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Year Ender 2019 : सिक्किम में बदल गई 25 साल की सत्ता

Year Ender 2019 वर्ष 2019 देश के हिमालयी क्षेत्र के छोटे से सुंदर पहाड़ी राज्य सिक्किम की राजनीति के लिए बहुत ऐतिहासिक रहा।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 30 Dec 2019 09:57 AM (IST)Updated: Mon, 30 Dec 2019 11:22 AM (IST)
Year Ender 2019 : सिक्किम में बदल गई 25 साल की सत्ता
Year Ender 2019 : सिक्किम में बदल गई 25 साल की सत्ता

सिलीगुड़ी, इरफान-ए-आजम। वर्ष 2019, देश के हिमालयी क्षेत्र के छोटे से सुंदर पहाड़ी राज्य सिक्किम की राजनीति के लिए बहुत ऐतिहासिक रहा। इस वर्ष, यहां की पूरी एक चौथाई सदी भर रहने वाली यानी 25 साल की सत्ता परिवर्तित हो गई। इसी वर्ष अप्रैल-मई में हुए विधानसभा चुनाव-2019 में यहां नया जनादेश आया। राज्य में लगातार 25 सालों तक शासन करने वाला सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) सत्ता से बेदखल कर दिया गया। नए दल सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) को जीत मिली। विधान सभा की कुल 32 में 17 सीटें एसकेएम के खाते में आईं जबकि सत्ताधारी एसडीएफ को 15 सीटें मिलीं।

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सिक्किम की जनता ने, देश में रिकॉर्ड लगातार पांच बार व सबसे ज्यादा दिनों (24 साल 165 दिन) तक मुख्यमंत्री रहने वाले पवन कुमार चामलिंग व उनके एसडीएफ की विदाई कर दी। प्रशांत सिंह तामांग उर्फ पी.एस. गोले के एसकेएम के पक्ष में जनादेश आया। सिक्किम की एकमात्र लोकसभा सीट भी जनता ने एसकेएम के इंद्रहंग सुब्बा को सौंपी।

ज्ञातव्य रहे कि सिक्किम विधानसभा में पवन कुमार चामलिंग के एसडीएफ को 2004 में 32 में 31 और 2009 में तो सारी की सारी 32 सीट ही मिली थी। परंतु, 2014 में 22 सीट ही मिल पाई। तब, पी.एस. गोले के एसकेएम ने पहली बार चुनावी प्रतिद्वंद्विता करते हुए 10 सीटें हथिया ली थी। इस बार तो एसकेएम ने सत्ता ही ले ली। उल्लेखनीय है कि पी. एस. गोले कभी पवन चामलिंग के बड़े नजदीकी हुआ करते थे।

5 फरवरी 1968 को जन्मे पी. एस. गोले 1990 में सरकारी शिक्षक बने और 1993 में नौकरी छोड़ कर राजनीति में आ गए। पवन चामलिंग के एसडीएफ से जुड़ कर ही उन्होंने राजनीति की शुरुआत की। 1994, 1999, 2004 व 2009 में एसडीएफ के टिकट पर विधायक होते रहे। उस दौरान उन्होंने कई विभागों में मंत्री पद भी संभाला। एसडीएफ के उपाध्यक्ष व प्रदेश युवा संयोजक भी रहे। एसडीएफ में उन्होंने बड़ी तेजी से तरक्की की। बाद में, पवन चामलिंग से मतभेद के चलते वह 2009 से चामलिंग सरकार के आलोचक व बागी हो गए।

अंतत: चार फरवरी 2013 को उन्होंने अपना सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा बनाया। अपने दल से पहली बार 2014 में विधानसभा चुनाव लड़ा। उस समय राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री व सिक्किम संग्राम परिषद के अध्यक्ष नर बहादुर भंडारी ने अपनी पार्टी को चुनाव से अलग रख गोले को बिना शर्त पूर्ण समर्थन दिया व उनके पक्ष में खूब हवा बनाई। एक और पूर्व मुख्यमंत्री बी.बी. गुरुंग ने भी एसडीएफ को त्याग कर गोले व उनकी पार्टी का समर्थन किया। गोले का एसकेएम मजबूत विपक्ष के रूप में उभरा। सिक्किम में एकछत्र शासन करने वाले पवन चामलिंग के एसडीएफ को कड़ी चुनौती दी और आखिरकार सत्ता ही ले ली।

इस सफलता के लिए पी. एस. गोले को काफी संघर्ष भी करना पड़ा। 2014 के विधानसभा चुनाव में वह स्वयं विधायक तो हुए ही और 32 में से 10 सीटें चामलिंग से छीन ली। विपक्षहीन विधानसभा में मजबूत विपक्ष आया। 30 नवंबर 2015 को उनके सात विधायक वापस एसडीएफ में शामिल हो गए। दूसरी ओर उस दौरान गोले पर भ्रष्टाचार का मुकदमा भी चला। भ्रष्टाचार निरोधक अदालत ने उन्हें पूर्व में मंत्री पद पर रहते हुए सरकारी निधि का दुरुपयोग करने का दोषी ठहराया। उन्हें जुर्माना व कैद की सजा दी गई। भ्रष्टाचार के दोषी के नाते जनवरी 2017 में उन्हें विधायक बने रहने के अयोग्य भी घोषित कर दिया गया। 10 अगस्त 2018 को जमानत पर वह रिहा हुए। मगर, कभी भी संघर्ष नहीं छोड़ा और अंतत: सफल हो कर रहे।

पी. एस. गोले ने 27 मई 2019 को सिक्किम के छठे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली हालांकि तब वह निर्वाचित विधायक नहीं थे। क्योंकि, अदालती मामले के चलते अप्रैल-मई में वह खुद विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार नहीं हो पाए थे। बाद में अदालत से आदेश के बाद उनकी चुनावी उम्मीदवारी का रास्ता साफ हुआ। अक्टूबर महीने में हुए सिक्किम विधान उपचुनाव में वह पोकलोक-कामरांग विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए। ये उपचुनाव तीन सीटों पर हुआ था। इसलिए कि दो-दो सीटें जीतने वाले तीन विधायकों ने एक-एक सीट छोड़ दी थी। खैर, अब सिक्किम की यह नई परिवर्तित सत्ता सिक्कम को किस मुकाम तक ले जाएगी इसका आकलन आने वाला वक्त ही करेगा। 


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