संसद में केंद्रीय मंत्री बोले, त्वचा के रंग के आधार पर भेदभाव का संदेश न दें विज्ञापन
केंद्रीय मंत्री राज्यसभा में एक सवाल का जवाब दे रहे थे। उनसे पूछा गया था कि क्या सरकार गोरेपन को बढ़ावा देने वाली क्रीमों के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे ने रविवार को कहा कि विज्ञापन से त्वचा के रंग के आधार पर किसी तरह के भेदभाव का संदेश नहीं दिया जाना चाहिए। साथ ही उसमें उत्पाद के इस्तेमाल से पहले मॉडल के हावभाव इस तरह नकारात्मक तरीके से नहीं दिखाए जाने चाहिए कि उसे अनाकर्षक, उदास और चिंतित की तरह देखा जाए।
केंद्रीय मंत्री राज्यसभा में एक सवाल का जवाब दे रहे थे। उनसे पूछा गया था कि क्या सरकार गोरेपन को बढ़ावा देने वाली क्रीमों के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है। चौबे ने बताया कि विज्ञापन उद्योग के स्व-नियामक निकाय भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) ने विज्ञापन की सामग्री से जुड़े मामलों और विज्ञापनों में भ्रामक, झूठे व निराधार दावों के खिलाफ शिकायतों पर फैसला करने के लिए उपभोक्ता शिकायत परिषद गठित की है।
अपने लिखित जवाब में केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एएससीआइ स्व-नियामक दिशानिर्देशों का इस्तेमाल कर रही है जिसके मुताबिक विज्ञापनों को त्वचा के रंग के आधार पर किसी तरह के भेदभाव का संदेश नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि विज्ञापनों में डार्क त्वचा वाले लोगों को इस तरह नहीं दिखाना चाहिए कि उन्हें जीवन के किसी भी पहलू से कमतर या असफल माना जाए।
कोरोना संकट पर राज्य और केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए निर्देश
वहीं, दूसरी ओर कोरोना संकट पर संसद के उच्च सदन में स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे ने एक लिखित उत्तर में कहा कि कोरोना महामारी की शुरुआत में जिन भी देशों ने स्वाभाविक हर्ड इम्युनिटी के लिए संक्रमण को फैलने दिया, वहां कई बीमारियों के साथ ही मृत्युदर भी बहुत अधिक रही और आखिर में उन देशों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी। उनसे पूछा गया था कि क्या राज्य सरकारें कोरोना महामारी से लड़ने के लिए हर्ड इम्युनिटी की रणनीति पर चल रही हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के प्रसार की चेन को तोड़ने के लिए केंद्र की तरफ से राज्यों के लिए परामर्श और दिशानिर्देश जारी किए गए। महामारी को रोकने के लिए योजनाएं और प्रक्रियाओं के बारे में भी राज्यों को जानकारी दी गई।