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Exclusive Interview : इकबाल अंसारी की दो-टूक : अब्दुल हमीद और एपीजे के वंशजों पर शक न करे कोई

After Ayodhya Verdic हिंदू-मुस्लिम हमेशा से एक-दूसरे का सहयोगी रहा है। यह बहुत अच्छा हो यदि मुस्लिम मंदिर निर्माण में और हिंदू मस्जिद निर्माण में आगे आएं।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Tue, 12 Nov 2019 04:42 PM (IST)Updated: Tue, 12 Nov 2019 04:45 PM (IST)
Exclusive Interview : इकबाल अंसारी की दो-टूक : अब्दुल हमीद और एपीजे के वंशजों पर शक न करे कोई
Exclusive Interview : इकबाल अंसारी की दो-टूक : अब्दुल हमीद और एपीजे के वंशजों पर शक न करे कोई

अयोध्या [रघुवरशरण]। रामनगरी अयोध्या के 491 करीब वर्ष पुराने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के दो समकालीन किरदार बेहद अहम हैं। यहां रामचंद्रदास परमहंस यदि मंदिर की, तो मो. हाशिम अंसारी मस्जिद की पैरोकारी के पर्याय थे। इसके बावजूद जहां दोनों की दोस्ती की मिसाल दी जाती रही, वहीं वे चमत्कारिक तौर पर शांति-सौहार्द के दूत के रूप में भी याद किए जाते हैं।

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अति सामान्य परिवार में पैदा हुए हाशिम ने जीविका के लिए शुरुआती दौर में कपड़ा सिलने और साइकिल मरम्मत का काम किया। हालांकि यह उनके स्वभाव में था कि जो ठान लेते थे, उसे कर दिखाते थे। इसी मिजाज के चलते यदि उन्होंने बाबरी मस्जिद की दावेदारी की डोर पकड़ी, तो मुल्क के प्रति जिम्मेदारी की डोर कभी कमजोर नहीं पडऩे दी। इस समंवय के चलते रामजन्मभूमि के चंद कदम के ही फासले पर मुहल्ला कोटिया में पैदा हुए और 94 वर्ष की अवस्था तक रहे हाशिम अंसारी का बाल भी बांका नहीं हुआ, उल्टे वहतो हिंदुओं के बीच पर्याप्त स्वीकृत रहे।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का 2010 में फैसला आने तक तो वह तो सेलीब्रिटी की तरह लोकप्रिय हुए, जब उन्होंने रामजन्मभूमि पर मंदिर स्वीकार करने का संकेत देना शुरू किया। तीन वर्ष पहले हाशिम तो चल बसे पर विवाद के फलक पर संवाद की विरासत छोड़ गए, जिसे उनके एकमात्र पुत्र मो. इकबाल अंसारी बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं। सबसे बड़े विवाद का फैसला आने के बाद वे सुर्खियों में हैं। इस दौरान 'जागरण' ने उनसे सामयिक परिस्थितियों पर बातचीत की, जो इस प्रकार है-

सवाल : जिस विवाद के समाधान की प्रतीक्षा में आपके पिता ने पूरा जीवन समर्पित कर दिया, उसका फैसला आने पर कैसा लग रहा है?

जवाब : जो पिछली बाते थीं, वह उनके जमाने में रहीं। मैं तो कहता हूं कि जो कुछ हुआ, वह बहुत अच्छा हुआ। हम कोर्ट का पूरा सम्मान करते हैं।

सवाल : यदि पिता की रूह से कभी मुलाकात हो, तो फैसले पर उनसे क्या कहेंगे?

जवाब : जब कोई अच्छा काम करके ऊपर जाता है, तो उसे सब दिखाई पड़ता है। हमें अब्बू से बताने की जरूरत नहीं पड़ेगी, वह जहां भी होंगे-फैसले से अवगत हो गए होंगे। 2010 में हाईकोर्ट का फैसला आने के समय तो वे थे और उन्होंने फैसले का पूरा सम्मान किया था।

सवाल : आपके मरहूम पिता प्राय: यह कहा करते थे कि मुल्क पहले और मस्जिद बाद में है, उनकी इस नसीहत को आज किस रूप में याद कर रहे हैं?

जवाब : वह देश के प्रति हमेशा वफादार रहे। वैसे भी हम लोगों पर शक करना नासमझी है। हमें देश पर शहीद होने वाले वीर अब्दुल हमीद और महान वैज्ञानिक पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को याद रखना होगा।

सवाल : आपने सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार मस्जिद के लिए जमीन स्वीकार करने की बात कही है, इस जमीन के लिए आपकी क्या अपेक्षा-क्या सुझाव हैं?

जवाब : जमीन किसकी होगी, कहां दी जाएगी और कितनी होगी? इस बारे में मैं नहीं बोलना चाहता। यह तय करना कोर्ट और सरकार का काम है।

सवाल : आप फैसला शिरोधार्य कर चुके हैं। सौहार्द बनाने का भी प्रयास कर रहे हैं। क्या निकट भविष्य में मंदिर निर्माण के प्रति भी कोई सहयोग देंगे?

जवाब : हिंदू-मुस्लिम हमेशा से एक-दूसरे का सहयोगी रहा है। यह बहुत अच्छा हो यदि मुस्लिम मंदिर निर्माण में और हिंदू मस्जिद निर्माण में आगे आएं।

सवाल : असदुद्दीन ओवैसी के उस बयान पर क्या कहेंगे, जिसमें उन्होंने मस्जिद के लिए भूमि दिए जाने के आदेश पर कहा है, मुझे खैरात नहीं चाहिए?

जवाब : ओवैसी और वेदांती जैसे नेताओं के बयान पर मैं अधिक ध्यान नहीं देता।

सवाल : फैसला आने के बाद पाकिस्तान ने कहा कि भारत में मुस्लिमों के साथ अन्याय हो रहा है, इस बारे में क्या कहेंगे?

जवाब : इस बयान को मैंने नहीं सुना, तो इस पर क्या कहूं।

सवाल : फैसला आने के बाद शांति-सौहार्द की जो बयार बही है, उसके बारे में क्या कहेंगे?

जवाब : यह अच्छा है, हमें मिल-जुल कर रहना चाहिए और मुल्क की तरक्की में कोई कसर नहीं छोडऩी चाहिए।

सवाल : अहम दौर में देश के लिए आपका कोई संदेश?

जवाब : नए भारत का निर्माण हो रहा है, सांप्रदायिक भेद-भाव से ऊपर उठकर मुल्क और मानवता की तरक्की में लगें। यही ऊपर वाले का भी संदेश है। 


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