Jyotiraditya Scindia: आखिर कांग्रेस से क्यों मोहभंग हुआ ज्योतिरादित्य सिंधिया का, जानें- सबकुछ
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ने के कारण भी खुद बताए। ज्योतिरादित्य ने बताया कि कांग्रेस अब पहले की तरह की पार्टी नहीं रही है।
ऋषि पाण्डेय, भोपाल। मंगलवार रात कांग्रेस विधायक दल की बैठक के बाद कुछ कांग्रेस विधायक मुख्यमंत्री कमलनाथ को घेर कर बैठे हुए थे। अनौपचारिक बातचीत के दौरान वे नाथ से यह जानना चाह रहे थे कि आखिर ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा की एक सीट देने में क्या आपत्ति थी? आपने उनसे चर्चा क्यों नहीं की? कांग्रेस विधायकों के मन में उठने वाले ये सवाल राजनीति में जरा-भी दिलचस्पी रखने वाले हर आम-ओ-खास के दिलों-दिमाग में तैर रहे हैं। हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस से मोहभंग क्यों हुआ? क्या वजह रही जो कांग्रेस से उनके 18 साल पुराने रिश्तों पर भारी पड़ गई। क्या सिर्फ राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा या कोई और बात भी थी?
तब पहुंची थी विजियाराजे को ठेस-
ज्योतिरादित्य के कांग्रेस छोड़ने की कई वजहों में सबसे महत्वपूर्ण हैं, उनकी लगातार उपेक्षा और आत्मसम्मान को चोट पहुंचना। इतिहास गवाह है कि उनकी दादी श्रीमती विजयाराजे सिंधिया के आत्मसम्मान को जब चोट पहुंची थी, तब राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र की सरकार चली गई थी। बात 1967 की है, विजयाराजे तब कांग्रेस में थीं। किसी कार्यक्रम में पंडित मिश्र ने पुराने राजा-महाराजाओं को लेकर तंज कस दिया। श्रीमती सिंधिया उस तंज को सह नहीं पाई और उन्होंने ऐसा चक्रव्यूह रचा कि मिश्र सरकार का पतन और गोविंद नारायण सिंह के नेतृत्व में पहली संविद सरकार का गठन हुआ।
1996 में माधवराव हुए थे अलग-
1996 में कांग्रेस द्वारा लोकसभा का टिकट नहीं दिए जाने पर ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी थी। तब उन्होंने अलग पार्टी 'मप्र विकास कांग्रेस' बनाई थी। तब माधवराव के कांग्रेस नेतृत्व से मतभेद पैदा हो गए थे। दरअसल, उनका नाम जैन हवाला डायरी में आया था और पार्टी ने इसी कारण उन्हें अप्रैल-मई 1996 में हुए लोस चुनाव का टिकट नहीं दिया था। माधवराव को यह अपमानजनक लगा था। इसलिए उन्होंने कांग्रेस छोड़कर अलग पार्टी बनाई और चुनाव लड़कर कांग्रेस प्रत्याशी शशिभूषण वाजपेयी को हराया था।
कमलनाथ सरकार के अस्तित्व पर खतरा
हालात इस बार भी लगभग वैसे ही हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि अभी कमलनाथ यथावत हैं, हालांकि सिंधिया के 23 समर्थक विधायकों के इस्तीफ से सरकार के अस्तित्व पर काले बादल जरूर मंडरा रहे हैं। बेशक ज्योतिरादित्य सिंधिया देश-प्रदेश की सियासत में बड़ा नाम है। प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में उन्हें हमेशा मुख्यमंत्री का दावेदार माना गया। 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस की बागडौर सौंप कांग्रेस आलकमान यह संकेत दे चुका था कि सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री वे ही होंगे। सिंधिया और उनके समर्थकों को यह नागवार गुजरा। चुनाव नतीजे आने के बाद उनके समर्थक विधायक दिल्ली पहुंच गए। धरने तक की नौबत आ गई। नाथ को नेता चुने जाने की एक तस्वीर सभी को ध्यान होगी, जिसमें बीच में राहुल गांधी और अगल-बगल में सिंधिया और कमलनाथ नजर आ रहे थे। उस तस्वीर में सिंधिया के चेहरे की तल्खी आसानी से पढ़ी जा सकती थी।
