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जानें, आतंंकियों ने आखिर क्‍यों चुना था संसद पर हमले के लिए 13 दिसंबर का दिन

संसद पर हमले की 17वीं बरसी पर हम आपको बताते हैं कि आखिर आतंकियों ने संसद पर हमले के लिए इस दिन का क्‍यों चयन किया था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 13 Dec 2018 10:50 AM (IST)Updated: Thu, 13 Dec 2018 10:50 AM (IST)
जानें, आतंंकियों ने आखिर क्‍यों चुना था संसद पर हमले के लिए 13 दिसंबर का दिन
जानें, आतंंकियों ने आखिर क्‍यों चुना था संसद पर हमले के लिए 13 दिसंबर का दिन

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। संसद पर हुए हमले की आज 17वीं बरसी है। 13 दिसंबर 2001 को हुए इस हमले ने पूरी दुनिया को चकित कर दिया था। यह पहला मौका था जब देश की संसद पर आतंकियों ने हमला किया था। 45 मिनट चले इस वाकये से हर कोई हैरान और परेशान था। इस हमले को जैश ए मोहम्‍मद के पांच आतंकियों ने अंजाम दिया था। इस हमले से संसद के अंदर और बाहर हर कोई सहम गया था। इन आतंकियों का मकसद संसद के मुख्‍य भवन में प्रवेश कर वहां मौजूद सांसदों को निशाना बनाना था। लेकिन वहां मौजूद सुरक्षाबलों ने उनका मंसूबा कामयाब नहीं होने दिया। इस हमले के सभी आतंकियों को सुरक्षाबलों ने बाहर ही ढेर कर दिया था। इस हमले में दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल और संसद के दो गार्ड भी शहीद हो गए थे। इसके अलावा कुल 16 जवान भी घायल हुए थे।

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आतं‍कियों ने इसलिए चुना था ये दिन
इस हमले को अंजाम देने के लिए आतंकियों ने 13 दिसंबर का दिन इसलिए भी चुना था क्‍योंकि उस वक्‍त संसद सत्र चल रहा था और अधिकतर सांसद सदन में मौजूद थे। उस दिन ताबूत घोटाले को लेकर विपक्ष का हंगामा अपने चरम पर था। हंगामे के चलते संसद के दोनों सदनों को 40 मिनट के लिए स्थगित कर दिया गया था। इस बीच पीएम अटल बिहारी बाजपेयी और सोनिया गांधी अपने आवास के लिए निकल चुके थे और बाकी के सांसद कैंटीन में चाय नाश्ते और अपनी चर्चाओं में मशगूल थे। किसी को अंदाजा भी नहीं था कि अगले चंद लम्हों के क्या भयानक हादसा होने वाला है। आतंकियों ने संसद तक जाने के लिए सफेद एंबेसडर कार चुनी थी। ऐसा इसलिए था क्‍योंकि इस कार की पहचान करना काफी मुश्किल था क्‍योंकि संसद भवन में इस तरह की कार आमतौर पर देखी जा सकती थीं। आतंकियों की इस कार पर गृह मंत्रालय का एक स्‍टीकर भी लगा था। हालांकि संसद में प्रवेश आसान नहीं होता है और इसमें प्रवेश करने वाले हर व्‍यक्ति और वाहन की पूरी जांच की जाती है।

सांसदों ने गोलियों की आवाज को समझा पटाखों की आवाज
सुबह के करीब 11 बजकर 29 मिनट पर पांच आतंकियों ने संसद में घुसते ही एके-47 से गोलियों की बौछार शुरु कर दी। उस समय तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी अपने मंत्रियों और करीब 200 सांसदों के साथ संसद में मौजूद थे। जिस वक्‍त आतंकी गोलिया चला रहे थे उस वक्‍त कुछ सांसदों को लगा कि पटाखे छोड़े जा रहे हैं। लेकिन जल्‍द ही इस बात का अंदाजा सभी को हो गया था कि यह पटाखों की आवाज नहीं बल्कि आतंकियों द्वारा की जा रही फायरिंग की आवाजें थीं। सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत मोर्चा संभालते हुए सांसदों और मीडिया कर्मियों को सदन में महफूज जगह पहुंचाकर सदन का गेट बंद कर दिया। करीब 30 मिनट तक दोनों तरफ से गोलियां चलती रहीं और सारे आतंकियों को ढेर कर दिया गया।

हमले के मास्टर माइंड को फांसी
संसद पर हमले की घिनौनी साजिश रचने वाले मुख्य आरोपी अफजल गुरु को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया। संसद के हमले के मास्टर माइंड मोहम्मद अफजल ने एक इंटरव्यू में कबूल किया था कि हमले के पांचों आतंकवादी पाकिस्तानी थे। इनका मकसद राजनेताओं को खत्म करना था। उसने यह भी स्वीकार किया कि उसने आतंकियों की मदद की थी और वह अफजल गुरु गाजी बाबा के संपर्क में था। खुद अफजल गुरु ने पाकिस्तान में ढ़ाई महीने की आतंकी ट्रेनिंग ली थी। साजिश रचने के आरोप में पहले दिल्ली हाइकोर्ट द्वारा साल 2002 में और फिर उच्चतम न्यायालय द्वारा 2006 में फांसी की सज़ा सुनाई गई थी। उच्चतम न्यायालय द्वारा भी फांसी सुनाए जाने के बाद गुरु ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की थी, जिसको तत्‍कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने खारिज कर दिया था। 9 फरवरी 2013 को सुबह दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया गया।

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