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#JagranForum: भावी पीढ़ियों का हक छीन रहे संविधान से छेड़छाड़ करने वाले -जस्टिस मिश्रा

पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, आजादी पर समझौता नहीं हो सकता। जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा ने धारा 377 को मनोवैज्ञानिक कमी बताया। मुकुल रोहतगी बोले धर्म में कोर्ट दखल नहीं हो सकता।

By Vikas JangraEdited By: Published: Sat, 08 Dec 2018 02:20 PM (IST)Updated: Sat, 08 Dec 2018 03:41 PM (IST)
#JagranForum: भावी पीढ़ियों का हक छीन रहे संविधान से छेड़छाड़ करने वाले -जस्टिस मिश्रा
#JagranForum: भावी पीढ़ियों का हक छीन रहे संविधान से छेड़छाड़ करने वाले -जस्टिस मिश्रा

नई दिल्ली, जेएनएन। दैनिक जागरण की 75वीं वर्षगांठ पर जागरण फोरम में पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिश दीपक मिश्रा, जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा और मुकुल रोहतगी ने नागरिक अधिकार और न्यायपालिका विषय पर अपने विचार रखे। फोरम के इस चौथे सत्र का संचालन संजय जैन ने किया। इस दौरान जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि हम आज एक सभ्य नागरिक समाज में रह रहे हैं और इसका प्राथमिक उद्देश्य समाज में सौहार्द लाना है।

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उन्होंने कहा अगर एक समाज में नागरिक को स्वतंत्रता नहीं मिलेगी तो समाज में तनाव उत्पन्न होगा। उन्होंने थॉमस जेफरसन की कही बात को रखते हुए कहा, 'जब सरकारें लोगों से डरती हैं, वहां स्वतंत्रता होती है। जब लोग सरकार से डरते हैं, तब वहां अत्याचार है।'

आजादी के बिना जिंदगी बिना खुश्बू का गुलाब
जस्टिस मिश्रा ने कहा कि विचारों का स्वतंत्र आदान-प्रदान बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि आजादी एक ऐसी चीज है जिस पर कोई समझौता नहीं हो सकता। हम वो लोग हैं, वो देश हैं, जो लड़ेंगे, लेकिन आजादी के विचार को नहीं छोड़ेंगे। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि अगर आप स्वतंत्रता छीन लेते हैं तो ये वैसा ही होगा जैसा कि खुश्बू के बिना गुलाब। जस्टिस मिश्रा ने कहा, 'कोई भी अगर आज संविधान के साथ थोड़ा सा भी धोखा करे तो ये मान के चलिए कि वो आपके बेटा-बेटी या पोती का अधिकार छीन रहा है।'

तीसरा वर्ग मनोवैज्ञानिक कमी हैः जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा
जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा ने कहा कोर्ट का काम बैलेंस करने का होता है। उन्होंने धारा 377 पर कहा कि ये अधिकार हो सकता है। हालांकि मेरी व्यक्तिगत राय ये है कि तीसरा वर्ग मनोवैज्ञानिक कमी है। इसमें चिकित्सा की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जब समाज का बड़ा वर्ग किसी तरह की बंदिश में था तो कोर्ट ने सही फैसला सुनाया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हर हालत में कायम रहनी चाहिए। जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा ने कहा कि संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन पर कोर्ट आंख नहीं मूद सकता। धर्म के अधिकार और संवैधानिक अधिकारों में किसी तरह का संघर्ष होता है तो कोर्ट दखलअंदाजी करेगा। मेरी व्यक्तिगत राय है कि सबरीमाला में महिलाओं के अधिकारों पर कोर्ट का फैसला सही है।

जस्टिस ज्ञान सुधा ने कहा न्याय में देरी एक बहुत बड़ी समस्या है। हम किसी भी तरह के बदलाव का स्वागत नहीं करते हैं। मैं लीक से हटकर सोचती हूं, हालांकि सब लोग मेरी बात को नहीं समझते हैं।

धर्म के रीति रिवाज में कोर्ट दखल नहीं हो सकताः मुकुल रोहतगी
वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा मेरी राय है कि धर्म के रीति रिवाज में कोर्ट का दखल नहीं हो सकता। सिखों के केश, कृपाण पर कोर्ट दखलअंदाजी नहीं कर सकता है। सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला गलत है। ट्रिपल तलाक लगभग सारी दुनिया में खत्म हो चुका है, ये बाध्यकारी प्रेक्टिस नहीं है। हमारे यहां न्याय मिलने में काफी समय लगता है। हमारे यहां केसों का अंबार लगा हुआ है। मैनें दो-दो लाख रुपये के लिए सुप्रीम कोर्ट तक केश लड़ते हुए देखा है। हमें नंबर ऑफ अपील कम करनी होंगी। ऐसा इसलिए हो रहा क्योंकि अधिकारी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं। उनकी जिम्मेदारी तय नहीं है। हमारे यहां न्याय मिलने में काफी समय लगता है। जब तक नंबर ऑफ अपील को कम करने की दिशा में काम नहीं होगा, चाहे जजों की संख्या जितनी बढ़ा दी जाए केसों का अंबार ऐसे ही लगा रहेगा।

मुकुल रोहतगी ने कहा कि पुराने कानूनों को बदलना होगा, सरकार अधिकतर केसों में लगी हुई है, सिस्टम में बदलाव करना होगा। अनावश्यक पिटिशन से बचना होगा सरकार को। जुडिशियरी की अकाउंटबिलिटी नहीं है। एक जज 2 केस कर रहा है एक दूसरा जज 500 केस कर रहा है।


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