केंद्र ने जमाएत-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगने से कश्मीर की सियासत व आतंकवाद पर होगा महत्वपूर्ण असर
केंद्र सरकार ने गैरकानूनी व विध्वंसकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण कश्मीर के कट्टरपंथी अलगाववादी संगठन जमाएत-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया।
जम्मू, राज्य ब्यूरो। केंद्र सरकार ने गैरकानूनी व विध्वंसकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण कश्मीर के कट्टरपंथी अलगाववादी संगठन जमाएत-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया। वीरवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की उच्चस्तरीय समिति की बैठक के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस संबंध में एक आदेश जारी कर दिया।
जमायत-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध से कश्मीर की सियासत और आतंकवाद पर असर होना तय है। कश्मीर की सियासत से लेकर आतंकी हिंसा में जमाएत की भूमिका को किसी न किसी रूप में हमेशा स्वीकारा जाता रहा है। कश्मीर में सक्रिय स्थानीय आतंकियों के सबसे बड़े संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन को जमाएत का फौजी बाजू भी समझा जाता है।
जमाएत-ए-इस्लामी के खिलाफ केंद्र सरकार ने अपने सख्त रुख का संकेत गत शुक्रवार देर रात कश्मीर में आमीर-ए-जमाएत डॉ. फैयाज हामिदी समेत घाटी के सभी जिला जमाएत प्रमुखों व अन्य पदाधिकारियों की गिरफ्तारी के साथ दे दिया था। घाटी में बीते एक सप्ताह के दौरान करीब 500 जमाएत कार्यकर्ता पकड़े जा चुके हैं। केंद्र द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद गिरफ्तारियों का सिलसिला और तेज होने के साथ ही जमाएत के संस्थानों पर तालाबंदी भी शुरू हो जाएगी।
जमाएत ने बोए कट्टरता के बीज :
जमाएत ने ही कश्मीरी युवाओं में अलगाववाद और मजहबी कट्टरता के बीज बोए हैं। बीते चार सालों के दौरान जमाएत के कई नेता कश्मीर के विभिन्न जगहों पर आतंकियों का महिमामंडन करते भी पकड़े गए हैं। कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी, मसर्रत आलम, शब्बीर शाह, नईम खान समेत शाायद ही ऐसा कोई अलगाववादी होगा, जो जमाएत का कैडर न रहा हो। यही बात कश्मीर में सक्रिय मुख्यधारा के कई वरिष्ठ नेताओं पर भी लागू होती है।
नेकां व जमाएत के बीच कई बार झगड़े हुए :
कश्मीर में जमाएत ए इस्लामी की नींव 1942 में पीर सैदउद्दीन ने रखी थी। परंपरागत रूप से कश्मीर में जमाएत और नेशनल कांफ्रेंस का ही जनाधार सबसे ज्यादा है। कश्मीर में शायद ही कोई ऐसी गली या मोहल्ला होगा, जहां जमाएत का कोई कार्यकर्ता या आधार न हो। कश्मीर की सियासत में जमाएत ने ही किसी न किसी तरीके से नेकां को चुनौती दी है और कई बार नेकां व जमाएत कार्यकर्ताओं के बीच झगड़े हुए हैं। इसके बावजूद नेकां के कई नेता जमाएत की पृष्ठभूमि के हैं। जमाएत ने कथित तौर पर पीडीपी को सियासी मंच पर पूरी मदद की है, यह आम धारना कश्मीर में व्याप्त है।
1971 में चुनावा में भी लिया था हिस्सा :
शुरू में जमाएत ने खुद को इस्लाम के प्रचार तक रखा, लेकिन बाद में यह कश्मी की सियासत में भी सक्रिय हो गई। पहली बार वर्ष 1971 में इसने चुनावा में हिस्सा लिया, लेकिन यह कोई भी सीट नहीं जीत पाई। अलबत्ता, 1972 में हुए चुनावों में जमायत के पांच विधाायक राज्य विधानसभा में थे और इनमें कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी भी थे। जमाएत ने ही 1975 में इंदिरा-शेख समझौते का पूरी वादी में मुखर विरोध किया था। जमायत कश्मीर में जनमत संग्रह और कश्मीर बनेगा पाकिस्तान नारे की समर्थ है। आपातकाल के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने इस पर प्रतिबंध लगाया था। वर्ष 1987 में जमाएत ने कश्मीर के अन्य मजहबी संगठनों के साथ मिलकर मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट कश्मीर जिसे मफ कहते हैं, बनाया था।
आतंकवाद की रीड़ रही है जमात :
राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक कुलदीप खुड्डा, पूर्व पुलिस महानिदेशक के राजेंद्रा समेत कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ भी कई मंचों पर स्वीकार चुके हैं कि कश्मीर में आतंकवाद की रीड़ के तौर पर जमाएत-ए-इस्लामी किसी न किसी तरीके से काम करती है। जमाएत हमेशा कश्मीर में अलगाववाद की समर्थक रही है।