उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू बोले, कुछ अदालती फैसलों को देखकर लगता है बढ़ा है न्यायपालिका का हस्तक्षेप
उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि देश की शासन व्यवस्था के तीन तीनों स्तंभों में से कोई भी खुद के सर्वोच्च होने का दावा नहीं कर सकता ऐसा इसलिए क्योंकि संविधान ही सर्वोच्च है। हालांकि कुछ फैसलों से लगता है कि न्यायपालिका की दखल बढ़ी है।
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, केवडिया। संविधान के तीनों प्रमुख अंगों में समन्वय की जरूरत के बावजूद विधायिका की ओर से बार बार न्यायपालिका के अतिक्रमण की बात उठती रही है। बुधवार को पीठासीन अधिकारियों के राष्ट्रीय सम्मेलन में फिर से यह मुद्दा उठा और उपराष्ट्रपति तथा राज्यसभा के सभापति एम वेंकैयानायडू ने न्यायपालिका के कुछ फैसलों पर आपत्ति जता दी। उन्होंने कहा कि संविधान में हर किसी के लिए लक्ष्मण रेखा है लेकिन दिवाली में पटाखे पर रोक और वाहनों पर प्रतिबंध जैसे अदालती फैसले चिंतित करते हैं।
विधायिका लोकतंत्र की आधारशिला
विधायिका के कामकाज पर चिंता जताते हुए नायडू ने विधानसभा अध्यक्षों से कहा कि वे लोकतंत्र के मुख्य पुजारी हैं। उन्हें इन मंदिरों की पवित्रता का ध्यान रखना होगा। नायडू ने कहा कि विधायिका लोकतंत्र की आधारशिला है जो कार्यपालिका और न्यायपालिका को आधार प्रदान करती है। नायडू ने कहा कि अदालतें कार्यपालिका और विधायिका के कार्यक्षेत्र को प्रभावित करने लगी हैं। अदालतें बताने लगी हैं कि पटाखे कितने बजे से कितने बजे और किस किस्म के चलाए जाएं। जबकि यह कार्यपालिका और विधायिका का काम है।
संविधान ही सर्वोच्च
उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश की शासन व्यवस्था के तीनों स्तंभों में से कोई भी खुद के सर्वोच्च होने का दावा नहीं कर सकता ऐसा इसलिए क्योंकि संविधान ही सर्वोच्च है। संविधान के अनुसार विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका अपने-अपने सीमाक्षेत्र में कार्य करने के लिए बाध्य हैं। हालांकि अदालतों के कुछ फैसलों से लगता है कि न्यायपालिका का हस्तक्षेप बढ़ा है।
...जब सीमाएं लांघी गईं
शासन व्यवस्था का हर अंग एक दूसरों के साथ हस्तक्षेप के बिना अपना काम करते हैं जिससे परस्पर सम्मान, जिम्मेदारी और संयम की भावना का संचार होता है। ऐसे में परस्पर सम्म्मान, जवाबदेही और धैर्य की जरूरत होती है। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसे कई उदाहरण हैं जब सीमाएं लांघी गई हैं। उन्होंने पटाखों पर अदालतों द्वारा दिए गए फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि हाल के कुछ फैसलों से ऐसा ही लगता है।
कई दूरगामी फैसले दिए
उपराष्ट्रपति ने कहा कि न्यायपालिका को खुद को सर्वोपरि कार्यपालिका या विधायिका की तरह नहीं लेना चाहिए। आजादी के बाद से देश के सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों ने सुधारात्मक हस्तक्षेप करने के अलावा सामाजिक-आर्थिक मसलों पर कई दूरगामी फैसले दिए हैं। हालांकि कभी-कभी इस पर चिंता जताई जाती है कि क्या वे कार्यपालिका में दखल दे रहे हैं। इस मसले पर भी बहस हुई है कि क्या कुछ को सरकार के अन्य अंगों के लिए वैध रूप से छोड़ दिया जाना चाहिए।
अमर्यादित व्यवहार से पहुंचती है चोट
सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने विधायिका को संसदीय मर्यादा का पाठ पढ़ाते हुए कहा जन प्रतिनिधियों के अमर्यादित व्यवहार से जनता को बहुत पीड़ा होती है। जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है कि वे लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सदैव निष्ठावान रहें। उन्होंने पीठासीन अधिकारियों से कहा कि 'सदन में वाद को विवाद न बनने देने के लिए संवाद ही एकमात्र माध्यम है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच समन्वय बनाने का बहुत कुछ दायित्व आप लोगों का है।'
संवैधानिक मूल्यों के प्रति दृढ़ रहें
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने जनप्रतिनिधियों को संवैधानिक मूल्यों के प्रति दृढ़ रहने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधि जनता के हितों, चिंताओं और आकांक्षाओं के सच्चे प्रतिनिध होते हैं। भारतीय संविधान में अपनी आस्था व्यक्त करते हुए बिरला ने कहा कि एक सशक्त और संवेदनशील विधायिका भी इसी संविधान की देन है। लोकतांत्रिक संस्थाओं विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच आदर्श समन्वय की आवश्यक है। सम्मेलन का आज पहला दिन था। आयोजन के दूसरे दिन बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संबोधित करेंगे।
बिरला बुलाएंगे मुख्यमंत्रियों की बैठक
दल बदल कानून के दुरूपयोग में विधानसभा अध्यक्षों की संदिग्ध भूमिका पर भी पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में सवाल उठाये गये। सम्मेलन में उठे इन सारे मसलों पर कारगर विचार करने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला जल्दी ही देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाएंगे। दल बदल कानून की खामियों में सुधार को लेकर पिछली बार राजस्थान के विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के नेतृत्व में एक कमेटी गठित की गई थी। कोरोना के कारण रिपोर्ट अभी तैयार नहीं हो सकी है।