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Upper Caste Quota: चुनाव में नहीं चलता है आरक्षण का दाव, वीपी सिंह से अटल तक हैं मिसाल

Upper Caste Reservation का दाव अक्सर चुनाव में कामयाब नहीं होता है। कम से कम जाटों को आरक्षण के मामले में तो यही हुआ।

By Brij Bihari ChoubeyEdited By: Published: Tue, 08 Jan 2019 01:14 PM (IST)Updated: Tue, 08 Jan 2019 01:31 PM (IST)
Upper Caste Quota: चुनाव में नहीं चलता है आरक्षण का दाव, वीपी सिंह से अटल तक हैं मिसाल
Upper Caste Quota: चुनाव में नहीं चलता है आरक्षण का दाव, वीपी सिंह से अटल तक हैं मिसाल

नई दिल्ली, जेएनएन। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले Upper Caste Reservation की घोषणा कर नरेंद्र मोदी सरकार ने राफेल पर शोर मचा रहे विपक्ष खासकर कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया है। मोदी का यह मास्टरस्ट्रोक कितना कारगर होगा यह तो भविष्य के गर्भ में छुपा है लेकिन यहां याद करना लाजिमी है UPA सरकार ने 2014 के चुनाव में जाटों को आरक्षण देने का एलान किया था लेकिन चुनाव में उसे इसका बहुत फायदा नहीं मिला था।

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तत्कालीन UPA सरकार ने देश के नौ राज्यों में जाटों को अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) को उपलब्ध आरक्षण में हिस्सेदारी देने का फैसला किया था। इसके कुछ महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में क्या हुआ यह इतिहास है। कांग्रेस बुरी तरह परास्त हुई। कांग्रेस को अनुमान था कि चूंकि जाट एकमुश्त वोट करते हैं इसलिए उसे इस एलान का फायदा मिलेगा।

अटल को भी नहीं मिला फायदा
इससे पहले 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने जाटों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण (Upper Caste Reservation) देने का फैसला किया था। इसके बाद कांग्रेस की तत्कालीन राजस्थान सरकार ने भी जाटों को ओबीसी में शामिल कर दिया। लेकिन इसका नतीजा क्या हुआ। भाजपा 1999 का चुनाव हार गई और राजस्थान में कांग्रेस सरकार को हटाकर भाजपा सत्तासीन हुई।

सुप्रीम कोर्ट कर चुका है खारिज

इससे पहले नरसिम्हा राव की सरकार ने 1991 में आर्थिक रूप से पिछड़ों को 10 फीसदी आरक्षण (Upper Caste Reservation) देने की घोषणा की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के मशहूर केस में नौ जजों की बेंच ने आर्थिक आधार पर आरक्षण को असंवैधानिक घोषित किया था। इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्वेशन की सीमा को 50 फीसदी पर सीमित कर दिया था।

वीपी सिंह भी हार गए थे चुनाव
इसके अलावा हमें वीपी सिंह को नहीं भूलना चाहिए। 1990 में भाजपा के राम मंदिर आंदोलन से घबराए सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने की घोषणा कर दी। इसके तहत पिछड़ों को आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। इसके खिलाफ देश भर में अगड़ों में काफी हिंसक प्रतिक्रिया हुई और 1991 के चुनाव में वीपी सिंह के जनता दल को सिर्फ 69 सीटें मिली जबकि कांग्रेस 244 सीटें जीतकर बहुमत का आंकड़ा तो नहीं छू पाई लेकिन गठबंधन की सरकार बनाने में सफल हुई।

वोटर देते हैं सबक
इससे यही सबक मिलता है कि वोटर नेताओं के वायदों पर कृतज्ञता जताने के लिए वोट नहीं करता है बल्कि वह भविष्य में अपनी बेहतरी के फैसलों के लालच और उसे जो मिल रहा है उसे खोने के डर के कारण खास तरीके से वोट करता है।

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