सीबीआइ ने बढ़ाई लालू की मुश्किल, सजा अवधि बढ़ाने को याचिका दायर की
सीबीआइ की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि देवघर कोषागार मामले में लालू को साढ़े तीन साल की सजा सुनाई गई है।
रांची, राज्य ब्यूरो। लालू प्रसाद की मुश्किलें बढ़ सकती है। सीबीआइ की ओर से उनकी सजा की अवधि बढ़ाने को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। निचली अदालत ने देवघर कोषागार मामले में लालू प्रसाद को साढ़े तीन साल की सजा सुनाई है। इसके अलावे सीबीआइ ने डॉ. आरके राणा, बेक जूलियस, फूलचंद सिंह, महेश प्रसाद और सुबीर भट्टाचार्य की भी सजा की अवधि बढ़ाने का आग्रह कोर्ट से किया है।
सीबीआइ की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि देवघर कोषागार मामले में लालू को साढ़े तीन साल की सजा सुनाई गई है। जबकि इसी मामले में लोक लेखा समिति के तत्कालीन अध्यक्ष जगदीश शर्मा, सरकारी अधिकारी कृष्ण कुमार प्रसाद, सुनील गांधी को सात-सात साल की सजा मिली है। सभी के खिलाफ आरोप और साक्ष्य समान थे, इस कारण सभी को समान सजा होनी चाहिए थी।
बरी करने को दी चुनौती : देवघर कोषागार मामले में ही सीबीआइ ने एक अन्य याचिका हाई कोर्ट में दाखिल की है। सीबीआइ ने निचली अदालत द्वारा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र, विद्यासागर निषाद, ध्रुव भगत, एसी चौधरी को बरी किए जाने को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि सीबीआइ कोर्ट ने इन आरोपितों के मामले में सभी तथ्यों पर गौर नहीं किया है। सभी पर इस मामले की साजिश में शामिल होने के पर्याप्त साक्ष्य भी थे, लेकिन निचली अदालत ने इस पर विचार नहीं किया और सभी को बरी कर दिया।
गौरतलब है कि चारा घोटाले से जुड़े देवघर कोषागार से अवैध निकासी के दोषी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को सीबीआई कोर्ट ने साढ़े तीन साल कैद की सजा सुनाते हुए दस लाख का जुर्माना भी लगाया था। जुर्माने की राशि जमा नहीं करने पर उन्हें अतिरिक्त छह माह कैद में रहना होगा। उन पर भादवि की धारा और पीसी एक्ट की धाराओं में पांच-पांच लाख का अलग-अलग जुर्माना लगाया गया था।
सीबीआई के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत ने इस मामले के ( आरसी 64 ए/96) के अन्य 15 आरोपियों को भी सजा सुनाई। सभी को 23 दिसंबर को दोषी करार दिया गया था। सभी दोषियों को भादवि की धारा 120 बी, 420, 467, 468, 471, 477 ए और पीसी एक्ट के सेक्शन 13 (2) 13(1) (सी) 9डी) के तहत दोषी मानते हुए सजा सुनाई गई। इन्हें साजिश रचने, धोखाधड़ी करने, फरजी आवंटन तैयार करने, फरजी बिल तैयार करने, सरकारी दस्तावेजों का गलत इस्तेमाल करने और भ्रष्टाचार करने का दोषी मानते हुए अदालत ने सजा सुनाई। जिन्हें साढ़े तीन साल की सजा सुनाई गई है, उनमें आपूर्तिकर्ताओं को छोड़कर बाकी सभी को दस लाख और सात साल की सजा वालों पर बीस लाख का जुर्माना लगाया गया है। जुर्माने की राशि जमा नहीं करने वाले साढ़े तीन साल के दोषियों को छह माह और सात साल वालों को अतिरिक्त एक साल जेल में रहना होगा।
अदालत ने इस मामले के दो दोषियों पूर्व सांसद जगदीश शर्मा और आपूर्तिकर्ता त्रिपुरारी मोहन प्रसाद को सात साल कैद और दस लाख का जुर्माना लगाया। जुर्माने की राशि जमा नहीं करने पर इन्हें एक साल अतिरिक्त जेल में रहना होगा।
जानें, क्या है मामला
यह मामला देवघर कोषागार से 89.4 लाख रुपये की अवैध निकासी का है। सीबीआई ने सभी आरोपितों पर फरजी बिल और फरजी आवंटन तैयार कर कोषागार से अवैध निकासी करने के आरोप में 1996 में प्राथमिकी दर्ज की थी।