श्रीगंगानगर: मतदाताओं को रास नहीं VIP कल्चर, सीटिंग CM शेखावत को दी थी करारी शिकस्त
वीआईपी कल्चर के चलते भाजपा की लहर में यहां वर्ष 1993 के चुनाव में सीटिंग मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत को करारी हार का सामना करना पड़ा।
संदीप सिंह धामू, श्रीगंगानगर (राजस्थान)। पाकिस्तान से लगती अंतरराष्ट्रीय और पंजाब की अंतरराज्यीय सीमा पर स्थित श्रीगंगानगर विधानसभा क्षेत्र चाहे राजनीतिक दृष्टि से राजस्थान में अपेक्षित है। यहां के मतदाताओं में वीआईपी राजनीतिक कल्चर भी पसंद नहीं है। इसी के चलते भाजपा की लहर में यहां वर्ष 1993 के चुनाव में सीटिंग मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत को करारी हार का सामना करना पड़ा। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी लेकिन श्रीगंगानगर विधानसभा क्षेत्र से शेखावत को तीसरा नंबर नसीब हुआ। तब प्रदेश में भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद के फेस के तौर पर प्रोजेक्ट पर पेश किए शेखावत को वोट बटोरने के लिए जनसंपर्क अभियान में गली गली घूमना पड़ा था। डोर टू डोर प्रचार करने पर भी सम्मानजनक हार नहीं मिली।
1993 के चुनाव में विजेता रहे कांग्रेस के राधेश्याम गंगानगर को 34252 वोट मिले। दूसरे नंबर पर जनता दल के सुरेंद्र सिंह राठौड़ को 31345 वोट और तीसरे नंबर पर रहे भााजपा के भैरो सिंह शेखावत को 26 378 वोट मिले। भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं के अनुसार इससे पहले 1990 के चुनाव में श्रीकरणपुर सीट पर भाजपा के कुंदनलाल मिगलानी की जीत हुई थी। तब भाजपा नेताओं ने श्रीगंगानगर सीट से भाजपा का खाता खोलने और आसपास की सीटों पर भाजपा को माहौल बनाने के लिए भैरो सिंह शेखावत को चुनाव लड़ने का सुझाव दिया था। उस समय भैरो सिंह शेखावत ने विधानसभा सीट बाली के अलावा श्रीगंगानगर से भी चुनाव लड़ा था। तब भाजपा को पीलीबंगा, हनुमानगढ़ और सूरतगढ़ में जीत मिली थी।
गली गली जाकर प्रचार किया, मतदान के दौरान पूरा दिन रहे
1993 में भारतीय युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष रहे और वर्तमान में ओबीसी मोर्चा के जिलाध्यक्ष राजकुमार सोनी के अनुसार नामांकन दाखिल करने के बाद भैरो सिंह शेखावत छह सात बार श्रीगंगानगर में चुनाव प्रचार करने आए। गली गली जाकर मतदाताओं से जनसंपर्क किया। मतदान के दिन शेखावत पूरा दिन श्रीगंगानगर में ही रहे और बूथों पर गए थे। भाजपा नगर मंडल के पूर्व अध्यक्ष एवं व्यापारी नेता हनुमान गोयल के अनुसार उस समय शेखावत के समर्थन में राजस्थान और हरियाणा के कई नेता चुनाव प्रचार करने आए थे। शेखावत सरीखे भाजपा के कद्दावर नेता के चुनाव लड़ने से श्रीगंगानगर हॉट सीट बनी। श्रीगंगानगर राष्ट्रीय राजनीति में चर्चा में आया। पुरानी यादों को ताजा करते हुए गोयल ने बताया कि तब शेखावत ने चुनाव प्रचार में दिन रात नहीं देखा। वे रात को दो बजे तक भी पार्षद सहित शहर के अन्य प्रमुख नेताओं से मिलते थे।
कांग्रेस ने बाहरी और वीआईपी होने का प्रचार किया
शहर की राजनीति की समझ रखने वाले लोगों के अनुसार 1993 में कांग्रेस की ओर से भैरो सिंह शेखावत को बाहरी प्रत्याशी करार दिया गया। कांग्रेस ने तब ये भी प्रचार किया कि अगर शेखावत चुनाव जीतते हैं तो स्थानीय लोगों को मिलने के लिए जयपुर जाना पड़ेगा। मुख्यमंत्री स्तर के नेता से आम आदमी का मिल पाना नामुमकिन होगा। तब जनता के सुरेंद्र सिंह राठौड़ मजबूत प्रत्याशी साबित हुए। इससे कांग्रेस विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण होने का कांग्रेस को फायदा मिला। वहीं कांग्रेस का शेखावत के जीतने पर वीआईपी कल्चर बनने का प्रचार मतदाताओं के मन में घर कर गया।
शेखावत को लंबे समय तक खली करारी हार की टीस
भैरो सिंह शेखावत की श्रीगंगानगर से करारी हार की टीस प्रदेश भााजपा को लंबे समय तक खलती रही। भाजपा नेताओं के अनुसार तब बाली जीत से शेखावत चुनाव जीत गए थे। शेखावत के मुख्यमंत्री बनने के बाद कई स्थानीय नेता उनसे मिलने जयपुर गए तो वहां प्रदेश नेताओं ने दो टूक कह दिया कि श्रीगंगानगर वाले क्या मुंह लेकर आए हैं। अगर शेखावत जी बाली से भी हार जाते तो क्या बनता।
बाहरी के सहारे खिला कमल
शेखावत की हार के बाद वर्ष 1998 में भाजपा ने महेश पेड़ीवाल को चुनाव मैदान में उतारा। वे भी तीसरे नंबर पर रहे। इसके बाद 2003 में पूर्व में शेखावत के सामने जनता दल की टिकट पर चुनाव लड़े सुरेंद्र सिंह राठौड़ को भाजपा प्रत्याशी बनाया गया। राठौड़ को 70 हजार 62 वोट मिले और वे जीते। इसके बाद 2008 में शेखावत को 1993 में कांग्रेस की टिकट पर हराने वाले राधेश्याम गंगानगर को भाजपा ने टिकट थमाया और जीत हासिल की।