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जागरण राउंड टेबल: 'सत्तर सालों की लेटलतीफी झेल रही थी रेल, मोदी सरकार ने दिया ध्यान'

दैनिक जागरण की संपादकीय टीम के साथ उन्होंने रेलवे को लेकर जनता में अवधारणा और बदलती दिशा पर लंबी बात की।

By Vikas JangraEdited By: Published: Sun, 15 Jul 2018 11:31 PM (IST)Updated: Mon, 16 Jul 2018 11:27 AM (IST)
जागरण राउंड टेबल: 'सत्तर सालों की लेटलतीफी झेल रही थी रेल, मोदी सरकार ने दिया ध्यान'
जागरण राउंड टेबल: 'सत्तर सालों की लेटलतीफी झेल रही थी रेल, मोदी सरकार ने दिया ध्यान'

नई दिल्ली [जेएनएन]।  केंद्र में पहली बार कोई मंत्री बने और चार साल के अंदर एक –दो नहीं छह मंत्रालयों की जिम्मेदारी से रूबरू हो तो उसे न तो योग्य मानने से कोई गुरेज कर सकता है और न ही इस बात से इनकार कि उसे सरकार के मुखिया- प्रधानमंत्री का भरोसा प्राप्त है। वर्तमान में रेल और कोयला के साथ साथ वित्त जैसे अहम मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे पीयूष गोयल को यह तमगा हासिल है। उन्हें रेल जैसे बड़े और राजनीतिक मंत्रालय की कमान तब दी गई जब दुर्घटनाओं के लिए रेल बदनाम हो रही थी। वित्त में आपात जरूरत के लिए कार्यकारी की जरूरत महसूस हुई तो प्रधानमंत्री ने उन्हें ही याद किया। इससे पहले उर्जा, रिन्यूएबल एनर्जी और खान मंत्रालय में भी वह रह चुके हैं।

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दैनिक जागरण की संपादकीय टीम के साथ उन्होंने रेलवे को लेकर जनता में अवधारणा और बदलती दिशा पर लंबी बात की। पेश है एक अंशः--

प्रश्न- दुर्घटनाओं के कारण बदनाम हो रही रेलवे का जिम्मा भी शायद आपको इसीलिए दिया गया था। एक साल में आप बतौर रेलमंत्री कितने संतुष्ट है?
उत्तर- एक ऐसी सरकार जिसका ध्येय विकास हो और सर्वश्रेष्ठ होना मापदंड वहां संतुष्टि के लिए कोई स्थान नहीं है। मैं इतना कह सकता हूं कि पहले दिन से मैंने डाक्टर की तरह मर्ज पहचाने का काम शुरू किया और एक एक कर दुर्घटना, लेटलतीफी, गुणवत्ता, सुरक्षा, यात्री सुविधा हर पहलू पर काम शुरू कर दिया। डेडलाइन के साथ। कुछ चीजें दिखने लगीं हैं जैसे दुर्घटनाओं पर अंकुश लगा। कुछ चीजें आपको जल्द महसूस होगी। बड़े बदलाव में और खासकर तब जबकि नीचे व्यवस्था गल रही हो या ठप हो तो थोड़ा वक्त लगता है।


प्रश्न : फिलहाल को ट्रेनों की लेटलतीफी यात्रियों को रुला रही है। कुछ ट्रेनों को छोड़ दें, तो आज ज्यादातर ट्रेने समय से दो तीन घंटे देरी से चलती हैं। रफ्तार सुस्त हो गई है। आखिर इसकी वजह क्या है?
उत्तर : ये पिछले सत्तर सालों के बैकलॉग का नतीजा है। हमने ट्रैक नवीकरण के साथ दोहरीकरण व तिहरीकरण के कार्यों को तेज किया है। सुरक्षा की दृष्टि से रखरखाव के लिए भी हम नियोजित ढंग से ब्लॉक लेकर कार्य कर रहे हैं। इसकी वजह से ट्रेनों की समयबद्धता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। मैंने 14 जोनों की व्यक्तिगत तौर पर समीक्षा की और वीडियो कांफ्रेंसिंग से हर एक डिवीजन के साथ चर्चा हुई। आप सब जानते हैं कि आजादी के बाद रेलवे का बुनियादी ढांचा 10-15 फीसदी ही बढ़ा है। इसका मतलब 10 हजार किमी से ज्यादा लाइनें नहीं बढ़ी हैं। अब अगर आप 65 साल और पांच साल के काम की तुलना करेंगे, तो हैरानी होगी कि पांच साल में कैसे इतने बदलाव हुए हैं। क्या आप विश्वास करेंगे कि मुंबई, दिल्ली और चेन्नई की लाइन के कुछ हिस्से अभी भी सिंगल लाइन हैं। इसकी जिम्मेदारी किसकी है? इस साल के अंत तक ये पूरी लाइन डबल हो जाएगी। डबल लाइन होने से ट्रैफिक दोगुना नहीं, चार गुना हो जाता है। मोदी सरकार में चार साल में आधारभूत परिवर्तन लाया गया है।

प्रश्न : आंकड़े कुछ भी हों, लेकिन वास्तविकता अलग है। ट्रेनों को आउटर पर खड़ा कर दिया जाता है और बताया जाता है कि प्लेटफार्म खाली नहीं है।
उत्तर : मैं आप सब से अनुरोध करता हूं कि जब भी ट्रेन और प्लेटफार्म पर गंदगी देखें, तो उसकी फोटो लेकर मुझे बताएं। अगर किसी की कोई शिकायत आती है, तो उसका निदान किया जाता है। ट्रेन में अधिकारी सफर करके यात्रियों से सुझाव लेते हैं। शिकायत को सुनते हैं। हर अधिकारी को हफ्ते में एक-दो दिन ट्रेन की यात्रा करने का निर्देश दिया गया है। आपने कहा कि प्लेटफार्म पर गाडिय़ां खड़ी रहती हैं, तो इस सबके लिए जमीनी कारणों को देखना होता है। पता चलता है कि स्टेशनों पर ट्रेनों में पानी भरने में वक्त लगता है। वो मोटर की क्षमता कम होने की वजह से है। हमने उस पर निर्णय लिया और बड़े स्टेशनों की मोटर की क्षमता को बढ़ाने का निर्देश दिया है। प्लेटफार्म पर 40-50 मिनट खड़े होने की जरूरत नहीं है। इसे कम किया जाएगा। मेरा तो मानना है कि दो मिनट से ज्यादा रेल खड़ी नहीं होनी चाहिए लेकिन उसमें भी व्यवहारिक दिक्कतें आएंगी। सही निदान निकाला जाएगा।

प्रश्न : चार साल पहले तत्कालीन रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने कहा था कि ज्यादातर ट्रेनो का एलान राजनीतिक वजहों से किया जाता है। लेकिन अब बिना बजट के धड़ाधड़ नई ट्रेने चलाई जा रही हैं। चार साल में 800 से ज्यादा ट्रेनें चलाई गई हैं? क्या ट्रेनों के लेट होने की एक वजह यह भी नहीं है?
उत्तर : ऐसा कोई संस्थान नहीं कह सकता कि वो हाथ बांधकर काम करेगा। हां, सुरेश प्रभु जी के कहने का सार ये था कि वो नई ट्रेनों को चलाने में राजनीति नहीं करेंगे। पहले तमाम ट्रेनों को चलाने की घोषणा होती थी। लेकिन सालों बाद भी ट्रेनें नहीं चलती थीं। जबकि हमने जो काम किए, उसे पूरा किया। घोषणा की, मगर उसका कोई राजनीतिकरण नहीं किया। यह बड़ा बदलाव है इस सरकार में। मुझे 800 नई ट्रेनों के चलने को लेकर संदेह है। जैसे कुछ रूट में ट्रेन भरकर चलती है। ऐसे में हमें मानवीय आधार पर कुछ व्यवस्था करनी होगी। फिर हमने कुछ चीजें अक्लमंदी से की हैं। जैसे आज देश की सबसे अच्छी ट्रेन गतिमान है। दिल्ली से आगरा और आगरा से दिल्ली में चार घंटे लगते थे। मैंने गतिमान को आगरा से आगे ग्वालियर और फिर वहां से झांसी तक बढ़ा दिया। और इस तरह दिल्ली से बुंदेलखंड की दूरी को कम कर दिया। मोदी और पंडित दीनदयाल की सोच है कि देश की सभी चीजों पर पहला हक गरीब का है, यह उसका उदाहरण है।


प्रश्न : गरीबों के हक से गतिमान रेल कैसे जुड़ती है, क्या बुंदेलखंड का गरीब गतिमान में सफर करने की आर्थिक क्षमता रखता है?
उत्तर : आप वहां जाएंगे तो आप वहां खर्च भी करेंगे। तो उसका लाभ वहां के लोगों को मिलेगा। एक रास्ता को खुला वहां तक पहुंचने का।

प्रश्न- सीएजी ने हाल में एक रिपोर्ट दी थी और रेलवे के खाने पर बड़ा सवाल उठाया था। वह खाने योग्य नहीं होता है। आप क्या कहेंगे?
उत्तर- मैं मानता हूं कि खाने में सफाई और गुतणवत्ता बहुत जरूरी है। देशभर में 68 बेस किचन तैयार किए जा रहे हैं। कोशिश यह है कि हर पांच सौ किलोमीटर पर एक बेस किचन हो ताकि ताजा खाना मिल सके। गए हैं। सितंबर 2019 तक सारे किचन स्थापित हो जाएंगे। लेकिन मैं आपको बताऊं कि रेलवे किचन रोज 12 लाख लोगों के लिए खाना बनाती है जिसमें से औसतन दस लाख यात्रियों को खाना पसोसा जाता है। इसलिए कभी-कभी खाने को लेकर शिकायतें आती है। खैर हमारी तो कोशिश है कि यह शिकायत आए ही नहीं। इसीलिए नई कैटरिंग पॉलिसी लागू की है। किचन में सीसीटीवी कैमरों और आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस के जरिए चौबीस घंटे नजर रखी जाएगी। कैटरिंग की व्यवस्था को दो हिस्सों में बाट दिया है।


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