दोहा में अमेरिका-तालिबान में आज होगा शांति समझौता, भारत समेत 50 देशों के प्रतिनिधि रहेंगे मौजूद
तालिबान का जो धड़ा अमेरिका से शांति वार्ता कर रहा है वह पाकिस्तान के संपर्क में है। पाकिस्तान पूर्व में इसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर चुका है।
नई दिल्ली, जेएनएन। कतर की राजधानी दोहा में शनिवार (आज) को अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर दस्तखत होंगे। भारत समेत 50 देशों के प्रतिनिधि समझौते के लम्हों के गवाह बनेंगे। माना जा रहा है कि दोहा में भारत और तालिबान पुरानी झिझक छोड़कर एक-दूसरे की तरफ कदम बढ़ा सकते हैं। पाकिस्तान समेत सात देशों के विदेश मंत्रियों को समझौता समारोह में शिरकत करने के लिए आमंत्रित किया गया है।
अफगान से 15 हजार अमेरिकी सैनिकों की वापसी होगी संभव, भारतीय प्रतिनिधि भी रहेंगे मौजूद
दोनों पक्षों की सहमति से सभी को कतर सरकार ने आमंत्रित किया है। इस समझौते से अफगानिस्तान के गृह युद्ध में फंसे अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के 15 हजार सैनिकों की वापसी संभव होगी। भारत की ओर से कतर में भारतीय राजदूत पी कुमारन समारोह में शामिल होंगे।
समझौते में पाकिस्तान प्रमुख पक्ष
जाहिर है कि समझौते में पाकिस्तान प्रमुख पक्ष है। इसीलिए समझौते से दो दिन पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने कतर का दौरा किया है। पाकिस्तान समझौते का श्रेय लेने में भी पीछे नहीं है। इस्लामाबाद में इमरान की सूचना एवं प्रसारण मामलों की विशेष सहायक फिरदौस आशिक अवान ने कहा है कि यह समझौता पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के बनाए रोडमैप पर हो रहा है।
करार के बाद अफगानिस्तान में शांति कायम करने में पाक निभाएगा हम भूमिका
समझौते के बाद अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता कायम करने में पाकिस्तान महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। इस बीच अफगान सरकार के छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने शुक्रवार को दोहा पहुंचकर तालिबान के नेताओं से मुलाकात की है। इन लोगों ने आपसी हित के मसलों पर चर्चा की और समझौते के बाद की स्थितियों पर बातचीत की। दोनों ओर के कैदियों की अदलाबदली पर भी बात हुई।
अफगान सरकार पहले 5000 तालिबान को रिहा करे तब देश में स्थायी युद्धविराम के बनेंगे हालात
तालिबान ने कहा, अफगानिस्तान सरकार पहले पांच हजार तालिबान को रिहा करे तब देश में स्थायी युद्धविराम के लिए हालात बनेंगे। स्थायी युद्धविराम पर तालिबान की मौजूदा अफगान सरकार के साथ ही वार्ता होनी है। फिलहाल अमेरिका के साथ हुआ एक सप्ताह का युद्धविराम समझौता चल रहा है।
तालिबान ने अभी तक अफगानिस्तान सरकार से कोई वार्ता नहीं की
तालिबान ने अभी तक अफगानिस्तान की निर्वाचित सरकार से कोई वार्ता नहीं की है। वह इसे कठपुतली सरकार करार देता है, लेकिन विश्वास बहाली के लिए वार्ता उसी से होनी है। उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान के आधे से ज्यादा इलाके पर तालिबान का कब्जा है जबकि बाकी पर अफगानिस्तान सरकार का।
शनिवार को अमेरिका और तालिबान के बीच होने वाले ऐतिहासिक समझौते से काबुल में तालिबान के आने का रास्ता लगभग खुल गया है। ऐसे में भारत की एक बड़ी चिंता तो यह है कि पाकिस्तान परस्त तालिबान कहीं फिर से भारत के खिलाफ गतिविधियों का केंद्र न बन जाए। दूसरी बड़ी चिंता यह है कि अरबों डॉलर की लागत से वहां जो सैकड़ों परियोजनाएं चलाई जा रही हैं उनका क्या होगा।