सरकार से रिश्ते सामान्य नहीं रहे-
सिंधिया के अपनी सरकार से रिश्ते कभी भी सामान्य नहीं रहे। किसानों की कर्जमाफी का मामला हो या फिर ओलावृष्टि में मुआवजे की बात हो, सिंधिया की खटपट बनी रही। उन्होंने कई बार सीएम कमलनाथ को खत लिखकर अपनी व्यथा बयां की। दबाव बनाने के लिए समर्थक विधायकों को दिल्ली बुलाया, लेकिन कांग्रेस में किसी ने इस पर गौर नहीं किया। सड़कों पर उतरने की धमकी देने वाले बयान दिए, लेकिन कांग्रेस आलाकमान पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
दिग्विजय का दखल भी सबब-
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का कमलनाथ सरकार में प्रभावी दखल भी सिंधिया की नाराजगी की वजह रहा। सिंधिया सर्मथकों को इस बात का मलाल था किकांग्रेस की सत्ता के असली किरदार ज्योतिरादित्य सिंधिया को कमलनाथ ने किनारे लगा दिया, जबकि दिग्विजय सिंह को जरूरत से ज्यादा तवज्जो दिया गया। फिर लोकसभा चुनाव हारने के बाद अपनी उपेक्षा वे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। पहले उनका नाम उपमुख्यमंत्री पद के लिए चला, लेकिन उन्हें बनने नहीं दिया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर उनकी ताजपोशी पिछले एक साल से चर्चा के आगे नहीं बढ़ पा रही थी।
कोई विकल्प नहीं बचा था-
राज्यसभा के जरिए राजनीतिक पुर्नवास की आखिरी संभावना भी जब धुंधली पड़ने लगी, तब सिंधिया के सामने कांगे्रस छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। वे दल-बल के साथ भाजपा के पाले में चले गए और कांग्रेस सरकार संकट में आ गई।
वैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी कांग्रेस छोड़ने के कारण भी बताए। ज्योतिरादित्य ने बताया कि कांग्रेस अब पहले की तरह की पार्टी नहीं रही है, कांग्रेस में रहकर जनसेवा नहीं हो सकती है।
कमलनाथ पर साधा निशाना
जेपी नड्डा के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि कांग्रेस में जो आज स्थिति पैदा हुई है, वहां जनसेवा के लक्ष्य की पूर्ति उस संगठन के माध्यम से नहीं हो पा रही है। इसके अतिरिक्त वर्तमान में जो स्थिति कांग्रेस पार्टी में है, वो अब पहले वाली पार्टी नहीं रही है।
भाजपा में शामिल होते हुए सिंधिया ने कहा कि कांग्रेस पार्टी वास्तविकता से इनकार कर रही है, नए नेतृत्व-नए विचार को नकार रही है। सिंधिया ने कहा, इस वातावरण में राष्ट्रीय स्तर पर जो स्थिति हो चुकी है, वहीं मध्य प्रदेश में भी राज्य सरकार सपने पूरे नहीं कर पाई है।
नहीं पूरा हो पाया सपना!
मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार पर निशाना साधते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि 2018 में हम एक सपना लेकर आए थे, लेकिन उन सपनों को पूरा नहीं किया गया। मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार ने वादे पूरे नहीं किए हैं. कांग्रेस में रहकर जनसेवा नहीं की जा सकती।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि आज मध्य प्रदेश में ट्रांसफर माफिया का उद्योग चल रहा है, राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने मुझे एक नया मंच देने का मौका दिया है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के शामिल होने पर शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कमलनाथ सरकार ने राज्य में कुछ काम नहीं किया है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। शिवराज ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी में महाराज और शिवराज एक हैं।