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Bihar Assembly Election 2020: सीमांचल में कन्हैया के दौरा के बीच गिरिराज की धमक के सियासी मायने

Bihar Assembly Election 2020 सीमांचल में कन्‍हैया के दौरे के बीच गिरिराज सिंह भी पहुंच गए हैं। कन्‍हैया जहां सीएए व एनआरसी के विरोध में हैं वहीं गिरिराज समर्थन में।

By Amit AlokEdited By: Published: Wed, 19 Feb 2020 07:50 PM (IST)Updated: Wed, 19 Feb 2020 10:22 PM (IST)
Bihar Assembly Election 2020: सीमांचल में कन्हैया के दौरा के बीच गिरिराज की धमक के सियासी मायने
Bihar Assembly Election 2020: सीमांचल में कन्हैया के दौरा के बीच गिरिराज की धमक के सियासी मायने

अश्विनी, भागलपुर। लोकसभा चुनाव के बाद कुछ महीनों तक सियासी हलचल भी न के बराबर थी, मौसम भी ठंडा। अब विदा होती ठंड के बीच सियासत के भी तेवर बदल रहे हैं। यूं कहें कि गर्मी ही गर्मी। इन दिनों बिहार के कोसी और सीमांचल का नजारा कुछ ऐसा ही है। कुछ परोक्ष तो कुछ खुल्लमखुला।

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जवाहरलाल नेहरू विवि छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष व भारतीय कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के नेता कन्हैया कुमार का दौरा और ठीक उसी समय भारतीय जनता पार्टी के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह की इन इलाकों में मौजूदगी के गहन राजनीतिक मायने भी हैं। भले ही रूटीन कार्यक्रम का नाम दिया गया हो, पर यह बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सियासी जमीन की 'जोत' ही है। बुधवार को गिरिराज अररिया तो कन्हैया खगडिय़ा में थे।

कोसी-सीमांचल में विधानसभा की 35 सीटें मायने रखती हैं, जहां की जमीन को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), एनआरसी और एनपीआर के विरोध जैसे मुद्दों की खाद से ज्यादा उर्वर बनाने तो दूसरी ओर 'विरोध' के विरोध में अपने कैडरों में नई ऊर्जा भरने की कोशिश दिख रही है। 

सीएए क्यों के सवाल के साथ कन्हैया नई जमीन बनाने की कोशिश में दिख रहे तो गिरिराज का चिर-परिचित तेवर भी बहुत कुछ बयां कर रहा। उन्होंने यहां नया नारा दिया है- 'भारतवंशी तेरा मेरा नाता क्या, जयश्री राम जय श्रीराम।' राजनीतिक रूप से सीमांचल में होने वाली कोई भी सियासत यहीं तक सिमटी नहीं होती। राज्य ही नहीं, इससे बाहर भी इसके संदेश जाते हैं। इसलिए यहां की हलचल के पीछे तय सियासी रणनीति से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है।

यह भी उल्लेखनीय पहलू है कि सीएए लागू होने के बाद से ही खास तौर पर मुस्लिम समुदाय लगातार धरना-प्रदर्शन कर रहा है। मतदाताओं की एक बड़ी जमात पर सबकी नजर है। राष्‍ट्रीय जनता दल नेता तेजस्वी यादव भी यहां सभा कर चुके हैं। असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता ने भी यहां सियासी उम्मीद ढूंढी और उपचुनाव में किशनगंज की विधानसभा सीट ले ली।

सीएए का विरोध कर रहे दलों की नजर इस पर भी है कि कहीं इस जनाधार में बंटवारा न हो जाए, सेंध न लग जाए। वैसे भी, बेगूसराय में गिरिराज सिंह से बुरी तरह परास्त हो चुके कन्हैया को आरजेडी का साथ नहीं मिला था। विपक्ष को राष्ट्रीय स्तर पर भले ही सीएए का मुद्दा मिल चुका हो, पर बिहार में होने वाले चुनाव के नजरिए से इस पर हर खेमा अलग-अलग नजरें टिकाए दिख रहा है। कन्हैया भी इससे परे नहीं, इसमें थोक के भाव सियासी आमद दिख रही। वहीं, गिरिराज जैसे नेताओं को संयमित लेकिन सक्रिय मौजूदगी का निर्देश है, ताकि राजनीतिक मौसम के अनुकूल गर्मी पैदा की जा सके। आने वाले दिनों में यह हलचल और बढऩे की उम्मीद है।


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