भारत ने कहा- अफगान की जनता की भागीदारी वाली सरकार को ही सत्ता सौंपी जानी चाहिए
इन चिंताओं के बीच शुक्रवार को काबुल में विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने अफगानिस्तान सरकार के कार्यवाहक विदेश मंत्री हारुन चाकासारी से मुलाकात की है। भारत ने इस पक्ष को दोहराया कि अफगानिस्तान को लेकर जो भी शांति समझौता हो उसमें यह सुनिश्चित हो कि वहां की जनता की पूरी भागीदारी हो और अफगानिस्तान की जनता की भागीदारी वाली सरकार को ही सत्ता सौंपी जानी चाहिए।
अमेरिका-तालिबान करार से अफगान में नई सरकार के गठन का होगा रास्ता साफ
अमेरिका व तालिबान के बीच होने वाले समझौते से अफगानिस्तान में नई सरकार के गठन का रास्ता भी साफ होगा व अमेरिकी सैनिकों की घर वापसी का सिलसिला भी शुरु होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले सोमवार को नई दिल्ली में यह स्पष्ट किया था कि वह अब अफगानिस्तान में पुलिस की भूमिका निभाने को तैयार नहीं है।
विदेश सचिव श्रृंगला और अफगान के विदेश मंत्री ने की रणनीतिक साझेदारी की समीक्षा
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा है कि विदेश सचिव श्रृंगला और अफगानिस्तान के विदेश मंत्री के बीच हुई मुलाकात में द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी की समीक्षा की गई है। विदेश सचिव ने भारत की तरफ से यह आश्वस्त किया कि अफगानिस्तान में स्थाई शांति, सुरक्षा व विकास के लिए वहां की जनता को हमेशा मदद करता रहेगा।
भारत की मदद से अफगानिस्तान में कई परियोजनाओं पर काम चल रहा है
माना जा रहा है कि दोनों के बीच भारत की मदद से वहां चलाई जा रही परियोजनाओं के भविष्य को लेकर भी चर्चा हुई है। भारत पिछले डेढ़ दशकों से वहां कई बड़ी परियोजनाओं (संसद भवन का निर्माण, बिजली बनाने व सिंचाई करने के लिए बांध आदि) समेत कई छोटी-छोटी परियोजनाओं (स्कूलों, पुलों, अस्पतालों आदि का निर्माण) का काम किया है। साथ ही सॉफ्ट डिप्लोमेसी के तहत अफगानिस्तान में खेल व संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए काफी मदद की है।
भारत की तरफ से अफगानिस्तान में 500 से ज्यादा छोटी-बड़ी परियोजनाएं चलाई जा रही हैं
सनद रहे कि भारत की तरफ से अभी अफगानिस्तान में 500 से ज्यादा छोटी बड़ी परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। भारत तीन अरब डॉलर की परियोजनाएं वहां पूरी कर चुका है और इतनी राशि की और परियोजनाओं पर विमर्श हो रहा था। अभी तक भारत की चिंताओं को लेकर किसी भी पक्ष ने कोई बयान नहीं दिया है।
तालिबान का अफगानिस्तान सरकार में शामिल होना ही भारत के लिए चिंताजनक है
नई दिल्ली दौरे पर राष्ट्रपति ट्रंप ने बताया था कि उनकी पीएम नरेंद्र मोदी से भी अफगानिस्तान के हालात पर चर्चा हुई थी और उन्होंने इस पर खुशी जताई थी। ट्रंप के इस बयान के बावजूद तालिबान का अफगानिस्तान सरकार में शामिल होना ही भारत के लिए एक चिंताजनक खबर है। तालिबान का जो धड़ा अमेरिका से शांति वार्ता कर रहा है वह पूरी तरह से पाकिस्तान के संपर्क में है। पाकिस्तान पूर्व में इसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर चुका है।