राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार व उनके भतीजे अजीत पवार के खिलाफ केस दर्ज, जानें क्या है मामला
मुंबई पुलिस ने बैंक घोटाले में शरद पवार व अजीत पवार समेत कई लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की है।
मुंबई, आइएएनएस। मुंबई पुलिस ने करीब एक हजार करोड़ रुपये के महाराष्ट्र सहकारी बैंक घोटाले में सोमवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार, उनके भतीजे व राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री अजीत पवार समेत कई लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की। बांबे हाई कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता सुरिंदर एम अरोड़ा द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए 22 अगस्त को यह आदेश दिया था। दक्षिणी मुंबई के एमआरए मार्ग थाने में मुकदमा दर्ज होने के बाद अब आर्थिक अपराध शाखा मामले की जांच करेगी।
एफआइआर में राकांपा प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल, पूर्व उप मुख्यमंत्री विजय सिंह मोहिते-पाटिल, शिवसेना के आनंदराव वी. अडसुल के अलावा 30 जिला सहकारी बैंकों के पूर्व निदेशकों, नाबार्ड, सरकारी और बैंक अधिकारियों के नाम भी दर्ज हैं। मामले की जांच के लिए गठित कमेटी ने शरद पवार व अन्य को दोषी ठहराया था। इसके बावजूद न तो एफआइआर दर्ज हुई थी और न ही कोई कार्रवाई हुई थी। इसके बाद अरोड़ा ने 2015 में याचिका दायर की थी।
कई नेता और 34 जिलों के अधिकारी शामिल
जस्टिस एससी धर्माधिकारी और जस्टिस एसके शिंदे की पीठ ने गुरुवार यह आदेश दिए। शरद पवार और अजित पवार के अलावा इस मामले के आरोपितों में राकांपा नेता जयंत पाटिल, कई अन्य राजनेता, सरकारी अधिकारी और राज्य के 34 जिलों के कोऑपरेटिव बैंक के कई वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। सभी आरोपित 2007 से 2011 के बीच एमएससीबी को कथित रूप से 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने में शामिल थे।
आयोग ने आरोपपत्र में दोषी ठहराया
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा कराए गए निरीक्षण और महाराष्ट्र कोऑपरेटिव सोसायटीज (एमसीएस) एक्ट के तहत अर्धन्यायिक जांच आयोग द्वारा दाखिल आरोपपत्र में शरद पवार, अजित पवार और बैंक के कई निदेशकों समेत अन्य आरोपितों को दोषी ठहराया गया था। इसमें कहा गया था कि उनके फैसलों, कार्यो और लापरवाही की वजह से बैंक को यह नुकसान उठाना पड़ा। नाबार्ड की ऑडिट रिपोर्ट में यह तथ्य भी उजागर हुआ था कि आरोपितों ने चीनी और कताई मिलों को कर्ज बांटने, कर्जे नहीं चुकाए जाने और कर्जो की वसूली में कई बैंकिंग कानूनों व रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया। खास बात यह है कि उस दौरान अजित पवार बैंक के निदेशक थे।
आरोपितों के खिलाफ विश्वसनीय सुबूत
निरीक्षण रिपोर्ट के बावजूद इस मामले में कोई एफआइआर दर्ज नहीं की गई थी। स्थानीय आरटीआइ कार्यकर्ता सुरेंद्र अरोड़ा ने 2015 में आर्थिक अपराध शाखा में एक शिकायत दर्ज कराई थी और हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर एफआइआर दर्ज किए जाने की मांग की थी। गुरुवार को हाई कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में नाबार्ड की निरीक्षण रिपोर्ट, शिकायत और एमसीएस एक्ट के तहत दायर आरोपपत्र से साफ है कि आरोपितों के खिलाफ इस मामले में विश्वसनीय सुबूत हैं।
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