क्या सरकार सही जांच का भरोसा देने के लिए खुद सीबीआइ की मोहताज!
पुलिस के पास विशेषज्ञ हैं, फिर भी क्यों किसी मामले के तूल पकड़ने पर राज्य सरकार उसकी सीबीआइ जांच को बेहतर विकल्प मानती है।
राज्य ब्यूरो, आलोक मिश्र। फोरेंसिक साइंस से लेकर अन्य अत्याधुनिक संसाधनों से लैस प्रदेश पुलिस की कई विशेषज्ञ जांच शाखाएं भी हैं, पर किसी घटना को लेकर सवाल खड़े होते ही पुलिस के बैकफुट में आने में वक्त नहीं लगता। ट्विटर से लेकर अन्य प्लेटफार्म पर लगातार अपनी छवि सुधारने का प्रयास कर रही पुलिस बड़े मौकों पर अपनी विश्वसनीयता साबित नहीं कर पाती। आखिर पुलिस का इकबाल इतना कमजोर कैसे पड़ जाता है। पुलिस के पास विशेषज्ञ हैं, फिर भी क्यों किसी मामले के तूल पकड़ने पर राज्य सरकार उसकी सीबीआइ जांच को बेहतर विकल्प मानती है। घोटालों की जांच के लिए भी शासन को सीबीआइ की ओर देखना पड़ता है। क्या पुलिस की जांच एजेंसियां कमजोर हो रही हैं। क्या लोगों के बीच उनके विश्वास में कमी आई है। क्या सरकार लोगों को सही जांच का भरोसा देने के लिए खुद सीबीआइ की मोहताज है।
उत्तर प्रदेश में कई संगीन घटनाएं पुलिस की चुनौती रही हैं। नौ मई 2003 को राजधानी में मधुमिता हत्याकांड ने प्रदेश की सियासत में उबाल ला दिया था। पुलिस दबाव में थी और हत्याकांड के पीछे सत्ता का संरक्षण हासिल किए बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी का नाम आ रहा था। सियासत में बढ़ते उबाल के बाद केस सीबीआइ के हवाले किया गया, तब हत्याकांड के षड्यंत्र से परदा उठा। अमरमणि व उनकी पत्नी मधुमणि सलाखों के पीछे हैं।
ऐसे ही उन्नाव कांड में भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर भी जब शिकंजा कसा, जब सीबीआइ ने केस दर्ज कर जांच शुरू की। राजधानी में हुआ श्रवण साहू हत्याकांड भी पुलिस की नाकामी का नतीजा था, जिसकी जांच अब सीबीआइ के हवाले हैं। दरअसल, पुलिस ने इन बड़े मौकों पर अपनी साख बचाने के लिए कभी दृढ़ता से जांच व कार्रवाई नहीं की। लोगों का पुलिस से विश्वास उठता गया और सत्ता-शासन ने भी सीबीआइ जांच को हमेशा अपनी ढाल समझा। शासन ने कभी प्रदेश पुलिस के हाथ मजबूत कर ऐसी मुसीबतों से बचने की नहीं सोची।
पुलिस के पास आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन (ईओडब्ल्यू), विशेष अनुसंधान दल (एसआइटी), भ्रष्टाचार निवारण संगठन, विजिलेंस, सीबीसीआइडी, स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) व आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस) जैसी शाखाएं हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस की इन शाखाओं को और मजबूत बनाने का साफ संदेश दिया था। पुलिस ने अपराधियों के खिलाफ टूट पड़ो की रणनीति पर कदम तो बढ़ाए, लेकिन अपने इन हाथों को मजबूत करना भूल गई। बीते दिनों प्रदेश में दो हजार से अधिक उपनिरीक्षक पदोन्नत होकर निरीक्षक बने। इंस्पेक्टर बढऩे पर पुलिस ने सर्किल मुख्यालय के 414 थानों में तीन अतिरिक्त निरीक्षक तैनात किए जाने का प्रयोग तो किया, लेकिन अपने अन्य शाखाओं को मजबूत करना भूल गई।
