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उत्तरप्रदेश उपचुनाव नतीजे: विपक्षी गोलंबदी के नये समीकरण का खुला दरवाजा

यूपी उपचुनाव के नतीजों से भाजपा के खिलाफ 2019 में विपक्षी एकजुटता की कोशिशों को बल मिलेगा।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Wed, 14 Mar 2018 08:49 PM (IST)Updated: Wed, 14 Mar 2018 09:02 PM (IST)
उत्तरप्रदेश उपचुनाव नतीजे: विपक्षी गोलंबदी के नये समीकरण का खुला दरवाजा
उत्तरप्रदेश उपचुनाव नतीजे: विपक्षी गोलंबदी के नये समीकरण का खुला दरवाजा

संजय मिश्र, नई दिल्ली। भाजपा के बीते चार साल से लगातार जारी सियासी उफान के सामने पस्त होते रहे विपक्षी दलों के लिए गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव के नतीजों ने उम्मीद का दरवाजा खोल दिया है। सपा-बसपा के सामाजिक समीकरण के राजनीतिक प्रयोग की कामयाबी ने विपक्षी दलों को अपनी सियासी जमीन वापस हासिल करने का विकल्प दे दिया है। भाजपा-एनडीए को 2019 में चुनौती देने की राह तलाश रही कांग्रेस समेत तमाम क्षेत्रीय पार्टियों के लिए भी नतीजों ने विपक्षी एकजुटता से फायदे की राह दिखा दी है।

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2019 में विपक्षी एकजुटता की कोशिशों को मिलेगा बल

भाजपा-एनडीए के सियासी उफान के भंवर से अपनी राजनीतिक नैया को बचाते हुए किनारे लगाने की विपक्षी दलों की यह उम्मीद ऐसे समय जगी है जब राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकजुटता की कोशिशें शुरू हुई है। राष्ट्रीय राजनीतिक की करवट तय करने वाले देश के सबसे बड़े सूबे में भाजपा को थामने का संदेश देना ही विपक्षी दलों के लिए एक बड़ी सियासी कामयाबी से कम नहीं है। पिछले लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह भाजपा राज्य दर राज्य जीत की पताका लहराती रही है उससे विपक्षी दलों का मनोबल टूटता रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जुबानी चुनौती देती रही कांग्रेस जमीनी सियासत पर इन चार सालों में संगठन के तौर पर अपनी वापसी का कोई सकारात्मक संदेश नहीं दे पायी है। इस हकीकत को भांपते हुए ही कांग्रेस अगले लोकसभा चुनाव में मजबूत विपक्षी विकल्प की कसरत कर रही है। यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी ने सोमवार रात इसी कोशिश के तहत 20 विपक्षी दलों के नेताओं को रात्रिभोज के बहाने चर्चा के लिए आमंत्रित किया था। गोलबंदी की शुरू हुई कोशिशों के बीच उत्तरप्रदेश उपचुनाव के नतीजों ने विपक्षी एकजुटता के दरवाजे खोल दिये हैं।

सामाजिक न्याय और धर्म-निरपेक्षता का सियासी दांव मजबूत करेंगे विपक्षी दल

कांग्रेस ही नहीं तमाम क्षेत्रिय पार्टियों को भी भाजपा का लगातार होता विस्तार अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए गंभीर चुनौती बनता दिख रहा है। इसीलिए कांग्रेस ही नहीं क्षेत्रीय पार्टियां भी तमाम राजनीतिक विरोधाभासों के बावजूद अपनी सियासत बचाने की रणनीति पर काम कर रही हैं। विपक्षी दल इस हकीकत से भी वाकिफ हैं कि भाजपा के मौजूदा प्रभाव और राजनीतिक प्रबंधन की कुशलता को अकेले अपने बूते रोकना बहुत मुश्किल चुनौती है। मौजूदा हकीकत में सामाजिक और सियासी समीकरण के दोहरे दांव के सहारे ही भाजपा को रोका जा सकता है।

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी और बसपा की रणनीतिक दोस्ती के नतीजों पर तमाम दलों की निगाहें थी। इसीलिए उपचुनाव के नतीजे आने से पहले ही राहुल गांधी, ममता बनर्जी, उमर अब्दुल्ला, सीताराम येचुरी से लेकर शरद यादव तक ने सपा-बसपा की दोस्ती की कामयाबी पर जिस तरह की सकारात्मक प्रतिक्रिया का इजहार किया, वह साफ इशारा करता है कि विपक्षी दलों के लिए यह नतीजे कितने मायने रखते हैं।

विपक्षी दलों के लिए यह नतीजे इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि जमीनी स्तर पर सियासी समीकरण की कामयाबी से सामाजिक न्याय की राजनीति की धीमी पड़ चुकी आवाज को फिर से मुखर करने की राह खुल सकती है। ओबीसी और दलित वोट बैंक में भाजपा ने जिस तरह पिछले चार सालों में अपनी पैठ मजबूत की है उसमें कांग्रेस के लिए सीधे उसे भेदना आसान नहीं है। मगर सपा-बसपा हो या बिहार में राजद जैसे दल, इनके सहारे इन दोनों सूबों में भाजपा के सियासी आधार पर चोट करने का दांव चला जा सकता है। उपचुनाव में जीत के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सामाजिक न्याय की लड़ाई के साथ बसपा सुप्रीमो मायावती का खुले दिल से आभार जता इस दांव को चलने के विपक्षी खेमे के इरादों का संकेत भी दे दिया।


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