासी अहमियत और जरूरत का दायरा बढ़ा लिया है। उनके तौर-तरीके से लग रहा कि वह अब फिर नया किनारा तलाश रहे। हालांकि वह विधानसभा और लोकसभा चुनाव अपने गठबंधन को खास फायदा नहीं पहुंचा पाए, लेकिन इतना है कि राज्य की राजनीति में उन्हें महत्व मिल जा रहा।
जनाधिकार पार्टी वाले पप्पू यादव उनके साथ मिलकर बिहार में तीसरा मोर्चा खड़ा करना चाह रहे हैं। कांग्र्रेस भी कृपा बरसाने में पीछे नहीं रहना चाह रही है। जदयू के शब्दकोष से भी मांझी के लिए अच्छे-अच्छे शब्द निकलने लगे हैं और भाजपा को भी मांझी से परहेज नहीं रहा है। आखिर क्या है मांझी की मंशा?
सियासत में कब किसकी अहमियत बढ़ जाए और कब कम हो जाए, कहा नहीं जा सकता है। महागठबंधन को खरी-खोटी सुनाने के बाद माना जा रहा था कि मांझी के चंचल मन को दूसरे ठिकाने की तलाश है।
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के अनुभव पर सवाल उठाने के बाद राजद की ओर से भी दो-टूक कह दिया गया कि उनका मन अगर इधर नहीं लग रहा है तो जहां चाहे चले जाएं। राजद के बंधन से मुक्त होकर मांझी दिल्ली गए और खबर है कि प्रियंका गांधी से मुलाकात भी की।
मांझी के प्रमुख सहयोगी और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के प्रवक्ता दानिश रिजवान का दावा है कि मांझी को कांग्रेस में विलय का प्रस्ताव मिला है। मांझी की सियासत की शुरुआत कांग्रेस से ही हुई है। अपनी पार्टी बनाने और जदयू से पहले मांझी कांग्र्रेस में ही थे।
रिजवान कहते हैं कि अभी कुछ तय नहीं है कि आगे क्या करना है। कांग्र्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी के मुताबिक प्रियंका से मांझी ने मुलाकात की या नहीं, यह मैं नहीं जानता। किंतु हम चाहते हैं कि वह हमारे साथ रहें।
बहरहाल, तेजस्वी को निशाने पर लेकर मांझी ने अपनी मंशा का जब खुलासा किया तो जदयू ने ज्यादा देर नहीं की। उसने भी अपना दरवाजा खोल दिया।
जदयू के राष्ट्रीय महासचिव आरसीपी सिंह ने साफ कर दिया कि मांझी के लिए जदयू का दरवाजा बंद नहीं है। राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी के स्वर में भी आमंत्रण था। उन्होंने कहा कि मांझी के साथ सबसे बड़ा न्याय नीतीश कुमार ने ही किया। उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर नीतीश ने गांधी के सपनों को साकार किया था।
मांझी की सबसे ज्यादा अहमियत पप्पू यादव की नजरों में है। लोकसभा चुनाव में राजद ने पप्पू को महागठबंधन में शामिल नहीं होने दिया था। कांग्र्रेस प्रत्याशी और उनकी पत्नी रंजीत रंजन की राह में भी राजद ने कांटे बिछाए थे। अब पप्पू के पास तेजस्वी को सबक सिखाने का मौका है।
ऐसा करने से उनके लिए राजग और महागठबंधन से अलग एक रास्ता भी निकल आएगा। वह भाकपा के कन्हैया कुमार के साथ मिलकर बिहार विधानसभा चुनाव में तीसरा मोर्चा बनाना चाह रहे हैं।
जनाधिकार पार्टी वाले पप्पू यादव उनके साथ मिलकर बिहार में तीसरा मोर्चा खड़ा करना चाह रहे हैं। कांग्र्रेस भी कृपा बरसाने में पीछे नहीं रहना चाह रही है। जदयू के शब्दकोष से भी मांझी के लिए अच्छे-अच्छे शब्द निकलने लगे हैं और भाजपा को भी मांझी से परहेज नहीं रहा है। आखिर क्या है मांझी की मंशा?
सियासत में कब किसकी अहमियत बढ़ जाए और कब कम हो जाए, कहा नहीं जा सकता है। महागठबंधन को खरी-खोटी सुनाने के बाद माना जा रहा था कि मांझी के चंचल मन को दूसरे ठिकाने की तलाश है।
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के अनुभव पर सवाल उठाने के बाद राजद की ओर से भी दो-टूक कह दिया गया कि उनका मन अगर इधर नहीं लग रहा है तो जहां चाहे चले जाएं। राजद के बंधन से मुक्त होकर मांझी दिल्ली गए और खबर है कि प्रियंका गांधी से मुलाकात भी की।
मांझी के प्रमुख सहयोगी और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के प्रवक्ता दानिश रिजवान का दावा है कि मांझी को कांग्रेस में विलय का प्रस्ताव मिला है। मांझी की सियासत की शुरुआत कांग्रेस से ही हुई है। अपनी पार्टी बनाने और जदयू से पहले मांझी कांग्र्रेस में ही थे।
रिजवान कहते हैं कि अभी कुछ तय नहीं है कि आगे क्या करना है। कांग्र्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी के मुताबिक प्रियंका से मांझी ने मुलाकात की या नहीं, यह मैं नहीं जानता। किंतु हम चाहते हैं कि वह हमारे साथ रहें।
बहरहाल, तेजस्वी को निशाने पर लेकर मांझी ने अपनी मंशा का जब खुलासा किया तो जदयू ने ज्यादा देर नहीं की। उसने भी अपना दरवाजा खोल दिया।
जदयू के राष्ट्रीय महासचिव आरसीपी सिंह ने साफ कर दिया कि मांझी के लिए जदयू का दरवाजा बंद नहीं है। राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी के स्वर में भी आमंत्रण था। उन्होंने कहा कि मांझी के साथ सबसे बड़ा न्याय नीतीश कुमार ने ही किया। उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर नीतीश ने गांधी के सपनों को साकार किया था।
मांझी की सबसे ज्यादा अहमियत पप्पू यादव की नजरों में है। लोकसभा चुनाव में राजद ने पप्पू को महागठबंधन में शामिल नहीं होने दिया था। कांग्र्रेस प्रत्याशी और उनकी पत्नी रंजीत रंजन की राह में भी राजद ने कांटे बिछाए थे। अब पप्पू के पास तेजस्वी को सबक सिखाने का मौका है।
ऐसा करने से उनके लिए राजग और महागठबंधन से अलग एक रास्ता भी निकल आएगा। वह भाकपा के कन्हैया कुमार के साथ मिलकर बिहार विधानसभा चुनाव में तीसरा मोर्चा बनाना चाह रहे हैं।
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