विशेष जांच करने वाली इन शाखाओं में अधिक संख्या में निरीक्षकों की तैनाती नहीं की गई। एसआइटी व ईओडब्ल्यू में नियतन से भी कम निरीक्षक तैनात हैं। इन शाखाओं में लंबे समय से लंबित केसों को निपटाने की मुहिम नहीं चली। इन शाखाओं में पोस्टिंग के लिए निरीक्षकों को पोस्टिंग के लिए कोई अतिरिक्त प्रोत्साहन दिए जाने की योजना भी न बनी। सच तो यह है कि इन शाखाओं को खुद पुलिस अधिकारी भी साइड पोस्टिंग मानने लगे।
केस एक -
29 मई : आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस) मुख्यालय में 29 मई को एएसपी राजेश साहनी की गोली लगने से मौत। डीजीपी ने प्रकरण जांच एडीजी लखनऊ जोन को सौंपी। इसी बीच राज्य सरकार ने मामले की सीबीआइ जांच की सिफारिश कर दी। जांच शुरू होने का इंतजार...।
केस दो -
12 अप्रैल : उन्नाव कांड- भाजपा के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर किशोरी से दुष्कर्म सहित अन्य संगीन आरोपों से घिरे। पीडि़त किशोरी के पिता की न्यायिक अभिरक्षा में मौत के बाद मामले ने तूल पकड़ा। एडीजी की अध्यक्षता में एसआइटी गठित की गई। रिपोर्ट आते ही राज्य सरकार ने सीबीआइ जांच की संस्तुति कर दी। जांच जारी...।
केस तीन -
17 मई 2017 : कर्नाटक कैडर के आइएएस अधिकारी अनुराग तिवारी का शव मीराबाई मार्ग पर पड़ा मिला। परिवार ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर लगाया हत्या का आरोप। राज्य सरकार ने की सीबीआइ जांच की सिफारिश। दिल्ली सीबीआइ की टीम ने की लंबी छानबीन, अब तक नतीजे का इंतजार...।
योगी राज में इनकी हो रही सीबीआइ जांच
- आइएएस अनुराग तिवारी की मौत
- गोमती रिवरफ्रंट घोटाला
- उप्र लोकसेवा आयोग भर्ती घोटाला
- उन्नाव दुष्कर्म कांड
- प्रतापगढ़ में इंस्पेक्टर अनिल हत्याकांड
- सेना में फर्जी भर्ती कांड
इनमें भी हुई सिफारिश
- दिल्ली-सहारनपुर हाईवे घोटाला
- चीनी मिल घोटाला
- गाजियाबाद का बहुचर्चित रुचि शर्मा हत्याकांड
- यमुना प्राधिकरण घोटाले की जांच
- अपर निजी सचिव की फर्जी भर्ती का मामला
यह गलत परंपरा है
पूर्व डीजीपी एके जैन ने बताया कि हर केस की सीबीआइ जांच की सिफारिश गलत परंपरा है। इससे लगता है कि पुलिस की जांच पर भरोसा नहीं। पुलिस की जांच एजेंसियों को और मजबूत बनाने की जरूरत है। जिन मामलों में बड़े राजनीतिज्ञ शामिल हों अथवा मामला कई राज्यों से जुड़ा हो।
पुलिस की साख बढ़ाएं
पूर्व डीजीपी एमसी द्विवेदी ने बताया कि हर केस में सीबीआइ जांच की मांग से सबसे बड़ा सवाल तो पुलिस की साख पर खड़ा होता है। सीबीआइ पहले से ही अधिक केसों के दबाव में रहती है। जरूरत पुलिस की एजेंसियों को मजबूत व विश्वसनीय बनाने की है। लोग पहले सीबीआइ जांच की मांग करते थे, लेकिन अब सीबीआइ जांच की मांग दोहराते हैं। इससे साफ है कि पुलिस पर लोगों का विश्वास कम हुआ है।