येद्दयुरप्पा: क्लर्क से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर, इस तरह सत्ता के गलियारों में बनाई अपनी जगह
कट्टर आरएसएस स्वयंसेवक, 75 वर्षीय बुकानाकेरे सिद्दालिंगप्पा येद्दयुरप्पा ने उस दौरान हिंदू संगठन ज्वाइन किया जब वे महज 15 वर्ष के थे।
नई दिल्ली (एजेंसी)। कर्नाटक चुनाव का सस्पेंस खत्म हो चुका है और इसके साथ ही बी एस येद्दयुरप्पा को सरकार बनाने के लिए हरी झंडी मिल गई है। हालांकि 15 दिनों के भीतर उन्हें सदन में बहुमत साबित करने का आदेश दिया गया है। हमेशा की तरह इस बार भी राजनीतिक पड़ाव पर विवादों ने उनका दामन नहीं छोड़ा। येद्दयुरप्पा का विवादों से गहरा नाता रहा है। जब वे कर्नाटक की सत्ता में पहली बार मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान हुए, उस समय भी देश के शीर्ष अदालत में उनके खिलाफ मुकदमा चला था। जानते हैं कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री का राजनीतिक सफर कितना उतार-चढ़ाव भरा रहा है-
सरकारी क्लर्क से मुख्यमंत्री तक का सफर
सरकारी क्लर्क से लेकर मुख्यमंत्री बनने तक का उनका सफर इतना आसान नहीं रहा है। उनके अब तक के राजनीतिक सफर में काफी उतार-चढाव आए हैं। अपने करियर के शुरुआत में वे एक हार्डवेयर स्टोर के मालिक थे। लेकिन आज वे दूसरी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद के लिए चुने गए हैं। हालांकि काफी उथल-पुथल के बीच ये फैसला लिया गया है इस बीच मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच गया था।
15 की उम्र में आरएसएस में हुए शामिल
कट्टर आरएसएस स्वयंसेवक, 75 वर्षीय बुकानाकेरे सिद्दालिंगप्पा येद्दयुरप्पा ने उस दौरान हिंदू संगठन ज्वाइन किया जब वे महज 15 वर्ष के थे। 1970 के शुरुआत में वे जन संघ के शिकारपुरा प्रमुख बनाए गए। आपको बता दें कि वर्तमान में वे शिवमोग्गा से लोकसभा सदस्य हैं। उन्हें पहली बार 1983 में शिकारपुरा से विधानसभा के लिए चुना गया इसके बाद वे पांच बार वहां से चुने गए। लिंगायत समुदाय के प्रतिनिधि येद्दयुरप्पा ने किसानों की भलाई को हमेशा प्रमुखता दी है और इस बारे में कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने चुनावी भाषण में जिक्र कर चुके हैं।
आपातकाल के दौरान गए जेल
कला में स्नातक की डिग्री लिए येद्दयुरप्पा को आपातकाल के समय जेल भी जाना पड़ा था, उस दौरान वे समाज कल्याण विभाग में कलर्क के तौर पर काम करते थे। इसके पहले वे अपने होमटाउन शिकारपुरा में राइस मिल में काम करते थे। लेकिन इसके बाद उन्होंने शिवमोग्गा में हार्डवेयर का अपना स्टोर खोला।
2006 में कुमारस्वामी से मिलाया हाथ
2004 के दौरान भाजपा अकेली एक बड़ी पार्टी हुआ करती थी। उसी दौरान पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौडा ने कांग्रेस और जेडीएस एक साथ मिलकर गठबंधन बनाई जिसके तहत राज्य में धरम सिंह की सरकार बनी। अपने राजनीतिक बुद्धिमता का इस्तेमाल कर येद्दयुरप्पा ने 2006 में देवगौडा के बेटे कुमारस्वामी के साथ हाथ मिलाया और उसी समय खनन घोटाले में दोषी पाए जाने पर धरम सिंह की सरकार गिर गई। इसके बाद समझौते के तहत कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने और येद्दयुरप्पा उप मुख्यमंत्री। हालांकि ये गठबंधन की सरकार गिर गई क्योंकि जेडीएस ने 20 महीने के साझा सौदे पर दोबारा चुनाव लड़ने का रास्ता निकाल लिया।
2008 में पहली बार बने CM लेकिन...
2008 के चुनाव में लिंगायत समुदाय के कारण पार्टी को बड़ी जीत मिली, और येद्दयुरप्पा के तौर पर दक्षिण राज्य में पहली बार भाजपा की सरकार बनी। लेकिन सत्ता हाथ में आते ही विवाद भी साथ ही साथ आ गए। उन पर ये आरोप लगा कि वे बेंगलुरू में अपने बेटे को जमीन दिलवाने के लिए अपनी सत्ता का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। उन पर काफी दबाव पड़ने के बाद 31 जुलाई 2011 में उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। उसी साल इन आरोपों के बाद 15 अक्टूबर को उन्होंने लोकायुक्त कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। उन्हें एक सप्ताह के जेल भी भेजा गया।
भाजपा से हुआ मोहभंग
इन हालातों में येद्दुरप्पा का भाजपा से मोहभंग होने लगा और उन्होंने अंत में भाजपा से अपने दशकों पुराने सहयोग को तोड़ लिया। इसके बाद उन्होंने कर्नाटक जनता पक्ष (केजेपी) से एक अलग पार्टी बनाई। लेकिन उनका ये फैसला भी कारगर सिद्ध नहीं हो रहा था। वे अकेले पार्टी को उन ऊंचाइयों पर ले जाने में सफल नहीं हो पा रहे थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने 2013 के चुनाव में भाजपा की सत्ता में बरकरार रहने की संभावनाओं को तोड़ दिया और 6 सीटों पर जीत हासिल की।
इन हालातों में भाजपा से पुनर्मिलन
इधर येद्दयुरप्पा का राजनीतिक जीवन अनिश्चितताओं से भरा था और उधर भाजपा को 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान एक ऐसे नेता की तलाश थी जिनकी राजनीति में साख और बुनियाद काफी मजबूत हो। उसी समय भाजपा और येद्दयुरप्पा का फिर से पुनर्मिलन हुआ। 9 जनवरी 2014 को येद्दयुरप्पा ने अपनी केजेपी पार्टी को भाजपा के साथ मिला दिया। लोकसभा चुनाव हुए, भाजपा ने कर्नाटक के 28 सीटों में से 19 सीटों पर जीत हासिल की। इससे ये साबित हुआ कि येद्दयुरप्पा का भाजपा के साथ मिलने का फैसला सही था। हालांकि इसके बाद भ्रष्टाचार के बावजूद येद्दयुरप्पा की स्थिति भाजपा में मजबूत होती चली गई।
2016 में मिली बड़ी राहत
26 अक्टूबर 2016 को उन्हें एक बड़ी राहत मिली जब सीबीआइ ने सभी आरोपों से बरी कर दिया। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने भी येद्दयुरप्पा के खिलाफ लगे सभी 15 एफआइआर को खारिज कर दिया। उसी साल अप्रैल में उन्हें चौथी बार राज्य के भाजपा प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया।