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जानें, मुलायम के पहलवान से राष्‍ट्रीय नेता बनने की पूरी कहानी, तीन बार रहे यूपी के सीएम

मुलायम सिंह यादव 1967 में सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़कर जीते। 1977 में उन्हें जनता सरकार में मंत्री बनाया गया।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Wed, 21 Nov 2018 10:25 PM (IST)Updated: Thu, 22 Nov 2018 11:16 AM (IST)
जानें, मुलायम के पहलवान से राष्‍ट्रीय नेता बनने की पूरी कहानी, तीन बार रहे यूपी के सीएम
जानें, मुलायम के पहलवान से राष्‍ट्रीय नेता बनने की पूरी कहानी, तीन बार रहे यूपी के सीएम

राज्य ब्यूरो, लखनऊ। प्रदेश में समाजवादी पार्टी के उभार के साथ ही एक नारा लोगों की जुबां पर छा गया था कि 'जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है।' ...और प्रदेश की राजनीति में मुलायम का जलवा सक्रिय राजनीति में कभी कम न हुआ। वह भले ही सत्ता में रहे या उससे बाहर, उनकी महत्ता बरकरार रही। यूपी में समाजवादी चेतना के सबसे वाहक के रूप में वह उभरे। इस बीच तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद भी संभाला। समर्थक ही नहीं, विरोधी भी हमेशा उनके कायल रहे।

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इटावा के सैफई गांव में एक किसान परिवार में 22 नवंबर 1939 में जन्मे मुलायम सिंह यादव को उनके पिता सुधर सिंह यादव पहलवान बनाना चाहते थे लेकिन यही शौक उन्हें राजनीति की ओर ले गया। मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती-प्रतियोगिता में उनके राजनीतिक गुरु नत्थू सिंह उनसे प्रभावित हुए।

नत्थूसिंह के ही परंपरागत विधान सभा क्षेत्र जसवंत नगर से उनका राजनीतिक सफर भी शुरु हुआ। शिक्षक पद से त्यागपत्र देने के बाद वह पूरी तरह सक्रिय राजनीति में आ गए और 1967 में सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़कर जीते। 1977 में उन्हें जनता सरकार में मंत्री बनाया गया। 1980 में कांग्रेस सरकार में भी वे मंत्री रहे। पांच दिसंबर 1989 में वह पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए।

लेकिन, मुलायम यूपी में समाजवाद का परचम फहराने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे। इसलिए राजनीतिक उतार-चढ़ावों के तमाम क्रमों के बीच 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाई और प्रदेश की राजनीति में पिछड़ों व मुस्लिमों का मजबूत समीकरण खड़ी किया। उस समय तक दलित मतों में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशी राम ने भी पैठ बना ली थी।

सपा-बसपा के गठजोड़ ने प्रदेश में कांग्रेस की राजनीतिक पकड़ को कमजोर कर दिया। हालांकि सत्ता संघर्ष में यह गठजोड़ भी अधिक दिन तक न रहा। फिर भी मुलायम न सिर्फ अपनी राजनीतिक हैसियत का अहसास करा चुके थे और प्रदेश में समाजवाद की जड़ें काफी मजबूत कर चुके थे। राजनीति के अपने इस सफर में वह 1996 में मैनपुरी से सांसद चुने गए और संयुक्त मोर्चा सरकार में रक्षामंत्री भी रहे। लोहिया की परंपरा के पोषक मुलायम मानते रहे हैैं कि सरकार में 'दवा और पढ़ाई' मुफ्त होनी चाहिए।

यह मुलायम की ही राजनीतिक पकड़ थी कि 2007 में समाजवादी पार्टी की सत्ता में वापसी हुई और मुलायम ने बेटे अखिलेश मुख्यमंत्री बनाकर अपनी राजनीतिक विरासत सौंपी। इसके बाद से उनकी राजनीतिक सक्रियता थोड़ी कम हुई। हालांकि वर्तमान में भी वह आजमगढ़ से सांसद हैैं और अगला लोकसभा चुनाव मैनपुरी से लड़ने की भी तैयारी है। मुलायम के करीबी रहे सपा के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी कहते हैैं कि नेताजी सभी वर्गों के सर्वमान्य नेता हैैं। उनके राजनीतिक विरोधी भी उनके प्रशंसक रहे हैैं। ऐसा इसलिए कि उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं रहा।

तीन बार मुख्यमंत्री

5 दिसंबर 1989 से 24 जून 1991 तक

4 दिसंबर 1993 से 3 जून 1995 तक

29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007 तक


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