बड़ौदा डायनामाइट केस में जेल में बंद थे फर्नांडिस, फिर भी जीत गए थे मुजफ्फरपुर का चुनाव
आपातकाल के दौरान विरोधियों को चुप कराने के लिए इंदिरा गांधी ने कई हथकंडे अपनाए। इनमें से ही एक था बड़ौदा डायनामाइट केस, जिसके तहत जॉर्ज फर्नांडिस समेत 24 को आरोपी बनाया गया था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। देश के पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस का 88 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। फर्नांडिस का पूरा जीवन संघर्ष की अनकही दास्तां से भरा पड़ा है। 1974 में हुई रेलवे की सबसे बड़ी स्ट्राइक में जो नाम सबसे अधिक चर्चित था वह फर्नांडिस का ही था। 1967 से 2004 तक जॉर्ज फर्नांडिस 9 लोकसभा चुनाव जीते। वो उन चुनिंदा लोगों या नेताओं में शुमार थे जो इंदिरा गांधी के सबसे बड़े विरोधी थे। यही वजह थी कि वह इंदिरा गांधी की आंखों की किरकिरी भी थे। आपातकाल के समय में जब पूरे देश में जेपी आंदोलन की लहर चरम पर थी उस वक्त जॉर्ज फर्नांडिस भी सरकार के खिलाफ चल रही मुहिम का हिस्सा थे। धीरे-धीरे नेताओं को सरकार जेल में ठूंस रही थी। कई नेता अंडरग्राउंड हो चुके थे। उस वक्त नेताओं की आवाज दबाने और उन्हें जेल में डालने के लिए बड़ौदा डायनामाइट केस का सहारा लिया गया था।
जॉर्ज पर था राजद्रोह का आरोप
दरअसल, इसके तहत विरोध में उठे नेताओं पर क्रिमिनल केस लगाए जा रहे थे। इसमें विपक्ष के कई नेता शामिल थे। इसमें जॉर्ज फर्नांडिस के साथ 24 दूसरे नेता भी शामिल थे। इसके तहत उनके ऊपर आरोप लगाया था कि आपातकाल के खिलाफ उन्होंने सरकारी संस्थानों और रेल ट्रैक को उड़ाने के लिए डायनामाइट की तस्करी की थी। उनके खिलाफ सरकार को उखाड़ फेंकने को लेकर विद्रोह करने का आरोप लगाया गया 1976 में उन्हें गिरफ्तार कर दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद किया गया था।
स्नेहलता की मौत
उनके अलावा विरेन जे शाह, जीजी पारिख, सीजीके रेड्डी, प्रभुदास पटवारी, देवी गुज्जर और फर्नांडिस की करीबी दोस्त स्नेहलता को भी आरोपी बनाया गया था। हालांकि स्नेहलता का नाम इस मामले में दायर फाइनल चार्जशीट में शामिल नहीं किया गया था। स्नेहलता को बेहद खराब हालात में बेंगलौर की जेल में रखा गया था, जहां उन्हें काफी प्रताडि़त किया गया। उनकी हालत बिगड़ने पर 15 जनवरी 1977 को उन्हें पैरोल पर जेल से रिहा कर दिया गया। लेकिन इसके महज पांच दिन बाद ही उनकी मौत हो गई। जांच में पता चला कि उन्हें क्रॉनिक अस्थमा और फेंफड़ों में इंफेक्शन था। स्नेहलता को आपातकाल की पहला शहीद कहा जाता है।
सीबीआई कर रही थी जांच
बड़ौदा डायनामाइट केस की जांच सीबीआई के हाथों में थी। सीबीआई ने ही घटना की जगह को बड़ौदा बताया था। जब जॉर्ज फर्नांडिस को बड़ौदा डायनामाइट केस के सिलसिले में दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में पेश किया गया तो जेएनयू के करीब दर्जन भर छात्रों ने नारे लगाए कि जेल का फाटक तोड़ दो, जॉर्ज फर्नांडिस को छोड़ दो। इस पूरे दौर में देश में राजनीतिक सरगरमी चरम पर थीं। वहीं दूसरी तरफ देश चुनाव की तरफ भी बढ़ रहा था। चुनाव घोषित हो चुके थे और कांग्रेस अपने विरोधियों को चुप कराने और चुनाव जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही थी। लेकिन नतीजा उसके खिलाफ रहा। 1977 में जॉर्ज फर्नांडिस ने जेल में रहते हुए मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ा था। पूरे चुनाव के दौरान वह एक बार भी अपने क्षेत्र में नहीं जा सके थे, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अप्रत्याशित तौर पर जीत हासिल की थी। वह यहां से करीब तीन लाख वोटों से जीते थे। चुनाव के दौरान उनकी हथकड़ी लगी हुई तस्वीर के जरिए प्रचार किया गया था। इंदिरा गांधी की हार के बाद जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी तो आपातकाल के दौरान दर्ज सभी मामलों को वापस ले लिया गया और सभी आरोपियों को रिहा कर दिया गया था।
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