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Ayodhya Ram Mandir: साध्वी ऋतंभरा बोलीं- तरुणाई श्रीराम जन्मभूमि को अर्पित हुई, इसका अगाध सुख

Ayodhya Ram Mandir साध्वी ऋतंभरा की आंखों में करीब तीन दशक पहले की यादें ताजा हो गईं। बोलीं राम मंदिर निर्माण को सरयू का जल हाथ में लेकर संकल्प लिया था।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 02:53 PM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2020 02:58 PM (IST)
Ayodhya Ram Mandir: साध्वी ऋतंभरा बोलीं- तरुणाई श्रीराम जन्मभूमि को अर्पित हुई, इसका अगाध सुख
Ayodhya Ram Mandir: साध्वी ऋतंभरा बोलीं- तरुणाई श्रीराम जन्मभूमि को अर्पित हुई, इसका अगाध सुख

मथुरा [विनीत मिश्र]। देश में वो 90 के दशक की शुरुआत थी। राममंदिर आंदोलन चरम पर था। आंदोलन की कमान जिन चंद लोगों के हाथों में थी, उनमें साध्वी ऋतंभरा का नाम प्रमुख था।

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मंदिर आंदोलनकारियों को पुलिस तलाश रही थी। रेलवे स्टेशन से लेकर खेतों और भिखारियों के बीच साध्वी ने न जानें कितनी रातें काटीं। वेश बदलकर छिपते-छिपाते सभा करती रहीं। जिस राम मंदिर निर्माण का सपना देखा था, वह पूरा हो रहा है। साध्वी कहती हैं कि मेरी तरुणाई श्रीराम जन्मभूमि को अर्पित हुई, इसका अगाध सुख है।

जागरण से बातचीत में साध्वी ऋतंभरा की आंखों में करीब तीन दशक पहले की यादें ताजा हो गईं। बोलीं, राम मंदिर निर्माण को सरयू का जल हाथ में लेकर संकल्प लिया था। उसकी पूर्ति में तमाम संकट झेले। पूरे उत्तर प्रदेश में मेरे लिए प्रतिबंध था। कई बार वेश बदलना पड़ता। ललितपुर में सभा करने गई थी, जिस घर में रुकी। मुझे गिरफ्तार करने को पुलिस ने उसे घेर लिया। मैंने एक साड़ी पहनी और उस परिवार के आठ माह के बच्चे को गोद में लेकर पिछले दरवाजे से निकल गई। दिल्ली में मुझ पर कई केस दर्ज हुए। लोग मुझे अपने घर में ठहराने से डरते थे। मैंने अपनी तमाम रातें खेत, रेलवे स्टेशन और भिखारियों के बीच गुजारी हैं।

दिमाग में गूंजता था 'मंदिर बनाएंगे' शब्द

संकट झेलने के बाद भी अडिग रहने के बारे में साध्वी का कहना था कि राम मंदिर बनाने की सौगंध थी, उसी काम में लगे थे। 'मंदिर बनाएंगे' ये शब्द दिमाग में गूंजता था। किसी व्यक्ति में कोई सामर्थ्य नहीं होती, ईश्वर व नियति व्यक्ति का उपयोग करती है। मेरे शरीर का उपयोग भी हुआ। ये प्रभु राम की इच्छा थी।

चोरी-छिपे रिकॉर्ड होते थे मेरे भाषण

साध्वी कहती हैं कि चोरी-छिपे मेरे भाषण रिकॉर्ड होते थे। जागरूक करने को कैसेट बिकती। जो गाड़ी कैसेट लेकर जाती थी, भीड़ लग जाती। कैसेट खत्म होते तो नाराज लोग गाड़ी तोड़ने लगते। ये लोगों का जोश था कि आंदोलन किसी संस्थान या संगठन का नहीं रहा, जनांदोलन बन गया। उसी का सुपरिणाम इस पांच अगस्त को मिल रहा है।

भूमिका गिलहरी के समान

साध्वी मंदिर निर्माण में भी अपनी भूमिका गिलहरी के समान मानती हैं। कहती हैं देश की भावना को जागृत करना, दर्द को जगाना और दर्द की दवा बनने की तैयारी करना, यही मेरी भूमिका ईश्वर ने निश्चित की थी। मुझे खुद नहीं पता, अंदर से कैसे इस काम के लिए उबाल आता था। काशी में एक दिन 14 छोटी-बड़ी सभाएं कीं। रात ढाई बजे आश्रम में आराम करने गई। पता चला कि कुछ लोग एक सभा के लिए बुलाने आए हैं। वहां एक लाख लोग एकत्र हैं। मैं गई, सुबह पांच बजे सभा कर वापस आई। हर रात ट्रेन पर यात्रा करती और दिन भर रामजन्मभूमि के लिए जागरण का कार्य करती।

दिग्भ्रमित संतानोंं के लिए राम जैसे आदर्श पुरुष जरूरी

राम मंदिर क्यों जरूरी है? इस सवाल के जवाब में वह कहती हैं आज हमारी संतानोंं को सफलता-असफलता की शुचिता का बोध नहीं है, ऐसी दिग्भ्रमित संतानोंं के लिए राम जैसे आदर्श पुरुष जरूरी हैं। पांच सौ साल बाद जो हो रहा है, ये भारतीय समाज के खंडित स्वाभिमान की पुन:प्रतिष्ठा है। मैं ये नहीं कहती कि राम मंदिर के निर्माण से भारत की सारी समस्याओंं के समाधान हो जाएंगे, लेकिन मंदिर निर्माण का प्रारंभ रामराज्य की स्थापना का प्रथम चरण है। बातों में समाज में भेदभाव का दर्द भी छलका। कहा, कि हम भेदभाव के शिकार हैं। पंजाब के दर्द को कश्मीर और कश्मीर के दर्द को केरल नहीं समझता। तमिलनाडु और महाराष्ट्र के बीच जो झगड़े हैं, वह अभी चल रहे हैं। सबको एकात्मता के सूत्र में बांधा जाना चाहिए। ये सब भगवान राम का नाम करेगा। जैसे उन्होंंने पैदल चलकर जनजातियोंं को जोड़ा था, वही भावना काम करेगी।

वह कहती हैं कि राम मंदिर निर्माण को मैं अपने जीवन की पूर्णता और संपूर्णता के रूप में देखती हूं। मेरे शरीर की तरुणाई रामजन्मभूमि के लिए अर्पित हुई,इसका अगाध सुख है। वह राम मंदिर निर्माण के शिलान्यास में भी शामिल होंगी। 


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